मैदानों के खेतों में पोटाश और गंधक की कमी, मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाने को इन बातों का रखें ध्यान
देहरादून जिले के दो पर्वतीय ब्लॉकों में भूमि की उर्वरा शक्ति बेहतर है जबकि मैदानी चार ब्लॉक क्षेत्र में मिट्टी में पोषक तत्व पोटाश और गंधक की कमी है।
विकासनगर(देहरादून), राजेश पंवार। देहरादून जिले के दो पर्वतीय ब्लॉकों में भूमि की उर्वरा शक्ति बेहतर है, जबकि मैदानी चार ब्लॉक क्षेत्र में मिट्टी में पोषक तत्व पोटाश और गंधक की कमी है। कृषि विज्ञान केंद्र ढकरानी के विज्ञानियों के मिट्टी परीक्षण में सामने आया है। विज्ञानी डॉ. संजय सिंह ने मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के टिप्स दिए हैं।
जनपद के पर्वतीय कालसी और चकराता विकासखंडों में कृषि भूमि में मुख्य पोषक तत्वों की मात्रा औसत स्तर से अच्छी है। नत्रजन, फास्फोरस, पोटाश, कैल्शियम, मैग्नीशियम, सल्फर और जिंक भरपूर मात्रा में उपलब्ध है, लेकिन कभी-कभी फास्फोरस की उपलब्धता न होने के कारण डाई अमोनियम फास्फेट उर्वरक का प्रयोग मुख्यत: सब्जी की फसलों में किया जाता है। यहां की मिट्टी में सूक्ष्म पोषक तत्वों की उपलब्धता भी अच्छी है, इसलिए कालसी व चकराता ब्लॉक क्षेत्रों की भूमि उर्वरता के लिहाज से काफी अच्छी है।
विकासनगर और सहसपुर विकासखंड में मुख्यत: नत्रजन, फास्फोरस का स्तर काफी अच्छा है, लेकिन सघन फसल चक्र होने के कारण जैसे गेहूं, धान, मक्का की फसल उगाए जाने के कारण और साथ ही भूमि में एनपीके उर्वरक के स्थान पर डाई अमोनियम फास्फेट उर्वरक का अधिक प्रयोग किए जाने पर अधिकतर खेतों में पोटाश की मात्र कम पाई गई है। कृषि विज्ञान केंद्र ढकरानी के विज्ञानी डॉ. संजय का कहना है कि इन ब्लॉक क्षेत्रों में किसानों को पोटाश का विशेष ध्यान रखना चाहिए। जिन खेतों में फास्फोरस की मात्र उच्च है, वहां पर फास्फोरस का प्रयोग नई बोई जाने वाली फसल में करके संतुलित रूप में पोटाश उर्वरक पोषक तत्व को अवश्य खेत में दें।
डोईवाला और रायपुर विकासखंड में भी नत्रजन और फास्फोरस का स्तर ठीक पाया गया है, लेकिन पोटाश पोषक तत्व की मात्र यहां पर भी निम्न स्तर पर है। जो लगभग 120 किलोग्राम से लेकर 140 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तक उपलब्धता स्तर पर है, यह निम्न है। इसके सुधार के लिए फसल बोने के समय पोटाश पोषक तत्व का प्रयोग किया जाना अति आवश्यक है। संपूर्ण जनपद में जहां जहां पर किसान अपने खेतों में लगातार डाई अमोनियम फास्फेट उर्वरक का प्रयोग कर रहे हैं और गन्ना, गेहूं, धान, मक्का या अन्य अनाज वाली फसलों को लगातार कई वर्षों तक एक ही खेत में उगा रहे हैं, वहां पर मिट्टी में जिंक तत्व की कमी हो गई है।
इन जगहों के किसानों को वर्ष में एक फसल में बुआई के समय पर 10 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति एकड़ देना चाहिए। जिन क्षेत्रों में किसान तोरिया की फसल उगा रहे हैं, मुख्यत: सहसपुर, रायपुर और डोईवाला ब्लॉक में मिट्टी में गंधक तत्व की कमी भी पाई गई है। यदि किसान तिलहन फसल की बुआई कर रहे हों या खरीफ के मौसम में करने जा रहे हो तो 30 किलोग्राम गंधक का प्रयोग बुआई के समय पर अवश्य कर दें, इसके लिए जिप्सम की दो क्विंटल मात्र प्रति हेक्टेयर देने पर गंधक की पूर्ति हो जाती है।
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देहरादून जनपद में मृदा उर्वरता का स्तर औसत है। विशेष प्रकार से जो भूमि अधिक ढलान वाली हो या जिसमें अधिक सघन फसल चक्र का उपयोग लंबे समय से किया जा रहा हो और उनमें जैविक खादों का प्रयोग न किया जा रहा हो, तो ऐसी परिस्थिति में भूमि का स्वास्थ्य गिरने लगता है। मृदा स्वास्थ्य की जांच कराने के पश्चात् ही किसान उर्वरकों व पोषक तत्व का उपयोग करें। साथ ही साथ कंपोस्ट व गोबर की खाद अधिक प्रयोग करें।
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