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पीएम नरेंद्र मोदी पर ही उत्तराखंड के विकास का दारोमदार

त्रिवेंद्र सरकार के सामने बेकाबू खर्चों पर काबू पाने, ढांचागत विकास को धन की कमी पर पार पाने की चुनौती है। ऐसे में प्रदेश का विकास का दारोमदार पीएम मोदी पर है।

By BhanuEdited By: Published: Fri, 23 Mar 2018 08:31 AM (IST)Updated: Fri, 23 Mar 2018 11:12 AM (IST)
पीएम नरेंद्र मोदी पर ही उत्तराखंड के विकास का दारोमदार

देहरादून, [रविंद्र बड़थ्वाल]: प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आई त्रिवेंद्र सरकार के सामने बेकाबू होते खर्चों पर काबू पाने तो आम आदमी को राहत पहुंचाने को ढांचागत विकास को धन की कमी पर पार पाने की चुनौती है। आमदनी कम और बढ़ते खर्च ने सरकार की परेशानी बढ़ा दी है। नतीजा सीधे विकास कार्यों के लिए धन संकट के रूप में सामने है। 

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शहर से लेकर गावों में सड़क, खड़ंजे बिछाने हों या पानी-बिजली को तरसते लोगों को राहत पहुंचानी हो, इन तमाम विकास कार्यों की नए बजट में हिस्सेदारी पुराने वित्तीय वर्ष 2017-18 की तुलना में 13.23 फीसद से घटकर मात्र 12.73 फीसद रह गई है। चिंता का दूसरा पहलू यह भी है कि केंद्र की मोदी सरकार आंख मूंदकर राज्य की भाजपा सरकार को मदद देने को तैयार नहीं है। 

2017-18 के बजट में राज्य को अपनी अपेक्षाओं की तुलना में केंद्र से अपेक्षा से करीब डेढ़ हजार करोड़ कम मिलने का अनुमान है। जाहिर है कि राज्य सरकार को केंद्रपोषित योजनाओं में खर्च और उपयोगिता प्रमाणपत्र मुहैया कराए बगैर धन मिलना मुमकिन नहीं होगा। डबल इंजन का लाभ लेने के लिए राज्य के सिंगल इंजन को भी पहली पूरी कुव्वत के साथ छलांग लगानी होगी। 

प्रदेश की भाजपा सरकार डबल इंजन के आगे नत मस्तक यूं ही नहीं है। दरअसल, जन अपेक्षाओं पर खरा उतरने का दबाव ही है कि राज्य सरकार ने अपने दूसरे बजट को भी करमुक्त रखा है। लेकिन, राज्य के आर्थिक संसाधनों में किसतरह इजाफा होगा, इसे लेकर बजट में रणनीति साफ नहीं है। 

वर्ष 2018-19 के कुल बजट 45585.09 करोड़ का बड़ा हिस्सा 31.55 फीसद सिर्फ वेतन, भत्ते, मजदूरी समेत अधिष्ठान खर्च पर जाया हो रहा है। यह खर्च 14382 करोड़ से ज्यादा है। वहीं बड़े और छोटे निर्माण कार्यों के लिए महज 5803.89 करोड़ ही मिल रहे हैं। यह धनराशि पिछले साल निर्माण कार्यों के लिए रखी गई धनराशि 5288.11 करोड़ से भले ही कुछ ज्यादा हो, लेकिन बजट आकार की तुलना में इसकी हिस्सेदारी कम हुई है। जाहिर है कि विकास कार्यों के लिए पाई-पाई के जुगाड़ के लिए राज्य सरकार को खासी मशक्कत करनी पड़ रही है।  

6700 करोड़ से ज्यादा राजकोषीय घाटे को आर्थिक आंकड़ों की बाजीगरी से भले ही राजस्व सरप्लस बताया जाए, लेकिन यह सवाल मौजूं है कि सरकार अपने संसाधनों में इजाफा किए बगैर बढ़ते खर्च के अंतर को किसतरह पाटेगी। राज्य अपने संसाधनों से जितना जुटा पा रहा है, साल-दर-साल खर्च की रफ्तार उससे ज्यादा है। 

सरकार के माथे पर बल डालने वाली बात ये भी है कि केंद्र की मोदी सरकार का जोर परफॉर्मेंस पर है। यानी परफॉर्मेंस के बूते ही राज्य सरकार केंद्रीय मदद में रिफॉर्म या ट्रांसफॉर्म की उम्मीद कर सकती है। वित्तीय वर्ष में राज्य सरकार को केंद्र सरकार झटका दे चुकी है। केंद्र से प्राप्त होने वाली प्राप्तियों में करीब 1488.50 करोड़ की कमी यानी बजट अनुमानों से 9.58 फीसद की कमी का अंदेशा जताया गया है। 

यही वजह है कि राज्य सरकार को अब केंद्रपोषित योजनाओं से भी ज्यादा केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजनाओं केदारनाथ पुनर्निर्माण, ऑल वेदर रोड, ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन, भारतमाला परियोजनाओं से है। 

इसके साथ ही पेयजल के विश्व बैंक की सहायता से करीब 975 करोड़ व 840 करोड़ की योजनाओं, औद्यानिकी के तहत 700 करोड़ की बाह्य सहायतित, लघु, मध्यम उद्योगों के तहत करीब 600 करोड़, आपदा प्रबंधन के लिए 650 करोड़, ऊर्जा विभाग की 1400 करोड़ और शहरी विकास विभाग के तहत नई बाह्य सहायतित परियोजना पर करीब 1500 करोड़ की सैद्धांतिक सहमति वाली योजनाओं से बड़ी उम्मीद हैं। 

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