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फॉरेस्ट गार्ड भर्ती परीक्षा को लेकर रोजाना सामने आ रहे नए तथ्य

फॉरेस्ट गार्ड भर्ती परीक्षा को लेकर रोजाना सामने आ रहे तथ्यों से साफ होता जा रहा है कि भर्ती परीक्षा में नकल के मामले सुनियोजित थे।

By Sunil NegiEdited By: Published: Wed, 04 Mar 2020 01:08 PM (IST)Updated: Wed, 04 Mar 2020 01:08 PM (IST)
फॉरेस्ट गार्ड भर्ती परीक्षा को लेकर रोजाना सामने आ रहे नए तथ्य
फॉरेस्ट गार्ड भर्ती परीक्षा को लेकर रोजाना सामने आ रहे नए तथ्य

देहरादून, अशोक केडियाल। फॉरेस्ट गार्ड भर्ती परीक्षा को लेकर रोजाना सामने आ रहे तथ्यों से साफ होता जा रहा है कि भर्ती परीक्षा में नकल के मामले सुनियोजित थे। बीती 16 फरवरी को परीक्षा के तत्काल बाद ब्लूटूथ व मोबाइल से नकल की बात जब सामने आई तो सरकार और उत्तराखंड अधीनस्थ चयन आयोग ने पूरी परीक्षा पर सवालिया निशान लगाने वालों की आलोचना की। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, माफिया गिरोह की करतूत की परतें खुलने लगीं और गिरफ्तारियां शुरू हो गईं। अभी तक दो दर्जन से अधिक आरोपितों की गिरफ्तारी हो चुकी है। इतना ही नहीं सोमवार को जांच एजेंसी ने रुड़की से परीक्षा का प्रश्नपत्र लीक करने वाले को भी गिरफ्तार कर लिया। इससे साफ है कि परीक्षा में गड़बड़ी का दायरा सीमित नहीं है। अभी कुछ और लोगों के भी संलिप्त होने से इन्कार नहीं किया जा सकता है। ऐसे में मेहनती अभ्यर्थियों की उम्मीद टूटना स्वाभाविक भी है।

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राजनीति का अमृत दूध

राज्य सरकार ने आंगनबाड़ी के बाद अब पहली से लेकर आठवीं कक्षा तक के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं को मिड-डे मील योजना के तहत एक गिलास दूध देने का फैसला लिया है। यह फैसला स्वागत योग्य है। यह इसलिए भी ज्यादा अहम है कि जिस शराब ने पहाड़ की युवा पीढ़ी को नशे के दलदल में धकेलने के साथ पूरी तरह नकारा बना दिया है, उसी शराब को राज्य सरकार सस्ता कर अपना राजस्व बढ़ाना चाहती है। ऐसे में दूध अमृत योजना ने पहाड़ के कई परिवारों की टूटती 'वर्तमान' उम्मीदों के सामने 'भविष्य' का उजाला तो दिखाया ही है। सरकार की दूध अमृत योजना से प्रदेश के आठ लाख स्कूली बच्चों का स्वास्थ्य कितना सुधरेगा, यह तो भविष्य में पता लग पाएगा, लेकिन इतना तय है कि प्रदेश का दुग्ध फेडरेशन तरक्की की राह पर चल पड़ेगा। विभाग के मंत्री डॉ. धन सिंह रावत चाहते भी यही हैं।

उम्मीद लेकर आई ईसी

हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय की नौंवी एक्जक्यूटिव काउंसिल (ईसी) की बैठक विवि के गैर शैक्षिक कर्मचारियों के लिए उम्मीद लेकर आई है। विवि प्रशासन ने इस बार ईसी के लिए श्रीनगर गढ़वाल विवि कैंपस के बजाय देहरादून का एफआरआइ परिसर चुना। बैठक में ईसी ने कर्मचारियों की नियुक्ति व पदोन्नति के लिए विवि अध्यादेश बनाने को मंजूरी दे दी। अब केवल इस अध्यादेश पर मानव संसाधन विकास मंत्रालय की मुहर लगनी बाकी है। विवि प्रशासन को आशा है कि अध्यादेश के लागू होते ही विवि कर्मचारियों की वर्षों बाद मुराद पूरी होगी। विवि कर्मचारियों के रिक्त पदों पर भर्ती कर सकेगा और वर्षों से एक पद ही पद पर रहने वाले कर्मचारियों को पदोन्नति दे सकेगा। गढ़वाल विवि की रीढ़ वहां के कर्मचारियों को इसके बाद अपनी उपयोगिता भी सिद्ध करनी होगी। विवि के संबद्ध कॉलेज छात्रों के अंक पत्रों में गड़बड़ी से कर्मचारी बच नहीं सकते हैं।

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सरकारी बनाम निजी विवि

प्रदेश में सरकारी और निजी क्षेत्र के कुल 32 विश्वविद्यालय उच्च शिक्षा उन्नयन की जिम्मेदारी संभाले हैं। इनमें से 12 विवि राजकीय क्षेत्र से हैं। जबकि अन्य निजी हैं। अब सवाल उठ रहा है कि राज्य में किस क्षेत्र के विश्वविद्यालय ज्यादा सफलता अर्जित कर रहे हैं। तो जवाब मिलता है कि निजी क्षेत्र के विवि काफी आगे हैं। इसका बड़ा उदाहरण उत्तरांचल विश्वविद्यालय प्रस्तुत कर भी रहा है। यहां से अभी तक 47 छात्र-छात्राएं देश के विभिन्न राज्यों में जज नियुक्त हो चुके हैं। इतना ही नहीं डीआइटी, आइएमएस यूनिसन, यूपीईएस व ग्राफिक एरा डीम्ड विवि जैसे प्राइवेट विवि से छात्र-छात्राएं 50 लाख रुपये से अधिक के सालाना पैकेज में बहुराष्ट्रीय कंपनियों में नौकरी पा चुके हैं। यदि हमारे सरकारी विवि भी क्वालिटी एजूकेशन पर ध्यान दें तो यहां पढ़ने वाले छात्र भी प्राइवेट विवि के छात्रों की तरह भविष्य बना सकते हैं। सरकार को थोड़ा ध्यान देना चाहिए।

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