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उत्तराखंड में ग्राम पंचायतों के बहाने छिड़ी सियासी जंग

उत्तराखंड की सियासत में अब मौजूदा ग्राम पंचायतें सरकार की मुश्किलें बढ़ा सकती हैं। ग्राम प्रधानों ने प्रदेशभर में सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला, उससे कांग्रेस की बांछें खिली हुई हैं।

By BhanuEdited By: Published: Wed, 05 Jul 2017 12:42 PM (IST)Updated: Wed, 05 Jul 2017 04:48 PM (IST)
उत्तराखंड में ग्राम पंचायतों के बहाने छिड़ी सियासी जंग
उत्तराखंड में ग्राम पंचायतों के बहाने छिड़ी सियासी जंग

देहरादून, [रविंद्र बड़थ्वाल]: उत्तराखंड की सियासत में अब मौजूदा ग्राम पंचायतें सरकार की मुश्किलें बढ़ा सकती हैं। ग्राम प्रधानों ने प्रदेशभर में जिसतरह सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला, उससे कांग्रेस की बांछें खिली हुई हैं। 

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प्रमुख विपक्षी पार्टी को किसानों के आत्महत्या के मामले व कर्ज माफी के बाद अब पंचायतों के विरोध का मुद्दा हाथ लग गया है। वैसे भी पंचायतों में कांग्रेस की पैठ काफी मजबूत है। शहरी निकायों में अपेक्षाकृत कमजोर कांग्रेस अब पंचायतों के बूते अपनी खोई जमीन वापस पाने की जुगत में है। वहीं सरकार भी कांग्रेस की मंशा भांप पलटवार करते हुए आंदोलित ग्राम प्रधानों के जरिये ही कांग्रेस को निशाने पर लेने की रणनीति अपनाने जा रही है। 

विधानसभा चुनाव के बाद अब प्रदेश की अगली सियासी जंग वर्ष 2019 में लोकसभा चुनाव के रूप में लड़ी जानी है। इस जंग में ग्राम पंचायतों को अहम भूमिका में लाने की तैयारी शुरू हो गई है। प्रधानों ने चतुर्थ राज्य वित्त आयोग की सिफारिशों के बाद उन्हें मिलने वाली धनराशि में कटौती के साथ ही कई मांगों को लेकर राज्य सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। 

14वें वित्त आयोग की सिफारिशों को लागू कर ग्राम पंचायतों के लिए सीधे ही खजाने का मुंह जब खोला गया तो केंद्र की मोदी सरकार की इस पहल को पंचायतों में भाजपा की पैठ मजबूत करने की राह तैयार करने की कोशिश के तौर पर ही लिया गया। 

ग्रामीण क्षेत्रों, खास तौर पर ग्राम पंचायतों पर केंद्र की ओर से किए गए फोकस का असर विधानसभा चुनावों में भाजपा को मिली प्रचंड जीत के रूप में देखा जा रहा है।  

हालांकि केंद्र के इस कदम से ग्राम पंचायतों को तकरीबन तीन-चार गुना ज्यादा धनराशि मिली, लेकिन क्षेत्र पंचायतें और जिला पंचायतें खुद को ज्यादा असहाय महसूस करती दिख रही हैं। 

राज्य वित्त आयोग ने त्रिस्तरीय पंचायतों के अन्य दो हिस्सों क्षेत्र पंचायतों और जिला पंचायतों के आर्थिक संसाधन मजबूत करने के लिए अपनी सिफारिशों में ग्राम पंचायतों के लिए धनराशि कम करने पर जोर दिया। 

अब ग्राम प्रधान खुलकर इसके विरोध में आ गए हैं। कांग्रेस किसानों की कर्ज माफी के मुद्दे को गर्माने के बाद अब प्रधानों की जंग के पीछे खुद को महफूज समझ रही है। साथ ही अगले लोकसभा चुनाव तक प्रधानों के सहारे सरकार और सत्तारूढ़ भाजपा के सामने नया मोर्चा भी खोल दिया गया है। 

उधर, ग्रामीण क्षेत्रों और किसानों में पैठ मजबूत करने की कोशिश कर रही भाजपा आयोग की सिफारिशों को पिछली सरकार में मंजूरी देने को मुद्दा बनाकर पंचायतों की सियासी जंग को रोचक बनाने की कोशिश कर रही है। 

प्रदेश कांग्रेस कमेटी के मुख्य प्रवक्ता मथुरादत्त जोशी के मुताबिक किसानों के कर्ज माफी के मसले पर सरकार असंवेदनशील नजर आई है। ऐसे ही ग्राम प्रधानों की प्रमुख समस्याओं की अनदेखी की जा रही है।

वहीं वित्त व विधायी एवं संसदीय कार्यमंत्री प्रकाश पंत का कहना है कि चौथे राज्य वित्त आयोग की रिपोर्ट को पिछले कांग्रेस मंत्रिमंडल ने मंजूरी देकर लागू किया। लिहाजा इस मामले में राजनीति नहीं होनी चाहिए। सरकार ग्राम पंचायतों के साथ ही क्षेत्र पंचायतों और जिला पंचायतों की आर्थिकी को नई दिशा देने से पीछे नहीं हटेगी।

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