Russia-Ukraine Crisis : घर पहुंची अदिति, कहा- जेहन से नहीं हट रहे यूक्रेन में देखे बर्बादी के मंजर, बयां की आपबीती
यूक्रेन में फंसी उत्तराखंड के टिहरी जिले की बौराड़ी निवासी अदिति कंडारी अब अपने घर पहुंच चुकी हैं लेकिन उनके जेहन से युद्ध के दौर की तस्वीरें अभी नहीं हटी हैंं। इसी तरह यूक्रेन से लौटे अन्य छात्रों ने भी अपनी आपबीती बताई।

जागरण संवाददाता, नई टिहरी। यूक्रेन में फंसी उत्तराखंड के टिहरी जिले की बौराड़ी निवासी अदिति कंडारी अब अपने घर पहुंच चुकी हैं, लेकिन उनके जेहन से युद्ध के दौर की तस्वीरें अभी नहीं हटी हैंं। चेर्नित्सि विवि में एमबीबीएस की छात्रा अदिति यूक्रेन से रोमानिया बार्डर के रास्ते होते हुए रविवार शाम को टिहरी पहुंची। रविवार को अपने पिता दर्मियान कंडारी के साथ नई टिहरी पहुंची अदिति ने बताया कि वह चेर्नित्सि विवि में एमबीबीएस द्वितीय वर्ष की छात्रा हैं। उनके शहर में युद्ध का ज्यादा खतरा नहीं था, लेकिन युद्ध बढ़ने की आशंका से उनके कालेज में पढ़ने वाले सभी छात्र- छात्राएं डरे थे। अलग-अलग समूह में छात्र अपने घरों के लिए रवाना हुए। उनके साथ लगभग 45 छात्र- छात्राएं रोमानिया के रास्ते होते हुए अपने देश पहुंचे।
आठ किमी पैदल चलकर रोमानिया पहुंचीं
अदिति ने बताया कि यूक्रेन और रोमानिया बार्डर पर वाहनों के कारण ट्रैफिक जाम हो गया जिस कारण उन्होंने वाहन छोड़ दिए और लगभग आठ किमी पैदल चलकर रोमानिया पहुंचे। इस दौरान दो दिन के सफर में उन्होंने चाय और बिस्किट खाकर अपने भूख मिटाई। रोमानिया पहुंचने पर वहां के स्थानीय निवासियों ने उन्हें खाना दिया। जिसके बाद वह एयरपोर्ट पहुंचे और रविवार को देहरादून पहुंचे। अदिति के पिता दर्मियान कंडारी ने बताया कि भगवान की कृपा से हमारी बेटी सुरक्षित घर पहुंच गई। सभी बच्चे यूक्रेन से सुरक्षित घर आ जाएं इसके लिए सरकार को विशेष प्रयास करने चाहिए।
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रविवार को यूक्रेन से वापस अपने घर लौटी संस्कृति अग्रवाल
मेडिकल की शिक्षा के लिए यूक्रेन गई लैंसडौन निवासी संस्कृति अग्रवाल के 72 घंटे काफी चुनौतियों से भरे रहे। रविवार को जब संस्कृति अपने घर पहुंची तो उसने व उसके स्वजनों ने चैन की सांस ली। पर्यटन नगरी लैंसडौन की रहने वाली संस्कृति अग्रवाल इसी माह छह फरवरी को मेडिकल की पढ़ाई करने यूक्रेन गई थी। संस्कृति ने बताया कि शुरूआती समय में उसे चनीविक्सी शहर में सब कुछ ठीक लग रहा था। विदेश में मेडिकल की पढ़ाई को लेकर वह काफी उत्साहित थी, लेकिन कुछ दिन पूर्व युद्ध की घोषणा होते ही स्थितियां अचानक बदलने लगी। खाद्य सामग्री जमा करने के लिए सुपर मार्किट व अन्य प्रतिष्ठानों में लोगों की भीड़ उमड़ने लगी। चारों ओर अफरा-तफरी जैसा महौल दिखाई दे रहा था। ऐसे में सबसे अधिक परेशान भारतीय मूल के छात्रों को हो रही थी।
संस्कृति ने बताया कि वह लगातार फोन पर अपने स्वजनों से जुड़ी हुई थी, लेकिन मन में वतन वापस लौटने की भी चिंता बना हुई थी। संस्कृति बताती है कि चनीविक्सी शहर रोमानिया बार्डर के निकट था, जिससे वह जल्द वतन वापस लौटने में सफल रही। संस्कृति उन 152 छात्रों के साथ रविवार की सुबह भारत लौटी है, जिन्हें भारत सरकार की ओर से विशेष विमान से लाया गया। दिल्ली तक विमान से आने के बाद संस्कृति वापस कार से अपने घर पहुंची। संस्कृति के पिता अजय अग्रवाल लैंसडौन में व्यवसायी है, जबकि मां निशा अग्रवाल गृहणी हैं।
अपने घर लौट आई आकांक्षा
नई टिहरी के कीर्तिनगर ब्लाक की पिलानीधार की रहने वाली आकांक्षा अपने घर लौट आई है। घर लौटने पर परिजनों व ग्रामीणों ने खुशी जताई है। आकांक्षा का कहना है कि उन्हें डर तो लग रहा था लेकिन रोमानिया के लोगों ने काफी मदद की। आकांक्षा का कहना है कि रोमानिया के बार्डर से वह हवाई सेवा से स्वदेश लौटी है। आकांक्षा के पिता ईश्वरी प्रसाद जौलीग्रांट में बेटी को लेने पहुंचे। आकांक्षा यूक्रेन के चलीविटसी शहर में एमबीबीएस द्वितीय वर्ष की छात्रा है। उसका कहना है कि यूक्रेन में बदलते हालात से वह डरी हुई थी लेकिन जिस शहर में वह रह रही थी वहां पर हालत ज्यादा खराब नहीं थे। उसका कहना है कि रोमानिया के लोगाें ने खाने व अन्य मदद की है। आकांक्षा का कहना है कि घर लौटने की उन्हें खुशी है वहीं परिजनों ने भी उसके घर पहुंचने पर खुशी जताई। पिता ईश्वरी प्रसाद का कहना है कि वह लगातार बेटी के संपर्क में थे।
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