Move to Jagran APP

इस जंगल में नहीं सूखते बेजुबानों के हलक, बन सकता है नजीर

पांच बीघा क्षेत्र में फैले जोहड़ में प्रतिवर्ष करीब 50 लाख लीटर वर्षाजल का संचय हो रहा है। जिससे बेजुबान जानवरों की आसानी से प्यास बुझ रही है।

By Edited By: Published: Sat, 05 Jan 2019 03:01 AM (IST)Updated: Sat, 05 Jan 2019 08:25 PM (IST)
इस जंगल में नहीं सूखते बेजुबानों के हलक, बन सकता है नजीर
इस जंगल में नहीं सूखते बेजुबानों के हलक, बन सकता है नजीर

देहरादून, केदार दत्त। आज के दौर में सरकारी विभागों की हीलाहवाली की बातें भले ही आम हों, मगर देहरादून वन प्रभाग की झाझरा रेंज की तस्वीर इससे कुछ जुदा है। महकमे ने बेजुबानों के सूखते हलक तर करने के लिए बूंदों को सहेजना शुरू किया। वहां आज पांच बीघा क्षेत्र में फैले इस जोहड़ (जलाशय) में प्रतिवर्ष करीब 50 लाख लीटर वर्षाजल का संचय हो रहा है। लिहाजा, इस जंगल में बेजुबानों को प्यास बुझाने को भटकना नहीं पड़ता। अब झाझरा के जंगल को 'सिटी फॉरेस्ट' के रूप में विकसित करने की चल रही मुहिम में इस जलाशय को भी लिया गया है। इसके तहत उसका सौंदर्यीकरण कराया जाएगा, ताकि इसे नजीर के रूप में पेश किया जा सके। 

loksabha election banner

देहरादून शहर से 18 किलोमीटर के फासले पर मौजूद है झाझरा रेंज के कंपार्टमेंट संख्या दो में वर्षा जल संग्रहण का यह शानदार नमूना। घने जंगल में इस स्थान पर छोटा सा प्राकृतिक जलस्रोत था, जिसका पानी जोहड़ में जमा होने के साथ ही बारिश का पानी भी इसमें रुकता था। धीरे-धीरे इस यह जोहड़ सिमटता चला गया। 

साल 2002-03 के आसपास इसमें जलकुंभी, जंगली धान जैसी वनस्पतियों के डेरा डालने से इस पर संकट के बादल मंडराने लगे। इससे महकमे के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आई। जोहड़ के खत्म होने पर बेजुबानों के हलक सूखना तय था। जाहिर है, उनके आबादी की तरफ रुख करने का खतरा भी कम नहीं था। यही नहीं, जोहड़ के सूखने पर फायर सीजन में आसपास के क्षेत्र में आग के खतरे की आशंका भी थी। 

महकमे ने इस सबके मद्देनजर जोहड़ में पसरी जलकुंभी समेत दूसरे झाड़-झंकाड़ को हटाया। फिर जोहड़ को संवारने और वहां वर्षाजल रोकने के प्रयास शुरू किए गए। इसी कड़ी में 2003-04 के दौरान तत्कालीन रेंज अधिकारी आरपीएस नेगी ने जोहड़ को विस्तार देने की पहल की। एक बीघा में फैले इस जलाशय के दायरे को पांच बीघा के लगभग किया गया। नतीजतन, जोहड़ ने बड़े तालाब की शक्ल ले ली। इसमें जमा पानी सर्दी में बारिश न होने की दशा में मई-जून में कम हो जा रहा था। इसे देखते हुए इसके तीन तरफ 285 मीटर की चाहरदीवारी की गई। 

ऊपर की तरफ का हिस्सा बारिश के दौरान जंगल से इसमें पानी आने के लिए खुला छोड़ा गया। नतीजे उत्साहनजक रहे। अब इसमें पूरे साल पानी रहता है। प्रभाग के उप प्रभागीय वनाधिकारी विनय रतूड़ी बताते हैं कि झाझरा को सिटी फॉरेस्ट के रूप में विकसित किया जा रहा है। इसके तहत वहां विभिन्न कार्य हो रहे हैं। 

उन्होंने बताया कि इस तालाब को भी सिटी फॉरेस्ट में लिया गया है। इसके तहत कुछ और हिस्से को तालाब का हिस्सा बनाकर इसकी साफ-सफाई और सौंदर्यीकरण के साथ ही बरसात में जंगल से आने वाले पानी को गूलों के जरिये इसमें डालने की योजना है। उन्होंने कहा कि वर्षा जल संरक्षण की इस तरह की पहल अन्य क्षेत्रों में भी अपनाई जाएगी।

यह भी पढ़ें: उत्तराखंड में बदलेगी खेती की तस्वीर, कृषि क्षेत्र को नहीं ताकना पड़ेगा आसमान

यह भी पढ़ें: खुद तो वर्षा जल बचाया, नहीं सिखा पाए दूसरों को

यह भी पढ़ें: इस मानसून से सरकारी भवन सहेजने लगेंगे वर्षा जल


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.