जहां रस्सियों के सहारे लक्ष्मण जी ने पार की थी नदी, अब बन रहा देश का पहला कांच का पुल; लक्ष्मण झूला का इतिहास
Lakshman Jhula उत्तराखंड का ऋषिकेश शहर घूमने के लिए सबसे बेहतरीन जगह है। यहां धार्मिक स्थल भी हैं और एडवेंचर करने के लिए एक्टिविटी भी। अगर आप ऋषिकेश जाएंगे तो यहां आपको लक्ष्मण झूला और राम झूला देखने को मिलेगा। लक्ष्मण झूला टिहरी गढ़वाल जिले में तपोवन और पौड़ी गढ़वाल जिले के जोंक को आपस में जोड़ता है। लक्ष्मण झूला का लक्ष्मण जी से खास नाता है।

ऋषिकेश, जागरण डिजिटल डेस्क। उत्तराखंड का ऋषिकेश... हर किसी की पसंदीदा जगहों में से एक हैं। योगभूमि में रूप में विख्यात ऋषिकेश उत्तराखंड के टूरिस्ट प्लेस में टॉप की लिस्ट में पहले नंबर पर आता है। ऋषिकेश में आपको एडवेंचर करने के लिए कई सारी एक्टिविटी भी मिल जाएंगी, तो वहीं भगवान के उपासकों के लिए ये बेस्ट जगह है। ऋषिकेश में कई विख्यात मंदिर हैं। इन सब में अगर ऋषिकेश में कुछ सबसे ज्यादा लोकप्रिय है तो, वो हैं लक्ष्मण और राम झूला।
ऋषिकेश के दो किनारों को जोड़ते दो पुल है। एक का नाम लक्ष्मण झूला, तो दूसरे का नाम है राम झूला। पर्यटकों एक तरफ से दूसरी तरफ जाने के लिए इन पुलों का इस्तेमाल करते हैं। भले ही आप सोच रहे हों कि ये पुल कोई आम पुल हैं, लेकिन इसकी खासियत और इतिहास आपकी इस सोच को बदल देगा। लक्ष्मण झूला को इन दिनों बंद कर दिया गया है।
पुल में आई दरारों ओर टूटती रस्सियों की वजह से इसे फिलहाल के लिए बंद कर दिया गया और इसकी जगह पर कांच का नया पुल बनाया जा रहा है। ये पुल भारत का पहला ग्लास ब्रिज यानी कांच का पुल होगा। इस कांच के पुल का नाम बजरंग सेतु होगा। इस झूले को मॉडर्न तकनीकी से लैस किया जा रहा है, लेकिन पुराने लक्ष्मण झूले का इतिहास बहुत पुराना है। आइए जानते है इसके इतिहास और निर्माण की जानकारी...
कब हुआ पुल का निर्माण
94 साल पुराना लक्ष्मण झूला अब भले ही लोगों के आने-जाने के लिए बंद कर दिया गया हो, लेकिन इसका इतिहास बहुत पुराना है। इसका निर्माण अंग्रेजों के जमाने में हुआ था। लक्ष्मण झूला 1929 में बनकर तैयार हो गया था। 1923 में इस पुल की नींव ब्रिटिश सरकार के कार्यकाल के दौरान पड़ी थी, लेकिन तेज बाढ़ के चलते साल 1924 में इसकी नींव ढह गई थी। इसके बाद एक बार फिर से इस पुल की नींव 1927 में रखी गई थी और 1929 में बनकर ये पुल तैयार हो गया था। यह पुल 11 अप्रैल 1930 को लोगों के लिए खोल दिया गया। खास बात ये है कि पहले इस पुल का निर्माण जूट की रस्सी से हुआ था। बाद में इसे कंक्रीट और लोहे की तारों से मजबूत बना दिया गया। इस पुल के निर्माण में जिन लोगों ने अहम भूमिका निभाई थी वो इस प्रकार हैं।
- मुख्य इंजीनियर (Chief Engineer) - पी. एच. टिलार्ड (P. H. Tillard)
- अधीक्षण इंजीनियर (Superintending Engineer)- ई. एच. कॉर्नेलियस (E. H. Cornelius)
- कार्यकारी इंजीनियर (Executive Engineer) - सी. एफ. हंटर (C. F. Hunter)
- सहायक इंजीनियर (Assistant Engineers)- जगदीश प्रसाद (Jagdish Prasad), अवध नारायण (Avadh Narain)
- ओवरसियर - बाला राम (Bala Ram)
क्यों कहते हैं लक्ष्मण झूला?
ये पुल दो महत्वपूर्ण गांवों - एक टिहरी गढ़वाल जिले में तपोवन और पौड़ी गढ़वाल जिले के जोंक को आपस में जोड़ता है। वैसे तो इस झूले का नाम सुनकर ही आपको भगवान राम के भाई लक्ष्मण की याद आ जाती होगी। आपकी याद और इस पुल के इतिहास का तालमेल बिल्कुल ठीक बैठता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि एक समय में, भगवान राम के भाई लक्ष्मण जी ने उसी जगह पर गंगा नदी पार की थी, जहां पुल का निर्माण किया गया है। मान्यताओं के अनुसार लक्ष्मण जी ने मात्र दो रस्सियों के सहारे नदी को पार किया था। बाद में इस रस्सी की जगह नदी पार करने के लिए पुल का निर्माण कराया गया और इसका नाम पड़ा लक्ष्मण झूला।
जूट से लेकर कांच तक के पुल का सफर
लक्ष्मण झूला दो किनारों के बीच का सेतु था। पर्यटकों के लिए तो ये बहुत ज्यादा लाभदायक था। खैर इस पुल पर जब आप गए होंगे तो ये झूलता हुआ पुल तारों का बन गया होगा, लेकिन सबसे पहले ये जूट की रस्सी से बना था। गंगा नदी के ऊपर बना यह पुल 450 फीट लंबा झूलता हुआ पुल है। शुरू में जूट के रस्सों से बना था, लेकिन बाद में इसे लोहे की तारों से मजबूत बनाया गया। इस पर खड़े होकर आपको दूर तक मां गंगा का कलकलाता जल दिखाई देगा। अब इस पुल की जगह कांच के पुल का निर्माण हो रहा है। नई तकनीकी से लैस ये बनने वाला पुल और भी ज्यादा आकर्षक होगा।
फिलहाल आवाजाही बंद, लोगों को है रही परेशानी
वैसे तो लक्ष्मण झूला सालो-साल तक लोगों के लिए खुला रहा। दो किनारों पर आने-जाने वाले लोगों के लिए ये झूला खास था क्योंकि इससे ऋषिकेश घूमने में भी आसानी होती है। दरअसल ऋषिकेश में तपोवन वो जगह हैं, जहां पर आप पूरा बाजार देख सकते हैं। तपोवन में ही लक्ष्मण और राम झूला बना है। यहां पर प्रसिद्ध त्रयंबकेश्वर मंदिर है। पर्यटक तपोवन में ही होटल लेते हैं, क्योंकि इससे यहां घूमना आसान होता है। लक्ष्मण झूला यहां से सबसे पास और राम झूला करीब करीब दो किलोमीटर इससे दूर है।
लक्ष्मण झूला तीन अप्रैल 2022 को लोगों के आने-जाने के लिए पूरी तरह से बंद कर दिया गया। इसकी जगह पर तेजी से पहले कांच के पुल का निर्माण किया जा रहा है। लक्ष्मण झूला बंद होने की वजह से लोगों को परेशानी हो रही है। गंगा आरती देखने के लिए त्रिवेणी घाट जाने वालों के लिए कठिनाई खड़ी हो गई है। नदी पार कराने के लिए बोट का इस्तेमाल किया जा रहा है और 40 रुपये एक आदमी के हिसाब से किराया लिया जा रहा है। फिलहाल लोगों को जल्द से जल्द इस नए कांच के पुल के निर्माण संपन्न होने का इंतजार है।
लक्ष्मण झूला कैसे पहुंचे
ट्रेन से जाने वालों के लिए पास का रेलवे स्टेशन ऋषिकेश रेलवे स्टेशन है। जो आदर्श नगर से 4 किमी दूर है। अगर आप फ्लाइट से यहां आना चाहते हैं, तो देहरादून में जॉली ग्रांट हवाई अड्डा है, जो लक्ष्मण झूला से लगभग 22 किमी दूर है। रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डा पहुंचने के बाद आप लक्ष्मण झूला तक जाने के लिए लोकल बस ले सकते हैं या ऑटो रिक्शा किराए पर ले सकते हैं। वहीं अगर आप बस से जाते हैं तो बस आपको नेपाली फार्म फ्लाईओवर पर उतारेगी। वहीं से आप शेयरिंग ऑटो जिसका किराया 50 से 100 रुपये है वो कर सकते हैं, या फिर पूरी ऑटो जिसका किराया 700 से 800 रुपये है, वो करके जा सकते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
लक्ष्मण झूला ऋषिकेश में गंगा नदी पर बना एक पुल है। यह झूला ब्रिटिश साम्राज्य के समय बना। साल 1930 में इस झूले को आम जनता की आवाजाही के लिए खोला गया था।
तीन अप्रैल 2022 को लक्ष्मण झूला पुल की सपोर्टिंग वायर अचानक टूट गई। इसके साथ ही कंक्रीट में दरारें आने के बाद इस झुले को बंद कर दिया गया। अब इसकी जगह पर कांच का पुल बनाया जा रहा है, जा भारत का पहला ग्लास ब्रिज होगा।
लक्ष्मण झूला 1929 में बनकर तैयार हो गया था। 1923 में इस पुल की नींव ब्रिटिश सरकार के कार्यकाल के दौरान पड़ी थी, लेकिन तेज बाढ़ के चलते साल 1924 में इसकी नींव ढह गई थी। इसके बाद एक बार फिर से इस पुल की नींव 1927 में रखी गई थी और 1929 में बनकर ये पुल तैयार हो गया था। यह पुल 11 अप्रैल 1930 को लोगों के लिए खोल दिया गया।
हिंदू पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्रीराम के छोटे भाई लक्ष्मण ने इसी स्थान पर जूट की रस्सियों के सहारे गंगा नदी को पार किया था। बाद में इसी जगह पर पुल का निर्माण कराया गया और इसका नाम पड़ा लक्ष्मण झूला।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।