डॉ. योगी ऐरन को पद्मश्री, बढ़ा उत्तराखंड का मान
दून के बुजुर्ग चिकित्सक डॉ. योगी ऐरन अब तक 5000 से अधिक निश्शुल्क प्लास्टिक सर्जरी कर चुके हैं। उन्हें पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया है।
देहरादून, जेएनएन। मुश्किल जरूर है, मगर ठहरा नहीं हूं मैं, मंजिल से कह दो कि अभी पहुंचा नहीं हूं मैं...। दून के बुजुर्ग चिकित्सक डॉ. योगी ऐरन इन्हीं पंक्तियों को को चरितार्थ करते आगे बढ़ रहे हैं। किसी न किसी दुर्घटना के चलते त्वचा में विकृति आ जाने पर तमाम लोग आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण प्लास्टिक सर्जरी नहीं करा पाते हैं। ऐसे ही लोगों के लिए देवदूत बनकर काम कर रहे हैं 82 साल के बुजुर्ग प्लास्टिक सर्जन डॉ. योगी ऐरन। वह अब तक 5000 से अधिक निश्शुल्क प्लास्टिक सर्जरी कर चुके हैं। उन्हीं के सेवाभाव का नतीजा है कि वर्ष 2020 के पद्म पुरस्कारों की सूची में डॉ. ऐरन का भी नाम है और उन्हें गणतंत्र दिवस पर इस सम्मान से नवाजा गया। उनके सम्मान से उत्तराखंड का भी मान बढ़ा है।
कभी अमेरिका में प्लास्टिक सर्जन रह चुके डॉ. योगी में पिछले 14 साल से मानवता की सेवा करने में जुटे हुए हैं। वह कहते हैं कि जलने या जानवर के हमले में घायल होने के कारण शारीरिक विकृति से जूझ रहे लोगों को को दोबारा वही काया पाकर न सिर्फ नया जीवन, बल्कि सामान्य जीवन जीने का एक हौसला भी मिलता है। डॉ. योगी के हाथ में ऐसा हुनर है कि किसी बड़े शहर में अपना अस्पताल खोलकर मोटी कमाई कर सकते हैं, पर उन्होंने जीवन गरीबों की सेवा में समर्पित कर रखा है।
देहरादून-मसूरी रोड स्थित कुठालगेट के पास उनकी अपनी पुश्तैनी जमीन है। वे यहीं रहना पसंद करते हैं। यहां पर उन्होंने छोटा सा क्लीनिक बनाया है। डॉ. योगी कहते हैं कि इस उम्र में उन्हें धन-दौलत की नहीं, बल्कि आत्मिक शांति और सुकून की जरूरत है। लोगों की मुस्कान और दुआ के रूप में यह शांति भरपूर मिल रही है। उनका कहना है कि वह अब तक जो भी कर रहे हैं, अब उससे भी बेहतर करना है।
डॉ. योगी ऐरन का संक्षिप्त परिचय
- डॉ. योगी एरेन ने 1967 में किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज, लखनऊ से स्नातक किया।
- प्रिंस ऑफ वेल्स मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल, पटना से वर्ष 1971 में प्लास्टिक सर्जरी में मास्टर्स डिग्री प्राप्त की।
- डॉ. योगी ने लखनऊ और देहरादून के सरकारी अस्पतालों और प्रिंस ऑफ वेल्स मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल, पटना में काम किया।
यह भी पढ़ें: मैती आंदोलन के प्रणेता को मिला पर्यावरण संरक्षण का ईनाम
- उन्होंने मियामी में डॉ. आर मिलार्ड की देखरेख में अपना हुनर तराशा।
- सितंबर 2006 में डॉ. ऐरन और उनके बेटे डॉ. कुश ने देहरादून में अमेरिका की संस्था रीसर्ज की मदद से पहला कैंप किया।
- तब से अब तक वह कई लोगों को नया जीवन दे चुके हैं।
यह भी पढ़ें: ग्रामीण क्षेत्रों की तस्वीर संवारने में जुटे हैं डॉ. अनिल प्रकाश जोशी