प्रेरणास्रोत हैं ऐसी वीरांगना, पति की शहादत के बाद सेना में शामिल नितिका
दो वर्ष पहले कश्मीर में आतंकियों से मातृभूमि की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए देहरादून के मेजर विभूति शंकर ढौंढियाल की पत्नी नितिका इससे भी एक कदम आगे बढ़कर मिसाल बन गई हैं। पति की शहादत के 27 माह बाद नितिका बतौर लेफ्टिनेंट सेना में शामिल हो गई।

विजय मिश्रा, देहरादून। उत्तराखंड के रणबांकुरों की वीर गाथाएं किसी से छिपी नहीं हैं तो इन रणबांकुरों की जीवन संगिनियां भी किसी वीरांगना से कम नहीं। ये जांबाज जब देश की रक्षा के लिए डटे होते हैं, तब उनकी वीरांगनाएं बच्चों में संस्कारों का बीज बोने और परिवार को संभालने में। इसके अलावा भी हर मोर्चे पर इन वीर नारियों ने लोहा मनवाया है। दो वर्ष पहले कश्मीर में आतंकियों से मातृभूमि की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए देहरादून के मेजर विभूति शंकर ढौंढियाल की पत्नी नितिका इससे भी एक कदम आगे बढ़कर मिसाल बन गई हैं। जिस आंतक के खात्मे के लिए पति ने बलिदान दिया, नितिका ने उस राह को न सिर्फ अपनी मंजिल बनाया, बल्कि फतह भी हासिल की। पति की शहादत के 27 माह बाद नितिका बतौर लेफ्टिनेंट सेना में शामिल हो गई हैं। यकीनन उनका यह जज्बा देवभूमि के साथ पूरे देश के लिए प्रेरणास्रोत बनेगा।
मुद्दों का मौन उपवास
वैसे तो राजनीति और मौन का आपस में दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है, मगर उत्तराखंड में राजनीति इन दिनों मौन के रंग में रंगी दिख रही है। खासकर जमीन बचाए रखने को संघर्ष कर रही कांग्रेस के नजरिये से। आए दिन कांग्रेस के शीर्ष नेता किसी मुद्दे को लेकर सरकार की खिलाफत में मौन उपवास पर बैठ जाते हैं। अब भाजपा ने भी यह गुर सीख लिया है। चंद रोज पहले कांग्रेस के मुखिया भाजपा की बुद्धि शुद्धि को मौन उपवास पर बैठे दिखे तो भाजपा के मुखिया कांग्रेस को सद्बुद्धि के लिए मौन धारण किए थे। कोरोना के लिहाज से यह मौन अच्छा है। बिना शोर-शराबे के विरोध की इच्छा पूरी होने के साथ नेताजी सुर्खियों में भी बने हुए हैं। यह अलग बात है कि लोकतंत्र में जिम्मेदार होने की भावना का एहसास कराने के लिए मौन नहीं वाकपटु होना जरूरी है। खासकर जब आप विपक्ष हों।
इनसे सीख लीजिए साहब
सड़क किसी भी क्षेत्र के विकास की पहली सीढ़ी होती है। राज्य की सरकार भी यह बात अच्छी तरह समझती है। इसीलिए सड़कों के निर्माण पर खासा जोर है। 2017 के बाद प्रदेश में प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत 6000 किलोमीटर से ज्यादा सड़कों का निर्माण हुआ है, जिनसे 500 से ज्यादा गांव जुड़े। मगर, इस तस्वीर का एक पहलू और भी है। सैकड़ों गांव और तोक अब भी पगडंडियों पर सफर करने को मजबूर हैं। ऐसा ही एक तोक है अल्मोड़ा में सांसद आदर्श गांव सुनोली का सीमा-कालीगाड़। महज ढाई किलोमीटर सड़क बनवाने के लिए यहां के ग्रामीण 20 साल से अधिकारियों की चिरौरी कर रहे थे। जब थक गए तो खुद ही सड़क बनाने की ठान ली। अब 300 मीटर सड़क बनकर तैयार हो गई है। ग्रामीणों का यह प्रयास अधिकारियों के लिए आईना है। उम्मीद है, राह बनाने की यह चाह अधिकारियों में भी जागृत होगी।
अभी सतर्कता जरूरी है
उत्तराखंड में मई में अपना चरम रूप दिखा चुका कोरोना वायरस का संक्रमण अब ढलान की तरफ है। धीरे-धीरे इसके नए मामलों में कमी आ रही है। संक्रमण दर भी नीचे जा रही है। स्वस्थ होने वालों की संख्या बढ़ रही है। कुल मिलाकर हर तरफ से राहत के संकेत मिल रहे हैं। यह राहत आने वाले दिनों में कर्फ्यू में भी छूट मिलने का इशारा दे रही है। इसी क्रम में सरकार चार धाम यात्रा को भी चरणबद्ध तरीके से शुरू करने की तैयारी में है। पहाड़ में आम आदमी की आर्थिक स्थिति को पटरी पर लाने के लिए यह जरूरी है। इस सबके बीच यह ध्यान रखने की जरूरत भी है कि कोरोना गाइडलाइन का पूरी तरह पालन होता रहे। महामारी अभी खत्म नहीं हुई है, सिर्फ इसकी रफ्तार मंद पड़ी है। इस नाजुक वक्त में थोड़ी सी लापरवाही भी भविष्य के लिए घातक साबित हो सकती है।
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