उत्तराखंड में हिम तेंदुओं का निरंतर बढ़ रहा कुनबा, पढ़िए खबर
उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों की शान कहे जाने वाले हिम तेंदुओं का कुनबा निरंतर बढ़ रहा है। इनकी संख्या है ज्ञात नहीं है लेकिन इनकी तादात में इजाफा के संकेत मिलेे हैं।
देहरादून, केदार दत्त। उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों की शान कहे जाने वाले हिम तेंदुओं (स्नो लेपर्ड) का कुनबा निरंतर बढ़ रहा है। हालांकि, अभी यह ज्ञात नहीं कि यहां वास्तव में इनकी संख्या है कितनी है। फिर भी जो संकेत मिल रहे वह इशारा करते हैं कि इनकी तादाद में इजाफा हो रहा।
गंगोत्री नेशनल पार्क की नेलांग घाटी में गश्त पर निकली टीम द्वारा की गई हिम तेंदुओं की वीडियोग्राफी इसकी तस्दीक करती है। अमूमन, अभी तक गंगोत्री नेशनल पार्क, नंदादेवी बायोस्फीयर रिजर्व, अस्कोट अभयारण्य, फूलों की घाटी नेशनल पार्क समेत उच्च हिमालयी क्षेत्र के अन्य क्षेत्रों में लगे कैमरा ट्रैप में इनकी तस्वीरें कैद होती रही हैं।
अब अगर यह शर्मीला जीव लगातार दिख रहा तो ये साबित करता है कि उच्च हिमालयी क्षेत्र की जैवविविधता काफी सशक्त है। इस सब पर रश्क करना तो बनता है, लेकिन चुनौती भी बढ़ गई है। लिहाजा, इनकी सुरक्षा पर अधिक ध्यान केंद्रित करना होगा।
गणना में कोरोना ने डाला अडंग़ा
कोरोना संकट ने उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्र के वन भूभाग में हिम तेंदुओं की गणना की मुहिम में अड़ंगा डाला है। असल में उत्तराखंड भी उन राज्यों में शामिल है, जहां संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के तहत सिक्योर हिमालय परियोजना चल रही है।
गंगोत्री नेशनल पार्क, गोविंद वन्यजीव विहार और अस्कोट अभयारण्य का क्षेत्र इसमें आच्छादित है। परियोजना का बड़ा बिंदु हिम तेंदुओं का संरक्षण और सुरक्षा भी है। इसी के तहत उच्च हिमालयी क्षेत्रों में हिम तेंदुओं की गणना का प्रोटोकाल तैयार हुआ।
गणना की कसरत फरवरी से होनी थी, मगर पहले मौसम और फिर कोरोना संकट ने इसमें रोड़ा अटका दिया। परिणामस्वरूप हिम तेंदुओं की गणना कब शुरू होगी, इसे लेकर अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगा। कोरोना के दृष्टिगत परिस्थितियां सामान्य होने पर भी मानसून सीजन में यह कार्य शुरू करना बेहद दुरुह साबित होगा। ऐसे में अगले साल फरवरी से कुछ पहल होने की उम्मीद है।
जंगलों में लगेंगे 1.79 करोड़ पौधे
देश के विभिन्न हिस्सों में मानसून पहुंच चुका है और जल्द ही यह उत्तराखंड में दस्तक देगा। इसके मद्देनजर जंगलों को हरा-भरा करने को पौधरोपण की तैयारियां जोर-शोर से चल रहीं। वन विभाग के अधीन ही केंद्र, राज्य पोषित नौ योजनाओं में करीब 18 हजार हेक्टेयर में लगभग 1.79 करोड़ पौधे रोपने की तैयारी है।
इसके अलावा 16 जुलाई को मनाए जाने वाले प्रकृति पर्व हरेला के तहत भी वन महकमे ने छह लाख पौधे वितरित करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसके अलावा विभिन्न विभागों सहित तमाम सामाजिक संगठनों व संस्थाओं ने भी गांव, शहर एवं वन क्षेत्रों में पौधे रोपने की योजना बनाई है। कई संगठनों ने तो इस दिशा में पहल भी शुरू कर दी है। निश्चित रूप से हरियाली बढ़ाने की यह मुहिम सुकून देने वाली है। यदि पौधरोपण की इस मुहिम को सभी जिम्मेदारी से अंजाम दें तो यह नई इबारत लिखने में सफल होगी।
रोपित पौधों को जीवित रखना जरूरी
कहते हैं एक पेड़ सौ पुत्रों के समान है। जाहिर है कि सिर्फ पौधे रोपकर इतिश्री नहीं की जा सकती। रोपित पौधों की देखभाल ठीक वैसे ही की जानी आवश्यक है, जैसी हम नौनिहालों की करते हैं। इसी मोर्चे पर अब तक उदासीनता का आलम देखा गया है। वन महकमे का ही जिक्र करें तो वह हर साल औसतन डेढ़ से दो करोड़ पौधे लगाता है।
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इसी तरह दूसरे विभाग, विभिन्न संस्थाएं व संगठन बड़े पैमाने पर पौधरोपण करते हैं। इस लिहाज से तो 71.05 फीसद वन भूभाग वाले इस राज्य में वनावरण (फॉरेस्ट कवर) कहीं अधिक हो जाता, मगर पिछले दो दशक से यह 46 फीसद के आसपास ही सिमटा हुआ है। साफ है कि कहीं न कहीं कोई चूक है। दरअसल, पौधे रोपकर इन्हें भूल जाने की परिपाटी इस राह में बाधक बनी हुई है। इसमें ही हर स्तर पर बदलाव लाना होगा, ताकि रोपित पौधे जीवित रहें।
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