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    उत्तराखंड में अब सीधे नहीं होगी भ्रष्टाचार की एसआइटी और विजिलेंस जांच, जानिए क्या है वजह

    सरकारी कार्मिकों के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायतों की जांच सीधे एसआइटी (विशेष जांच दल) और विजिलेंस (सतर्कता अधिष्ठान) को नहीं भेजी जाएगी। केवल वही मामले एसआइटी और अन्य जांच एजेंसी को भेजे जाएंगे जिनमें विभागीय जांच संभव नहीं होगी।

    By Raksha PanthriEdited By: Updated: Sat, 08 Jan 2022 10:22 AM (IST)
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    उत्तराखंड में अब सीधे नहीं होगी भ्रष्टाचार की एसआइटी और विजिलेंस जांच।

    राज्य ब्यूरो, देहरादून। लोक सेवकों, यानी सरकारी कार्मिकों के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायतों की जांच सीधे एसआइटी (विशेष जांच दल) और विजिलेंस (सतर्कता अधिष्ठान) को नहीं भेजी जाएगी। केवल वही मामले एसआइटी और अन्य जांच एजेंसी को भेजे जाएंगे, जिनमें विभागीय जांच संभव नहीं होगी। विभाग की ओर से जांच को भेजे जाने वाले मामले पहले राज्य सतर्कता समिति के समक्ष रखे जाएंगे। सरकार ने मुख्य सचिव की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय राज्य सतर्कता समिति का गठन किया है।

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    राज्य में सरकारी कार्मिकों के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायतों की जांच के मामले में कार्मिक विभाग ने स्टैंडर्ड आपरेटिंग प्रोसीजर (एसओपी) लागू किया है। केंद्रीय कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय की ओर से तीन सितंबर, 2021 को जारी एसओपी को राज्य ने भी अपनाया है। मुख्य सचिव डा एसएस संधु ने इस संबंध में सभी अपर मुख्य सचिवों, प्रमुख सचिवों, सचिवों और प्रभारी सचिवों को आदेश जारी किए हैं।

    शासनादेश के अनुसार अब लोक सेवक के खिलाफ भ्रष्टाचार संबंधी शिकायत या मामला मिलने पर प्रशासकीय विभाग अपने स्तर पर प्रकरण की गहराई से जांच करेगा। विभागीय स्तर पर जांच संभव नहीं होने की स्थिति में प्रकरण को एसआइटी, विजिलेंस या अन्य जांच एजेंसी को भेजा जाएगा। इसके लिए मामला संवेदनशील व महत्वपूर्ण और तकनीकी प्रकृति का होना चाहिए।

    विभागीय मंत्री के अनुमोदन की आवश्यकता नहीं

    संबंधित प्रशासकीय विभाग एसआइटी या विजिलेंस जांच को कार्मिक व सतर्कता या गृह विभाग को भेजे जाने वाले मामलों में औचित्य स्पष्ट करते हुए टिप्पणी अंकित करेगा। इसके लिए विभागीय मंत्री का अनुमोदन लेने की आवश्यकता नहीं होगी। कार्मिक व सतर्कता विभाग अथवा गृह विभाग इस जांच पर वैकल्पिक कार्यवाही भी सुझा सकता है। इस वजह से विभागीय मंत्री के अनुमोदन की जरूरत नहीं रहने वाली।

    डीजीपी को बुला सकेगी समिति

    जांच के प्रकरणों को कार्मिक व सतर्कता विभाग अथवा ग़ह विभाग पहले राज्य सतर्कता समिति के समक्ष प्रस्तुत करेंगे। सतर्कता समिति के अध्यक्ष मुख्य सचिव होंगे। गृह, कार्मिक व सतर्कता, न्याय और प्रशासकीय विभाग के अपर मुख्य सचिव या प्रमुख सचिव अथवा सचिव इसके सदस्य होंगे। समिति आवश्यकता के अनुसार पुलिस महानिदेशक या सतर्कता निदेशक या एसआइटी प्रमुख अथवा अन्य किसी विभागीय अधिकारी को विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में बैठक में बुला सकेगी।

    मुख्यमंत्री का अनुमोदन भी लेना होगा

    समिति की संस्तुति पर मुख्यमंत्री का अनुमोदन प्राप्त किया जाएगा। इसके बाद इस बारे में प्रशासकीय विभाग के सक्षम प्राधिकारी को सूचित किया जाएगा। यदि किसी मामले में मुख्यमंत्री ने विजिलेंस या एसआइटी जांच के आदेश सीधे ही कर दिए तो ऐसे में प्रशासकीय विभाग मुख्यमंत्री के आदेश मूल रूप में कार्मिक व सतर्कता या गृह विभाग को उपलब्ध कराए जाएंगे। इसके बाद संबंधित विभाग के सक्षम प्राधिकारी विजिलेंस या एसआइटी जांच के आदेश जारी करने के संबंध में कार्यवाही करेंगे।

    सतर्कता समिति पर रहेगा दारोमदार

    लोक सेवक के खिलाफ जांच, अन्वेषण, विवेचना या अभियोजन स्वीकृति की विजिलेंस, पुलिस या एसआइटी की संस्तुति प्राप्त होने पर एसओपी के अनुसार संबंधित विभाग कार्मिक व सतर्कता अथवा गृह को प्रस्ताव उपलब्ध कराएगा। इस प्रस्ताव को भी राज्य सतर्कता समिति के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा। समिति इस पर अपनी संस्तुति देगी। जांच की संस्तुति होने पर कार्मिक व सतर्कता विभाग इसे संबंधित विभाग को भेजेगा। विभाग के नामित मुख्य सतर्कता अधिकारी या अन्य अधिकारी गोपनीयता बनाए रखते हुए 15 दिन के भीतर जांच कर विभाग का मंतव्य कार्मिक व सतर्कता विभाग को उपलब्ध कराएंगे।

    ट्रैप प्रकरणों में सतर्कता समिति की संस्तुति लेना अनिवार्य नहीं

    विभाग के मंतव्य समेत प्रकरण को राज्य सतर्कता समिति की बैठक में रखा जाएगा। समिति की संस्तुति से विभाग के सहमत नहीं होने की स्थिति में अंतिम निर्णय से पहले कार्मिक या गृह विभाग के माध्यम से मुख्यमंत्री से दोबारा दिशा-निर्देश प्राप्त किए जाएंगे। ट्रैप के प्रकरणों में अभियोजन की विधिक पूर्व स्वीकृति देने के लिए राज्य सतर्कता समिति की संस्तुति लेना अनिवार्य नहीं होगा।

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