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स्वास्थ्य विभाग में हुआ है तीन करोड़ की दवा खरीद में खेल Dehradun News

स्वास्थ्य विभाग में बीते एक वर्ष के दौरान खरीदी गई तीन करोड़ की दवा खरीद का मामला सुर्खियों में है।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Wed, 07 Aug 2019 03:56 PM (IST)Updated: Wed, 07 Aug 2019 03:56 PM (IST)
स्वास्थ्य विभाग में हुआ है तीन करोड़ की दवा खरीद में खेल Dehradun News

देहरादून, जेएनएन। स्वास्थ्य विभाग में नित-नए कारनामे सामने आते रहते हैं। अब बीते एक वर्ष के दौरान खरीदी गई तीन करोड़ की दवा खरीद का मामला सुर्खियों में है। बताया गया कि इस मामले में ऑडिट में कई आपत्तियां लगाई गई हैं। हालांकि, महकमे के आला अधिकारियों का कहना है कि ऑडिट के ऑब्जेक्शन पर जवाब दे दिया गया है। उधर, सूत्रों का कहना है कि दवा खरीद के नियमों से बाहर जाकर यह सब किया गया, जिसे दबाने के प्रयास किए जा रहे हैं। 

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स्वास्थ्य विभाग का घपलों-घोटालों से पुराना नाता रहा है। नियम से बाहर जाकर खरीद यहां कोई नया मामला नहीं है। इसे लेकर विभाग कई बार कठघरे में रहा है। तेल घोटाला अभी तक लोगों के जेहन में है। इस मामले में अब भी लगातार जांच चल रही है। इसी तरह कार्मिकों की भर्ती से लेकर दवाओं की खरीद को लेकर पूर्व में भी महकमे की कार्यप्रणाली पर सवाल उठते रहे हैं। इस बार विभाग में तीन करोड़ की दवा नियम कायदों को ताक पर रखकर खरीद की जानकारी सामने आई है। 

अलबत्ता, विभाग की ओर से मामले में पर्देदारी में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही। सूत्रों के मुताबिक इस मामले में मंगलवार को बकायदा स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ आरके पांडे ने अफसरों के साथ बैठक कर जरूरी दिशा-निर्देश दिए। डॉ पांडे ने बताया कि दवा खरीद को लेकर ऑडिट विभाग की कुछ आपत्तियां थी जिस पर संबंधित विभाग को स्पष्टीकरण भेज दिया है। बहरहाल स्वास्थ्य विभाग में अभी तक हुए  घपलों-घोटालों में किसी पर भी काई कार्रवाई नहीं हुई है। विभागीय अधिकारी बस जांच का खेल खेलते हैं, पर इसका कोई निष्कर्ष नहीं निकलता। स्थिति ये कि है। दागियों को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई है। 

क्रय नीति में संशोधन की दरकार 

प्रदेश में अभी चल रही दवा खरीद नीति में संशोधन की जरूरत महसूस की जा रही है। नीति में कई खामियों की वजह से दवा खरीद में कई तरह की परेशानिया खड़ी हो रही हैं। हालिया नीति में टेंडर के लिए कई ऐसी शर्तें शामिल की गई हैं, जिससे छोटे और स्थानीय सप्लायर इस कारोबार से बाहर हो गए हैं। जबकि बड़ी कंपनियों का वर्चस्व होता जा रहा है। जिसका फायदा अधिकारी भी उठा रहे हैं। 

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