72 घंटे अकेले ही चीनी फौज से लड़ा उत्तराखंड का यह जांबाज, भारतीय सेना 'बाबा जसंवत' नाम से देती है सम्मान
1962 के भारत चीन युद्ध में जसवंत सिंह रावत अकेले 72 घंटे तक चीनियों से लड़ते रहे। उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। भारतीय सेना इस जांबाज को बाबा जसंवत के नाम से सम्मान देती है।
जागरण संवाददाता, देहरादून। वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध चल रहा था। इस युद्ध में एक सैनिक ऐसा था जिसने अकेले 72 घंटे तक चीनियों से लोहा लिया हुआ था। हम बात कर रहे हैं गढ़वाल राइफल्स के राइफलमैन जसवंत सिंह रावत की। उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया है। आज उत्तराखंड के इस वीर सपूत की पुण्यतिथि है। आइए जानते हैं इनके वीरता की कहानी।
पौड़ी गढ़वाल में हुआ था जन्म
उत्तराखंड के पौड़ी जनपद के बीरोंखाल ब्लाक के ग्राम बांड़ियू में जसवंत सिंह रावत का जन्म हुआ। 19 अगस्त 1960 को वह 19 वर्ष की आयु में गढ़वाल राइफल्स में भर्ती हुए। उन्होंने 14 सितंबर 1961 को ट्रेनिंग पूरी की। इसके उनकी तैनाती अरुणाचल प्रदेश में चीन सीमा पर हुई।
नूरानांग ब्रिज की सुरक्षा के लिए किए तैनात
चीन सीमा पर नवंबर 1962 को चौथी गढ़वाल राइफल्स को नूरानांग ब्रिज की सुरक्षा के लिए तैनात किया गया। राइफलमैन जसवंत सिंह रावत ने लांसनायक त्रिलोक सिंह और राइफलमैन गोपाल सिंह के साथ चीनी सैनिकों का मुकाबला किया। इस युद्ध में 3 अधिकारी, 5 जेसीओ, 148 अन्य पद और 7 गैर लड़ाकू सैनिक बलिदान हुए। इसके बाद भी चौथी गढ़वाल राइफल्स के बचे जवानों ने चीनियों को आगे नहीं बढ़ने दिया।
अकेले ही संभाली पांच एलएमजी
राइफलमैन जसवंत सिंह रावत ने अकेले ही पोस्ट से 5 एलएमजी (लाइट मशीन गन) संभाली। वह 72 घंटों तक दुशमनों पर गोलीबारी करते रहे। इससे दुश्मन भ्रम में पड़ गए। तब तक चीनी ने अपने 300 सैनिक खो चुके थे।
आज भी लगाया जाता है बिस्तर
राइफलमैन जसवंत सिंह के स्मारक पर सेना के जवान और अधिकारी उन्हें सैल्यूट करते हैं। इसके बाद ही सैनिक आगे बढ़ते हैं। यह आज भी बाबा जसवंत सिंह के लिए रात में बिस्तर लगाया जाता है। साथ ही खाने की थाली भी लगती है। कहते हैं कि बाबा का बिस्तर सुबह खुला हुआ मिलता है।
चीनी भी करते वीरता को सलाम
राइफलमैन जसवंत सिंह रावत की वीरता को चीनी भी सलाम करते हैं। चीनी सेना ने जसवंत सिंह की पार्थिव देह को सलामी देकर उनकी एक कांसे की प्रतिमा भारतीय सेना को भेंट की।
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पोस्ट का नाम जसवंत गढ़
भारतीय सेना जसवंत सिंह रावत को 'बाबा जसंवत' के नाम से सम्मान देती है। वह जिस पोस्ट पर बलिदान हुए थे, भारत सरकार ने उसे जसवंत गढ़ नाम दिया है। बाबा की याद मेंलैंसडौन स्थित गढ़वाल राइफल्स रेजीमेंटल सेंटर में भी 'जसवंत द्वार' बनाया गया है।
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