उत्तराखंड में अब वनों को जलाएगा नहीं, बल्कि घरों को जगमग करेगा पिरुल; ये है योजना
जंगलों में हर वर्ष गिरने वाली 23 लाख मीट्रिक टन चीड़ की पत्तियां (पिरुल) अब वनों को जलाएंगी नहीं बल्कि घरों को रोशन करेंगी। इससे चीड़ वनों में पर्यावरण भी महफूज रहेगा। पिरुल को सरकार ने संसाधन के तौर पर लिया है।

केदार दत्त, देहरादून। उत्तराखंड के जंगलों में हर वर्ष गिरने वाली 23 लाख मीट्रिक टन चीड़ की पत्तियां (पिरुल) अब वनों को जलाएंगी नहीं, बल्कि घरों को रोशन करेंगी। इससे चीड़ वनों में पर्यावरण भी महफूज रहेगा। दरअसल, जंगलों में हर साल आग के फैलाव की बड़ी वजह बनने वाले पिरुल को सरकार ने संसाधन के तौर पर लिया है। इससे बिजली उत्पादन की दिशा में तेजी से कदम बढ़ाए गए हैं। इस क्रम में प्रथम चरण में आवंटित 21 में से सात प्रोजेक्ट स्थापित हो चुके हैं और शेष भी जल्द धरातल पर आकार लेंगे। पिरुल ग्रामीण ही एकत्रित करेंगे और संबंधित बिजली प्रोजेक्ट इसे खरीदेंगे। ज्यादा वक्त नहीं बीता जब चीड़ को यहां के जंगलों से हटाने की बात होने लगी थी। प्राकृतिक रूप से चीड़ के फैलाव के मद्देनजर वन महकमे ने इसका पौधारोपण तक बंद कर दिया था। जाहिर है कि अब चीड़ वनों को लेकर बनी धारणा बदलेगी।
चोटियां भी बनेंगी रोजगार का जरिया
साहसिक पर्यटन के जरिये रोजगार के अवसर मुहैया कराने की दिशा में उत्तराखंड की पर्वत श्रृंखलाएं (चोटियां) भी बड़ा जरिया बनेंगी। हालांकि, वर्तमान में यहां 84 चोटियां साहसिक पर्यटन के मद्देनजर पर्वतारोहण व ट्रैकिंग को खुली हैं, लेकिन ऐसे अभियानों की संख्या अंगुलियों में गिनने लायक ही है। वह भी तब जबकि साहसिक पर्यटन के लिए उत्तराखंड की वादियां मुफीद हैं। इस सबको देखते हुए राज्य सरकार ने पर्वतारोहण और ट्रैकिंग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से केंद्र में दस्तक दी। इसके सकारात्मक परिणाम आए और केंद्र ने 42 नई चोटियों को खोलने को मंजूरी दी है। अब पर्यटन और वन विभाग इसका खाका तैयार कर रहे हैं। सुरक्षा से लेकर हर पहलू को लेकर मंथन जारी है। कोशिश है कि जल्द ही नई चोटियों पर भी पर्वतारोहण व ट्रैकिंग की गतिविधियां शुरू हों। इससे स्थानीय निवासियों को रोजगार भी मुहैया होगा, जिसकी बदली परिस्थितियों में सबसे अधिक जरूरत है।
जंगल की आग ने बढ़ाई चिंता
मौसम की बेरुखी आने वाले दिनों में उत्तराखंड के जंगलों पर भारी पड़ सकती है। इस मर्तबा सर्दियों से ही जंगलों के झुलसने का सिलसिला शुरू होने के मद्देनजर यह आशंका हर किसी को सता रही है। ऐसे में वन महकमे की पेशानी पर बल पड़े हैं। फिर मौसम का जैसा मिजाज है, उसने ज्यादा चिंता बढ़ाई हुई है। असल में पिछले चार माह से बारिश बेहद कम है। इसी माह की बात करें तो पांच जनवरी से बदरा रूठे-रूठे हैं। उस पर जंगलों के धधकने की बात करें तो बीते चार माह के अंतराल में साढ़े तीन सौ हेक्टेयर से अधिक वन क्षेत्र सुलग चुका है। बारिश न होने के कारण वन क्षेत्रों में नमी कम होने को आग की वजह माना जा रहा है। ऐसे में यदि जल्द बारिश न हुई तो दिक्कतें बढ़ सकती है। साथ ही यह वन विभाग की असल परीक्षा का समय भी है।
ईको टूरिज्म सर्किट कब लेंगे आकार
कोरोनाकाल के दौरान उत्तराखंड के जंगलों के माध्यम से भी स्थानीय व्यक्तियों को रोजगार मुहैया कराने की बात हुई। इस क्रम में 10 हजार वन प्रहरियों को तैनात करने का निर्णय लिया गया है, जिसके आकार लेने का इंतजार है। इसी क्रम में तीन साल पहले यहां के जंगलों में ईको टूरिज्म से जुड़ी गतिविधियों को बढ़ावा देकर रोजगार सृजन की बात हुई। कोटद्वार समेत विभिन्न वन क्षेत्रों में ईको टूरिज्म सर्किट विकसित करने का निर्णय लिया गया। साथ ही वन विश्राम भवनों को भी इन सर्किट से जोडऩे की बात कही गई। इससे उम्मीद जगी कि इन सर्किट के आकार लेने पर स्थानीय व्यक्तियों के लिए स्वरोजगार के दरवाजे खुलेंगे, लेकिन इन सर्किट को लेकर गति बेहद मंद है। ऐसे में वन क्षेत्रों में ईको टूरिज्म सर्किट के संबंध में सवाल उठने लाजिमी हैं। खैर, अभी भी वक्त है और सरकार को इस दिशा में प्रयास तेज करने होंगे।
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