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    उत्‍तराखंड: जड़ें जमाने की कोशिश में क्षेत्रीय दल उक्रांद

    By Sunil NegiEdited By:
    Updated: Mon, 24 Jul 2017 04:50 PM (IST)

    उत्तराखंड क्रांति दल प्रदेश में अपनी जड़ें जमाने की तैयारी कर रहा है। पार्टी के स्थापना दिवस के बहाने सरकार के खिलाफ विभिन्न जनमुद्दों पर मोर्चा खोलने की तैयारी है।

    उत्‍तराखंड: जड़ें जमाने की कोशिश में क्षेत्रीय दल उक्रांद

    देहरादून, [राज्य ब्यूरो]: उत्तराखंड क्रांति दल प्रदेश में अपनी जड़ें जमाने की तैयारी कर रहा है। पार्टी के स्थापना दिवस के बहाने सरकार के खिलाफ विभिन्न जनमुद्दों पर मोर्चा खोलने की तैयारी है। इसे विरोध दिवस के रूप में मनाते हुए गढ़वाल व कुमाऊं मंडल में बकायदा वरिष्ठ पदाधिकारियों को जिम्मेदारी सौंपी जा रही है। इतना ही नहीं, दल अब विभिन्न प्रकोष्ठ को गठन कर उक्रांद के विभिन्न तबकों को भी अपने साथ लाने के मंसूबे पाले हुए है। 

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    राज्य आंदोलन के गर्भ से निकले उत्तराखंड क्रांति दल ने प्रदेश की राजनीति में तमाम उतार चढ़ाव देखे हैं। राज्य गठन से पहले एक समय ऐसा भी था तब उक्रांद नेताओं के एक आह्वान पर हजारों उत्तराखंडी सड़कों पर आ खड़े होते थे। राज्य गठन के बाद उक्रांद को इसका फायदा भी मिला। यही कारण भी रहा कि पहले चुनाव में दल के चार प्रत्याशी विधायक के रूप में चुन कर विधानसभा तक पहुंचे।

    पर्वतीय क्षेत्रों में पार्टी का मत प्रतिशत भी खासा अच्छा रहा। इस कारण उक्रांद को राजनीतिक दल के रूप में मान्यता भी मिली। इसके बाद स्थिति यह बनी कि दल के नेता सत्ता से नजदीकी छोड़ नहीं पाए। इससे दल लगातार गर्त में जाता रहा। तब से कई बार बिखरने के बाद दल ने अब फिर एका की राह पकड़ी है। इस समय दल के सामने सबसे बड़ी चुनौती जनता के बीच खुद को स्थापित करने की है। इस बार उक्रांद के तेवर कुछ बदले हुए भी नजर आ रहे हैं। 

     

    दल की कमान संभालने के बाद दिवाकर भट्ट किसी ने किसी बहाने सरकार को निशाने पर रखे हुए हैं। अब 25 जुलाई को पार्टी के स्थापना दिवस पर दल विभिन्न जनमुद्दों पर सरकार के खिलाफ बिगुल फूंकने की तैयारी कर रहा है। फिलहाल दल ने उत्तर प्रदेश के साथ परिसंपत्ति बंटवारे, शराब विरोधी आंदोलन में महिलाओं पर लगे मुकदमों को वापस लेने, किसानों की आत्महत्या, पंचेश्वर बांध व आंदोलनरत बेरोजगार संगठनों की मांगों के समर्थन में प्रदेशव्यापी आंदोलन चलाने की तैयारी की है। 

    इसके लिए बकायदा पदाधिकारियों को जिम्मेदारी तक दी गई है। अब दल के सामने चुनौती इस आंदोलन को सफल बनाने की है ताकि वह फिर से खुद को स्थापित कर सके।

     

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