एनसीईआरटी की किताबों का फरमान नहीं मान रहे स्कूल
एक ओर जहां सरकार के स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबों की अनिवार्यता के फैसले का अभिभावक और आमजन समर्थन कर रहे हैं, वहीं कई स्कूल खुलकर इस फरमान के विरोध में उतर आए हैं।
देहरादून, [जेएनएन]: एक ओर जहां सरकार के स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबों की अनिवार्यता के फैसले का अभिभावक और आमजन समर्थन कर रहे हैं, वहीं अधिकांश स्कूल खुलकर इस फरमान के विरोध में उतर आए हैं। जाहिर है जनहित में लिया गया सरकार का यह फैसला स्कूलों के गले नहीं उतर रहा है। एनसीईआरटी की अनिवार्यता और अन्य बिंदुओं को लेकर स्कूल बंद करने के बाद अब प्रिंसिपल्स प्रोग्रेसिव स्कूल्स एसोसिएशन (पीपीएसए) ने इस पूरे मामले में सरकार को घेरा है। उन्होंने इस फरमान को किसी भी सूरत में न मानने के संकेत दिए हैं और मुख्यमंत्री से समय देकर आदेश पर पुनर्विचार करने की मांग की है।
पीपीएसए के अध्यक्ष प्रेम कश्यप ने शुक्रवार को पेसलवीड कॉलेज में आयोजित प्रेस वार्ता में कहा कि सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत मीडिया में बयान दे रहे हैं लेकिन स्कूल संचालकों को मिलने का समय नहीं दे रहे हैं। जिससे नए सत्र की पढ़ाई पर प्रभावित हो रही है। कश्यप ने सीएम, शिक्षा मंत्री से लेकर सभी अधिकारियों को लिखे पत्र का जिक्र करते हुए कहा कि सरकार उनके मामले को गंभीरता से नहीं ले रही है। उन्होंने बताया कि पीपीएसए ने प्राईवेट स्कूलों की समस्या से सीएम को गत वर्ष 22 नवंबर को अवगत करा दिया था। इसके साथ ही भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट, शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे, अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश व शिक्षा सचिव भूपेंद्र कौर औलख के सम्मुख भी अपनी बात रख चुके हैं। बावजूद इसके सरकार ने उनकी समस्या पर गंभीरता से विचार नहीं किया है। ऐसे में नए सत्र के लिए किताबें खरीदने और बच्चों की पढ़ाई पर बुरा असर पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि वे मजबूरन स्कूलों को बंद कर रहे हैं। जबकि इस वक्त नए सत्र की तैयारियां शुरू होनी चाहिए थीं। उन्होंने दोबारा दोहराया कि जब तक सरकार उनका पक्ष सुनकर कोई उचित फैसला नहीं लेती, स्कूल बंद रखे जाएंगे।
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