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सरकारी विद्यालयों में मजबूत हो रही है शिक्षा की गुणवत्ता की पैठ

उत्तराखंड बोर्ड के हाईस्कूल और इंटर परीक्षा के इस वर्ष के नतीजे ये साबित कर रहे हैं कि शिक्षा की गुणवत्ता की पैठ सरकारी विद्यालयों में अब मजबूत हो रही है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Fri, 31 May 2019 09:24 AM (IST)Updated: Fri, 31 May 2019 09:24 AM (IST)
सरकारी विद्यालयों में मजबूत हो रही है शिक्षा की गुणवत्ता की पैठ

देहरादून, रविंद्र बड़थ्वाल। उत्तराखंड के सरकारी विद्यालयों के लिए वर्ष 2019 खुशियों की दस्तक लेकर आया है। उत्तराखंड बोर्ड के हाईस्कूल और इंटर परीक्षा के इस वर्ष के नतीजे ये साबित कर रहे हैं कि शिक्षा की गुणवत्ता की पैठ सरकारी विद्यालयों में अब मजबूत हो रही है।

सम्मान सहित प्रथम श्रेणी में पास होने के मामले में हाईस्कूल और इंटर में जिसतरह छात्र-छात्राओं ने आत्मविश्वास के साथ छलांग लगाई है, उससे भविष्य में सरकारी शिक्षा के हौसले को नया बल मिलने का संकेत माना जा सकता है। घटती छात्रसंख्या से परेशानहाल राज्य बोर्ड के विद्यालयों में पिछले साल की तुलना में इस बार हाईस्कूल में कई सालों बाद छात्रसंख्या में मामूली वृद्धि दिखाई दी है। इस खुशनुमा अहसास के बावजूद समाजशास्त्रियों के माथे पर बल गहरे हुए हैं। छात्राएं और छात्रों के बीच पासिंग गैप कम होने के बजाय और बढ़ गया है। वहीं परीक्षा परिणामों में पर्वतीय क्षेत्र फिर मैदानी क्षेत्रों पर बाजी मारने में कामयाब रहे हैं। 

वर्ष 2019 के उत्तराखंड बोर्ड के नतीजों ने छात्र-छात्राओं में नई उमंग को बयां करने के साथ अभिभावकों और शिक्षा महकमे को राहत भी दी है। गुणवत्ता में सुधार को लेकर आश्वस्ति का भाव अब परिपक्व हो रहा है। इंटर में वर्ष 2015 के बाद परीक्षार्थियों का पास प्रतिशत 80 का आंकड़ा पार कर गया है। वहीं हाईस्कूल परीक्षा परिणाम का ग्राफ भी 76 फीसद से ज्यादा चढऩे को सरकारी माध्यमिक विद्यालयों के लिए अच्छे संकेत के रूप में देखा जा रहा है। हाईस्कूल में सम्मान सहित प्रथम श्रेणी में पास होने वालों की संख्या बढ़कर 9.17 फीसद और इंटर में 4.70 फीसद पहुंच गई है। परीक्षा परिणामों में इस बार उतार-चढ़ाव का सिलसिला थमा है। गुणवत्ता में सुधार का अंदाजा इससे भी लग सकता है कि प्रथम श्रेणी में पास होने वालों की संख्या बढ़ी है, जबकि द्वितीय श्रेणी में पास होने वालों की संख्या में तुलनात्मक रूप से कमी आ गई।   

छात्र-छात्राओं में भरोसे का संकट बरकरार 

शिक्षा महकमे शिक्षा का सालाना 62 अरब पहुंच चुका है। बावजूद इसके सरकारी विद्यालयों के सामने सबसे बड़ा संकट भरोसे का है। छात्रसंख्या में लगातार कमी आ रही है। यह सिलसिला अब भी थमा नहीं है, लेकिन पिछले साल की तुलना में इस साल हाईस्कूल में परीक्षार्थियों की संख्या में 418 का मामूली इजाफा महकमे को ढाढस बंधा रहा है। हालांकि वर्ष 2015 से 2019 तक आते-आते पांच वर्षों में दसवीं में आश्चर्यजनक ढंग से 22897 और बारहवीं में 20541 परीक्षार्थी घटे हैं। बारहवीं में छात्रसंख्या में लगातार गिरावट महकमे के लिए अब भी चिंता का बड़ा सबब बना हुआ है। 

कामयाबी में छात्राओं की तेज कदमताल 

हाईस्कूल और इंटर दोनों ही कक्षाओं में कामयाबी के मामले में छात्राओं ने छात्रों पर दबदबा बनाए रखा है, लेकिन इसका एक चिंताजनक पहलू यह भी है कि कामयाबी का अंतर काफी बढ़ रहा है। हाईस्कूल में पास होने वाली छात्राओं की संख्या छात्रों की तुलना में 11 फीसद से ज्यादा है। इंटर में यह आंकड़ा 7.50 फीसद तक बढ़ा है। 

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