देवभूमि में शिव के 5 प्रमुख धाम, महिमा अपरम्पार, माथे पर त्रिपुंड व जयकारों के साथ Sawan में उमड़ते हैं भक्त
Sawan 2023 Uttarakhand Shiva Temple आज 10 जुलाई को सावन का पहला सोमवार है। आज हम आपको उत्तराखंड के पांच प्रमुख शिव धामों के बारे में बताने जा रहे हैं। बता दें कि गढ़वाल से लेकर कुमाऊं मंडल तक भगवान भोले भंडारी के अनगिनत धाम हैं। जो आलौकिक हैं और पौराणिक रूप से हिंदू धर्म के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं।

टीम जागरण, देहरादून: Sawan 2023 Uttarakhand Shiva Temple: देवभूमि उत्तराखंड के कण-कण में भगवान शंकर विद्यमान हैं। यहां गढ़वाल से लेकर कुमाऊं मंडल तक भगवान भोले भंडारी के अनगिनत धाम हैं। जो आलौकिक हैं और पौराणिक रूप से हिंदू धर्म के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। सावन में यहां भारी संख्या में भक्त दर्शन के लिए पहुंचते हैं। आज 10 जुलाई को सावन का पहला सोमवार है। आज हम आपको उत्तराखंड के ऐसे ही पांच प्रमुख शिव धामों के बारे में बताने जा रहे हैं।
केदारनाथ धाम
द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक केदारनाथ धाम उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जनपद में स्थित है। स्कंद पुराण के केदार खंड में इसका उल्लेख हुआ है। यहां भगवान शिव लिंग रूप में विराजमान हैं। कहा जाता है कि पांडवों के वंशज जन्मेजय ने केदारनाथ मंदिर की स्थापना की थी। मंदिर का निर्माण कत्यूरी शैली में हुआ है। बाद में आदि शंकराचार्य ने इसका जीर्णोद्धार कराया। हलांकि, यह मंदिर छह माह के लिए श्रद्धालुओं के लिए खुलता है। शीतकाल में इसके कपाट बंद रहते हैं।
यह भी कहा जाता है कि हिमालय के केदार पर्वत पर भगवान विष्णु के अवतार तपस्वी नर और नारायण ऋषि ने तपस्या की थी। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए। जिसके बाद नर और नारायण ऋषि ने भगवान शिव से ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वर प्राप्त किया। राहुल सांकृत्यायन के अनुसार यह मंदिर 12वीं-13वीं शताब्दी का है। ग्वालियर से मिली एक राजा भोज स्तुति के अनुसार यह उनके द्वारा बनाया गया मंदिर है। वह राजा 1076-99 काल के थे।
कैसे पहुंचें केदारनाथ धाम?
रुद्रप्रयाग से केदारनाथ की दूरी 75 किमी है। तीसरे दिन यहां के लिए चलें। यहां से गौरीकुंड के 14 किमी ट्रैक के लिए पैदल, डांडी कांडी और डोली से निकल सकते हैं। केदारनाथ पहुंच कर आप शाम की आरती में भाग ले सकते हैं।
दिल्ली से केदारनाथ के लिए रोड मैप
दिल्ली- हरिद्वार - ऋषिकेश- देवप्रयाग - श्रीनगर - रुद्रप्रयाग - गौरीकुंड (तिलवाड़ा-अगस्तमुनि-चंद्रपुरी-कुंड-गुप्तकाशी- फाटा-सीतापुर-सोनप्रयाग के माध्यम से) - केदारनाथ (ट्रैक द्वारा) 14 किमी
जागेश्वर धाम
उत्तराखंड के अल्मोड़ा जनपद में स्थित जागेश्वर धाम में यूं तो सालभर श्रद्धालुओं का आना लगा रहता है, लेकिन सावन में यहां जन सैलाब उमड़ पड़ता है। जागेश्वर धाम भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक है। ऐसी मान्यता है कि यह प्रथम मंदिर है, जहां लिंग के रूप में शिव पूजन की परंपरा सबसे पहले शुरू हुई। इसे भगवान शिव की तपस्थली माना जाता है। इस मंदिर को योगेश्वर नाम से भी जाना जाता है। इसका उल्लेख स्कंद पुराण, शिव पुराण और लिंग पुराण में भी मिलता है।
यह भी मान्यता है कि भगवान श्रीराम के पुत्र लव-कुश ने यहां यज्ञ आयोजित किया था, जिसके लिए उन्होंने देवताओं को आमंत्रित किया। मान्यता है कि उन्होंने ही इन मंदिरों की स्थापना की थी। जागेश्वर में लगभग 250 छोटे-बड़े मंदिर हैं। जागेश्वर मंदिर परिसर में 125 मंदिरों का समूह है। मंदिरों का निर्माण पत्थरों की बड़ी-बड़ी शिलाओं से किया गया है।
कैसे पहुंचें जागेश्वर धाम?
अल्मोड़ा जिले में स्थिति जागेश्वर कोठगोदाम और देहरादून से पहुंचा जा सकता है। काठगोदाम जहां रेल मार्ग से पहुंचा जा सकता है वहीं, दून हवाई सेवा से भी पहुंचा जा सकता है। यहां का निकटवर्ती हवाई अड्डा कुमाऊं में पंतनगर और गढ़वाल में देहरादून स्थित जॉली ग्रांट एयरपोर्ट है। काठगोदाम से सीधे बस और टैक्सी की सुविधा अल्मोड़ा के लिए है। सड़क मार्गों से जागेश्वर राज्य के बड़े शहर जुड़े हैं।
टपकेश्वर महादेव मंदिर
देहरादून शहर से करीब छह किलोमीटर दूर गढ़ी कैंट छावनी क्षेत्र में तमसा नदी के तट परऐतिहासिक श्री टपकेश्वर महादेव मंदिर स्थित है। कहा जाता है कि महाभारत काल से पहले गुरु द्रोणाचार्य के तप से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने दर्शन दिए।
गुरु द्रोण के अनुरोध पर ही भगवान शिव जगत कल्याण को लिंग के रूप में स्थापित हो गए। इसके बाद द्रोणाचार्य ने शिव की पूजा की और अश्वत्थामा का जन्म हुआ। पूरे सावन के महीने यहां मेले का माहौल बना रहता है और दर्शन के लिए लंबी लाइन लगानी पड़ती है।
कैसे पहुंचें टपकेश्वर महादेव मंदिर?
टपकेश्वर महादेव मंदिर आइएसबीटी से तकरीबन सात किलोमीटर, जबकि घंटाघर से पांच किलोमीटर की दूरी पर है। आइएसबीटी से जीएमएस रोड होते हुए गढ़ी कैंट तक विक्रम आते हैं। यहां जाने के लिए आइएसबीटी से जीएमएस रोड, गढ़ी कैंट से टपकेश्वर पहुंच सकते हैं। इसके अलावा यदि आप रेलवे स्टेशन से जा रहे हैं तो स्टेशन से दर्शनलाल चौक, घंटाघर, कौलागढ़ रोड से गढ़ी कैंट होते हुए पहुंच सकते हैं। रेलवे स्टेशन से सहारनपुर चौक कांवली रोड होते हुए भी गढ़ी कैंट तक जा सकते हैं। मंदिर से कुछ पहले वाहन के लिए पार्किंग की व्यवस्था है और यहां विभिन्न दुकानें भी सजी रहती हैं। जहां से प्रसाद, गंगाजल, दूध आदि खरीदारी कर सकते हैं। यहां से नीचे सीढ़ियों से उतरने के बाद यहीं तमसा नदी के तट पर स्थित है टपकेश्वर महादेव मंदिर। यहां पहुंचते ही मन शांत ओर प्रसन्न होता है।
दक्षेश्वर महादेव मंदिर
हरिद्वार जनपद के कनखल में दक्षेश्वर महादेव मंदिर स्थित है। भगवान शिव का यह मंदिर सती के पिता राजा दक्ष प्रजापित के नाम पर है। पौराणिक मान्यता है कि सावन मास में भोलेनाथ अपनी ससुराल हरिद्वार स्थित कनखल में दक्षेश्वर महादेव के नाम से विराजते हैं और यहीं सृष्टि का संचालन करते हैं। कनखल के दक्ष मंदिर में सावन माह में भक्तों का तांता लगा रहता है।
कैसे पहुंचें दक्षेश्वर महादेव मंदिर?
मंदिर हरिद्वार शहर से चार किमी दूर कनखल में स्थित है। मंदिर तक आसानी से वाहन से पहुंचा जा सकता है। यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन हरिद्वार रेलवे स्टेशन और निकटतम हवाई अड्डा जौलीग्रांट है। यहां से टैक्सी लेकर आप मंदिर तक पहुंच सकते हैं।
बाबा बागनाथ मंदिर
उत्तराखंड के बागेश्वर जनपद में सरयू-गोमती नदियों के संगम पर प्रसिद्ध शिवालय बागनाथ मंदिर स्थित है। वहीं देश में भगवान शिव का एक मंदिर ऐसा भी है, जहां भगवान शिव बाघ रूप में विराजमान हैं। उत्तराखंड में यह एकमात्र प्राचीन शिव मंदिर है जो कि दक्षिण मुखी है। जिसमें शिव शक्ति की जल लहरी पूर्व दिशा को है। यहां शिव पार्वती एक साथ स्वयंभू रूप में जल लहरी के मध्य विद्यमान हैं। यह मंदिर चंदवंशीय राजा लक्ष्मीचंद ने वर्ष 1602 में निर्मित करवाया था।
कैसे पहुंचें बाबा बागनाथ मंदिर?
बागनाथ मंदिर दिल्ली से 502 किलोमीटर दूर है। इसके साथ ही देहरादून से 470 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है।दिल्ली से बस और ट्रेन से यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है। आनंद विहार बस स्टेशन से बस और पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन से ट्रेन में हल्द्वानी पहुंचा जा सकता है। जहां से बस या टैक्सी से अल्मोड़ा होते बागेश्वर पहुंचा जा सकता है।
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