संरक्षित क्षेत्रों में बाघ और हाथियों के लिए नहीं रहेगी भोजन की कमी, विकसित किए जा रहे घास के मैदान
जंगलों में इनके लिए भोजन की कमी न होने पाए इसके दृष्टिगत संरक्षित क्षेत्रों में वासस्थल विकास पर फोकस किया गया है। इसी कड़ी में राजाजी व कार्बेट टाइगर रिजर्व समेत इनसे सटे वन प्रभागों में लैंटाना (कुर्री) को हटाकर उसकी जगह घास के मैदान विकसित किए जा रहे हैं।
राज्य ब्यूरो, देहरादून। बाघ और हाथियों के संरक्षण में उत्तराखंड अग्रणी भूमिका निभा रहा है। इनका लगातार बढ़ता कुनबा इसकी तस्दीक करता है। ऐसे में जंगलों में इनके लिए भोजन की कमी न होने पाए, इसके दृष्टिगत संरक्षित क्षेत्रों में वासस्थल विकास पर फोकस किया गया है। इसी कड़ी में राजाजी व कार्बेट टाइगर रिजर्व समेत इनसे सटे वन प्रभागों में बड़े हिस्से में पसरी लैंटाना (कुर्री) को हटाकर उसकी जगह घास के मैदान विकसित किए जा रहे हैं।
उत्तराखंड में यमुना से लेकर शारदा नदी तक राजाजी-कार्बेट टाइगर रिजर्व समेत 12 वन प्रभागों में हाथियों का बसेरा है। करीब साढ़े छह हजार वर्ग किलोमीटर में फैले इस क्षेत्र में हाथियों की संख्या 2026 पहुंच गई है। इसी तरह कार्बेट, राजाजी समेत इनसे सटे 13 वन प्रभागों में बाघों की संख्या 442 है। बाघों के घनत्व के मामले में तो कार्बेट देश के सभी टाइगर रिजर्व में अव्वल है। बहरहाल, बाघ व हाथियों की बढ़ती संख्या सुकून देने वाली है, लेकिन इसके साथ ही भविष्य के लिए चुनौतियां भी बढ़ने लगी हैं।
जिस हिसाब से बाघ व हाथियों के कुनबों में इजाफा हो रहा है, उनके लिए उसी लिहाज से जंगलों में भोजन का इंतजाम होना आवश्यक है। यदि कहीं भी फूडचेन गड़बड़ाई तो दिक्कतें खड़ी होना लाजिमी है। इसे देखते हुए वन्यजीव महकमे ने अब वासस्थल विकास पर ध्यान केंद्रित किया है। इसके तहत सबसे पहले लैंटाना उन्मूलन का निर्णय लिया गया है, जिसने संरक्षित क्षेत्रों के एक बड़े हिस्से पर कब्जा जमाया है। अपने आसपास दूसरी वनस्पतियों को न पनपने देने और वर्षभर खिलने के कारण निरंतर प्रसार की वजह से लैंटाना ने सर्वाधिक दिक्कतें खड़ी की हैं।
कार्बेट व राजाजी टाइगर रिजर्व में ही घास के मैदानों में लैंटाना का फैलाव तेजी से बढ़ा है। जाहिर है कि इससे शाकाहारी वन्यजीवों को भोजन के लिए दूसरे स्थान तलाशने पड़ रहे तो मांसाहारी जीवों को भी शिकार के लिए मशक्कत करनी पड़ रही है। पूर्व में कार्बेट फाउंडेशन के शासी निकाय ने तो यहां तक कह दिया था कि यदि लैंटाना उन्मूलन को प्रभावी कदम नहीं उठाए गए तो कार्बेट में बाघों का संरक्षण मुश्किल हो जाएगा। इन सब परिस्थितियों को देखते हुए लैंटाना उन्मूलन को अब गंभीरता से लिया गया है।
राज्य के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक जेएस सुहाग के अनुसार संरक्षित क्षेत्रों में पसरी लैंटाना की झाड़ियों को हटाकर इनकी जगह घास के मैदान विकसित करने की मुहिम शुरू की गई है। कार्बेट में करीब आठ सौ हेक्टेयर क्षेत्र से अब तक लैंटाना हटाई जा चुकी है। इसी तरह राजाजी में भी दो हजार हेक्टेयर से लैंटाना हटाने की कवायद शुरू की गई है। जहां से लैंटाना हटाया जा रहा, वहां घास की विभिन्न प्रजातियां रोपी जा रही हैं। इससे घास के मैदान विकसित होंगे, जिससे शाकाहारी व मांसाहारी वन्यजीवों के लिए पर्याप्त मात्रा में भोजन की उपलब्धता बनी रहेगी।
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