Move to Jagran APP

प्रदेश की अस्थायी राजधानी में सियासी जमीन पर बिछी अतिक्रमण की बिसात

उत्तराखंड की अस्थायी राजधानी दून में साल-दर-साल के साथ ही चुनाव की आड़ में सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण की बिसात बिछाई जाती रही।

By BhanuEdited By: Published: Sat, 20 Apr 2019 11:17 AM (IST)Updated: Sat, 20 Apr 2019 11:17 AM (IST)
प्रदेश की अस्थायी राजधानी में सियासी जमीन पर बिछी अतिक्रमण की बिसात
प्रदेश की अस्थायी राजधानी में सियासी जमीन पर बिछी अतिक्रमण की बिसात

देहरादून, अंकुर अग्रवाल। दून शहर को प्रदेश की अस्थायी राजधानी बने हुए 18 साल गुजर चुके हैं, मगर हैरानी वाली बात यह है कि सूबे में सरकार किसी की भी रही हो, सभी ने दून के सौंदर्यीकरण के बजाए इसके बदरंग होने में साथ दिया। साल-दर-साल के साथ ही यहां चुनाव की आड़ में सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण की बिसात बिछाई जाती रही। क्या कांग्रेस और क्या भाजपा, लोकसभा-विधानसभा चुनाव हो या निकाय चुनाव, हर किसी ने सरकारी भूमि पर वोटबैंक की फसल उगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। 

loksabha election banner

सियासी जमीन पर बसती रही अतिक्रमण की बिसात के आगे शहर में विकास व समस्याओं से जुड़े अन्य मामलों ने खामोशी की चादर ओढ़ ली। वजह साफ है कि वर्ष 2007-08 के सर्वे में अतिक्रमण का जो आंकड़ा 11 हजार को पार कर गया था, आज उसके 22 हजार तक पहुंचने का अनुमान है। 

यह कब्जे नगर निगम की भूमि से लेकर सिंचाई विभाग के अधीन नदी-नालों समेत प्रशासन की भूमि पर किए गए हैं। इस बात को कहने में भी कोई गुरेज नहीं कि नेताओं ने अपनी शह पर न केवल सरकारी जमीनों पर कब्जे कराए, बल्कि उन्हें संरक्षण देने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। 

नगर निगम की ही बात करें तो राज्य गठन के समय निगम के पास 780 हेक्टेयर से अधिक की भूमि थी, जो आज 250 हेक्टेयर से भी कम रह गई है। इतना ही नहीं रिस्पना-बिंदाल नदी, जिसकी चौड़ाई कभी 100 मीटर से ज्यादा होती थी, आज वह 20 से 25 मीटर चौड़े नाले में तब्दील हो गई है। दर्जनों नालों का तो अस्तित्व ही समाप्त हो गया है और उन पर भवन खड़े हो चुके हैं।

कार्रवाई के नाम पर निगम चुप 

करीब एक साल पहले नगर निगम से एक आरटीआइ में जानकारी मांगी थी कि निगम की जिस जमीनों पर कब्जे किए गए हैं, उन पर क्या कार्रवाई की गई है। नगर निगम ने इसका जवाब नहीं दिया व मामला सूचना आयोग पहुंचा, तब पता चला कि निगम ने अवैध कब्जेदारों पर कोई कार्रवाई नहीं की है। निगम के लोक सूचनाधिकारी ने आयोग को बताया कि जवाब में सूचना शून्य बताई गई थी, जिसका मतलब हुआ कि कार्रवाई कभी की ही नहीं गई।

150 से अधिक मुकदमे, पैरवी पर ध्यान नहीं

वैसे तो निगम की करीब 540 हेक्टेयर भूमि पर कब्जे किए गए हैं, फिर भी चंद मामलों में निगम प्रशासन ने कार्रवाई करने का साहस दिखाया। लगभग 150 मुकदमें इन प्रकरणों के लंबित हैं। गंभीर पहलू यह कि निगम प्रशासन इन कब्जों को छुड़ाने के लिए कोर्ट में प्रभावी पैरवी नहीं कर पाता व वकीलों के पैनल का मानदेय कम होने का हवाला दिया जाता है। 

सच्चाई सभी को मालूम है कि जिन नेताओं को आमजन चुनता है, वही शहर के बड़े वर्ग को किनारे कर सिर्फ अतिक्रमणकारियों को शह देने में दिलचस्पी दिखाते हैं। इसी रवैये का नतीजा है कि शहर में अतिक्रमणकारियों के हौसले हमेशा बुलंद रहे हैं। जिसका खामियाजा पूरे शहर को भुगतना पड़ता है। सरकार ने एक दफा निगम से इन कब्जों पर रिपोर्ट ली थी, जिसका गोलमोल जवाब देकर मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। 

कब्जों पर यह थे निगम के तर्क

-ब्रह्मावाला खाला में निगम की 72 बीघा जमीन पर कब्जा है, जो वर्ष 2000 से पहले का है। कांग्रेसी नेता अतिक्रमण को तोड़ने नहीं दे रहे।

-साईं मंदिर के ट्रस्टी ने निगम की भूमि पर कब्जा कर कमरे बना दिए हैं। निगम अब इनका किराया वसूल कर रहा है।

-राजपुर रोड पर ओशो होटल के पीछे की जमीन नॉन जेडए की है, नगर निगम का उस पर हस्तक्षेप नहीं।

- विजय पार्क में निगम की भूमि पर कब्जे को लेकर संबंधित के खिलाफ मुकदमा दर्ज है, यह कब्जा वर्ष 1989 का बताया जा रहा है।

-राजपुर रोड पर जसवंत मॉर्डन स्कूल के पीछे की जमीन भी नॉन जेडए की है।

-दौलत राम ट्रस्ट की भूमि नगर निगम के नाम दर्ज नहीं है, इसके अधिग्रहण का अधिकार जिला प्रशासन के पास है।

-अनुराग नर्सरी चौक पर एक कॉम्पलेक्स निगम की जमीन पर बनाया गया है, जिसे हटाना प्रस्तावित है।

-हाथीबड़कला में एक अपार्टमेंट का निर्माण अवैध रूप से निगम की भूमि पर किया गया है, इसे भी हटाया जाना प्रस्तावित है।

-रिस्पना पुल के पास एक व्यक्ति का निर्माण ग्रामसभा के समय का है।

-पटेलनगर थाने के पीछे निगम की मजीन पर कब्जे को लेकर मामला हाई कोर्ट में लंबित है।

-पटेलनगर क्षेत्र में लालपुल के पास बिंदाल नदी किनारे की बस्ती वर्ष 1984-89 के बीच बसी थी। इस भूमि पर बागडिय़ा समुदाय के कुछ ही लोग रह रहे हैं।

कोर्ट के डर से हटाया सड़कों से अतिक्रमण

राज्य गठन के बाद दून की आबादी तेजी से बढ़ने लगी तो आवासीय भवनों से लेकर व्यापारिक प्रतिष्ठान और वाहनों की संख्या में भी इजाफा होना लगा। हालांकि इस सब के बाद सड़कों की चौड़ाई बढ़ने की जगह उनका आकार और घटने लगा। 

राजनीतिक संरक्षण के चलते लोगों ने सड़कों की भूमि पर ही कब्जा जमा लिया। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि जब कभी सड़कों से अतिक्रमण हटाने की कवायद शुरू की गई, उसके पीछे सरकारी इच्छाशक्ति की जगह कोर्ट का आदेश ही वजह बना। यह अलग बात है कि अतिक्रमण हटाने के कुछ समय बाद भी हालात पहले जैसे होने लगते हैं। 

यही वजह रही कि बीते साल हाईकोर्ट को और कड़ा निर्णय देना पड़ा व अधिकारियों की सीधी जिम्मेदारी तय की गई। इसका असर दिखा भी और बड़े पैमाने पर सड़कों पर से अतिक्रमण हटाए जा सके। हालांकि प्रेमनगर व कुछ अन्य इलाकों में नेताओं के अतिक्रमण अभियान के खिलाफ खड़े होने से अभियान पर ब्रेक लग गया। 

इसके बाद सरकारी अधिकारियों ने भी विभिन्न कारणों से अभियान की रफ्तार पर भी ब्रेक लगाना शुरू कर दिया और चुनाव के नाम पर पूरा अभियान ठंडे बस्ते में चला गया। कई स्थानों पर दोबारा से अतिक्रमण किए जाने की बात भी सामने आ रही है। इसी कड़ी में जिस मॉडल रोड से पिछले साल अतिक्रमण हटाकर नए फुटपाथ बनाए गए थे, वह फिर कब्जे की जद में आ गए हैं। राज्य सरकार ने तब अपने इरादे स्पष्ट करते हुए कहा था कि किसी भी सूरत में इन पर दोबारा अतिक्रमण नहीं होने दिया जाएगा।

पानी की टंकियां तक गायब

नगर निगम ने अपने ही हाथों न सिर्फ बेशकीमती जमीनों को लुटा दिया, बल्कि उन बनी 52 पानी की टंकियों का भी अब अस्तित्व नजर नहीं आता, जो एक से लेकर 12 बिस्वा तक की भूमि पर बनाई गई थीं। ये टंकियां बड़े जलाशयों के रूप में भी थीं। वर्तमान में अधिकतर टंकियों की भूमि को खुर्द-बुर्द कर दिया गया है। गढ़ी कैंट रोड पर सर्वे ऑफ इंडिया के कार्यालय के पास ही एक बड़ा टैंक हुआ करता था, जिसकी भूमि को एक बिल्डर ने कब्जा लिया और उसके नल को अपनी आवासीय परियोजना की बाउंड्री के बाहर लगा दिया। 

इसी तरह मोती बाजार में एक टंकी 10 बिस्वा भूमि पर बनी थी, आज इसकी जगह दो मंजिला व्यापारिक प्रतिष्ठान है। अन्य स्थानों पर भी बनाई गई टंकियों का भी कुछ ऐसा ही हाल है। 

अतिक्रमण पर नहीं बचेंगे अधिकारी 

महापौर सुनील उनियाल गामा के मुताबिक, नगर निगम की जमीनों से जुड़ी पूरी विस्तृत रिपोर्ट मैने मांगी है। जहां भी कब्जे हैं, वहां उन्हें ध्वस्त किया जाएगा। कानूनी लड़ाई में तेजी लाई जाएगी। शहर में मिलाए गए नए गांवों की सरकारी भूमि का सर्वे भी किया जा रहा है। अतिक्रमण पर अधिकारी बच नहीं पाएंगे। निगम की सभी जमीनों की दोबारा पैमाइश कराई जाएगी।

यह भी पढ़ें: 12900 हेक्टेयर भूमि का सर्वे नगर निगम के लिए बना चुनौती, जानिए वजह

यह भी पढ़ें: अधर में लटकी मसूरी मल्टीलेवल पार्किंग, रिपोर्ट तलब करेंगे सचिव

यह भी पढ़ें: 2015 से अधर में मसूरी की मल्टीलेवल पार्किंग, पढ़िए पूरी खबर


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.