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उत्तराखंड में बदलेगी खेती की तस्वीर, कृषि क्षेत्र को नहीं ताकना पड़ेगा आसमान

उत्तराखंंड सरकार का पूरा फोकस अब वर्षा जल संरक्षण पर है। इसके लिए किसानों को भी प्रेरित किया जाएगा।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Mon, 10 Dec 2018 08:42 PM (IST)Updated: Tue, 11 Dec 2018 07:56 PM (IST)
उत्तराखंड में बदलेगी खेती की तस्वीर, कृषि क्षेत्र को नहीं ताकना पड़ेगा आसमान

देहरादून, केदार दत्त।  उत्तराखंड में बूंदों को सहेजकर खेती की तस्वीर बदलने की तैयारी है। इस कड़ी में सरकार ने वर्षा जल संग्रहण के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने का निश्चय किया है। राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, सिंचित क्षेत्र कार्यक्रम समेत अन्य योजनाओं के तहत उन्हें वर्षा जल संरक्षण के लिए अनुदान सहित ऋण मुहैया कराया जाएगा। इसमें भी मुख्य फोकस पर्वतीय क्षेत्र के किसानों पर रहेगा, जहां सिंचाई के साधन न के बराबर हैं। सरकार की इस पहल को राज्य में घटती कृषि विकास दर और सिंचाई के साधनों के अभाव के मद्देनजर उठाए जाने वाले कदम के तौर पर देखा जा रहा है।

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सरकारी आंकड़ों को देखें तो राज्य गठन के वक्त उत्तराखंड में कृषि का क्षेत्रफल 7.70 लाख हेक्टेयर था, जो अब 6.98 लाख हेक्टेयर पर आ गया है। यानी पिछले 18 सालों में 72 हजार हेक्टेयर कृषि भूमि बंजर में तब्दील हुई है। हालांकि, गैर सरकारी आंकड़े बंजर भूमि का रकबा एक लाख हेक्टेयर के करीब बताते हैं। सरकारी आंकड़ों पर ही गौर करें तो कृषि क्षेत्र की हालत बहुत अच्छी नहीं है। राज्य घरेलू उत्पाद में जहां 2011-12 में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी 7.05 थी, वह 2017-18 में घटकर 4.46 फीसद पर आ गई है।

खेती के सिमटने के पीछे पलायन, जंगली जानवर और सबसे अहम कारण मौसम है। अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि राज्य के 95 में से 71 विकासखंडों में खेती पूरी तरह वर्षा पर निर्भर है। यानी वक्त पर वर्षा हो गई तो ठीक, अन्यथा बिन पानी सब सून। इस क्रम में खेतों तक सिंचाई सुविधा मुहैया कराने के साधनों की बात करें तो पहाड़ में केवल 13 फीसद क्षेत्र ही सिंचित क्षेत्र है। अलबत्ता, मैदानी क्षेत्र में 94 फीसद सिंचित क्षेत्र है, मगर वहां बढ़ती बिजली की खपत किसानों पर भारी पड़ रही है।

इन सब परिस्थितियों ने सरकार के माथे पर बल डाले हुए हैं। ऐसे में सरकार ने बारिश की बूंदों को सहेजकर इसके जरिये सिंचाई की समस्या से पार पाने की ठानी है। बता दें कि राज्य में वर्षभर में 1529 मिमी बारिश होती है, जिसमें मानसून की हिस्सेदारी 1221.9 मिमी है। बारिश का यह पानी यूं ही जाया जाता है। यदि इसका कुछ हिस्सा भी सहेजकर खेती के काम में लाया जाए तो तस्वीर बदलते देर नहीं लगेगी। यानी, खेतों की सिंचाई के लिए इंद्रदेव का मुंह नहीं ताकना पड़ेगा।

सरकार ने इस क्रम में प्रदेशभर में किसानों को वर्षा जल संग्रहण के लिए प्रोत्साहित करने का निश्चय किया है। कृषि मंत्री सुबोध उनियाल के अनुसार इसके लिए राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत एकीकृत कृषि एवं भूमि संरक्षण कार्यक्रम, राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन के तहत सिंचित क्षेत्र कार्यक्रम, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन जैसी योजनाओं में किसानों को अनुदान सहित ऋण मुहैया कराने का प्रावधान है। इसमें 90 से 100 फीसद तक का अनुदान है। उन्होंने बताया कि वर्षा जल संग्रहण के लिए पर्वतीय क्षेत्रों पर खास फोकस किया जाएगा, जहां दिक्कतें सबसे अधिक हैं।

कृषि मंत्री सुबोध उनियाल ने बताया कि सरकार का फोकस वर्षा जल संग्रहण पर है। खासकर, पर्वतीय क्षेत्रों में जहां दिक्कत अधिक है। वहां वर्षा जल संग्रहण के तहत जल संभरण टैंक, खाल-चाल जैसे वर्षा जल संग्रहण के तरीकों को बढ़ावा देकर जहां खेतों के लिए सिंचाई पानी उपलब्ध हो सकेगा, वहीं जलस्रोत भी रीचार्ज होंगे। इसके लिए विभिन्न योजनाओं के तहत किसानों को जागरूक और प्रोत्साहित किया जाएगा।

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