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    चमोली से कीड़ाजड़ी बेचने आया था देहरादून, पुलिस ने दबोचा; यहां करता था सप्लाई

    By Sunil NegiEdited By:
    Updated: Tue, 31 Aug 2021 09:19 AM (IST)

    देहरादून में राजपुर थाना पुलिस ने एक युवक को कीड़ाजड़ी के साथ गिरफ्तार किया है। युवक कीड़ाजड़ी को चमोली से देहरादून बेचने के लिए लेकर आया था। पुलिस को उसके पास से 320 ग्राम कीड़ाजड़ी और दो मोबाइल फोन बरामद किए।

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    चमोली से कीड़ाजड़ी लेकर देहरादून पहुंचे एक आरोपित को राजपुर थाना पुलिस ने गिरफ्तार किया है।

    जागरण संवाददाता, देहरादून। चमोली से कीड़ाजड़ी लेकर देहरादून पहुंचे एक आरोपित को राजपुर थाना पुलिस ने गिरफ्तार किया है। आरोपित के पास से 320 ग्राम कीड़ाजड़ी बरामद हुई है, पुलिस उससे पूछताछ कर रही है। एसओ राकेश शाह ने बताया कि सूचना मिली थी कि आइटी पार्क में कीड़ाजड़ी की सप्लाई होने वाली है। आइटी पार्क चौकी इंचार्ज ताजबर सिंह नेगी को वाहनों की चेकिंग करने के लिए कहा गया। सूचना के मुताबिक पुलिस टीम ने धोरण रोड पर पैदल जा रहे एक व्यक्ति को रोककर उसकी तलाशी ली गई। व्यक्ति के बैग से कीड़ाजड़ी का डिब्बा बरामद किया गया। पहचान के लिए वन विभाग में कार्यरत वन दारोगा पूरण सिंह रावत को मौके पर बुलाया गया, जिन्होंने कीड़ाजड़ी होने की पुष्टि की।

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    आरोपित की पहचान आलोक मिश्रा निवासी सोंधोवाली राजपुर के रूप में हुई। पूछताछ में आरोपित ने बताया कि कीड़ाजड़ी हिमालय में मिलती है, जिसे वह अपने पैतृक गांव चमोली से सस्ते दामों में खरीदकर लाया था। एसओ ने बताया कि आरोपित के पास से दो मोबाइल फोन भी बरामद किए गए हैं, जिससे पता लगेगा कि उसके संपर्क में कौन-कौन व्यक्ति हैं।

    क्या है कीड़ा जड़ी

    उच्च हिमालय में बहु औषधीय कवक कार्डिसेप्स-साईनेसिंस को स्थानीय भाषा में कीड़ा घास यानी यारसागंबू नाम से जाना जाता है। कीड़ाजड़ी समुद्रतल से 3200 से 4800 मीटर तक हिमालयी एवं उच्च हिमालयी क्षेत्रो में पाया जाता है। यह फफूंद थीटारोडस प्रजाति के कीट का लारवा है जो पूर्ण परजीवी है। शीत ऋतु के प्रारंभ में यह लारवा डायपाज अवस्था में जमीन के अंदर प्रवेश करता है संक्रमण के कारण मृत हो जाता है। गर्मी शुरू होते ही फफूंद की फूटिंग बाडी लारवा के शीर्ष में बाहर आ जाती है। जिस कारण इसे स्थानीय लोग कीड़ा घास नाम से जानते हैं।

    यहां पाई जाती है कीड़ाजड़ी

    पिथौरागढ़ के उच्च हिमालय में पोटिंग ग्लेशियर क्षेत्र, लास्पा, बुर्फू, रालम, नागनीधुरा, महोरपान, दर्ती ग्वार, छिपलाकेदार, दारमा, व्यास के अलावा चमोली और उत्तरकाशी के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाता है। चीन में इसका प्रयोग दो वर्षों से हो रहा है। चीन के बाद इसका प्रयोग नेपाल और भूटान में हुआ। विगत ढाई दशक के भारत में भी इसका दोहन हो रहा है।

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