देवभूमि उत्तराखंड के इस पहाड़ी इलाके में अनूठी परंपरा, नहीं होती मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा
जौनसार बावर में नवरात्र के दौरान केवल महागौरी की पूजा की जाती है। अष्टमी के दिन परिवार का मुखिया व्रत रखता है और मां का पूजन करता है। जौनसारी भाषा में इसे आठों पर्व कहते हैं। इस दिन विशेष पकवानों का भोग लगाया जाता है और नवमी को हेला की परंपरा निभाई जाती है जिसमें लोग एक दूसरे को चाय पर बुलाते हैं।

संवाद सूत्र, जागरण साहिया। जनजाति क्षेत्र जौनसार बावर में रीति रिवाज अनूठे हैं। यहां पर्वों को मनाने का भी अपना अलग अंदाज है। जनजाति क्षेत्र में नवरात्र में दुर्गा के नौ रूपों की पूजा नहीं होती है। जौनसार बावर में सिर्फ अष्टमी यानि महागौरी की ही पूजा अर्चना होती है।
जौनसार बावर में प्रत्येक परिवार में घर का मुखिया नवरात्र की अष्टमी को व्रत रखता है। दिन में हलवा-पूरी से मां का पूजन किया जाता है, शाम को मीट खाने में भी कोई परहेज नहीं है। देश के विभिन्न राज्यों में नवरात्र मनाने का अलग अंदाज है।
गुजरात में नवरात्र में डांडिया व गरबा की धूम दिखाई देती है तो पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा मुख्य है। इसी तरह से हर राज्य में नवरात्र के नौ रूपों की विधिवत पूजा होती है।
केवल अष्टमी यानि महागौरी का ही पूजन
पूरे देश में जहां पहाड़ों की पुत्री मां शैलपुत्री, विशेष कृपा करने वाली मां ब्रह्मचारिणी, चांद की तरह दमकने वाली चंद्रघंटा, पूरा जगत अपने पैर में समाने वाली कूष्मांडा, कार्तिक स्वामी की मां स्कंदमाता, कात्यायन आश्रम में जन्मी कात्यायनी, काल का नाश करने वाली कालरात्रि, सफेद दिव्य कांतिवाली महागौरी, सर्वसिद्धि प्रदान करने वाली मां सिद्धिदात्री की पूजा अर्चना करते हैं, लेकिन जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर में सिर्फ अष्टमी यानि महागौरी का ही पूजन होता है।
यहां पर सभी नवरात्र नहीं मनाए जाते। सिर्फ अष्टमी के दिन श्रद्धालु व्रत रखकर मां काली की पूजा अर्चना करते हैं। स्थानीय महिलाएं विमला देवी, सुनीता देवी, नीरो देवी, अनिता देवी, मालो देवी, रविता देवी, सविता देवी आदि का कहना है कि जौनसारी भाषा में अष्टमी पूजन को आठों पर्व कहा जाता है। जौनसार में हर त्योहार मनाने का अंदाज निराला है।
अष्टमी पूजन में हर गांव में हर घर से मुखिया शामिल होते हैं। अष्टमी के दिन घर के मुखिया सपत्निक व्रत रखते हैं। देवी मां की पूजा के दौरान नए कपड़े पहने जाते हैं। उसके बाद देवी मां को कचोरी, हलवा, चावल व गाय के घी का भोग लगाया जाता है। परिवार के सभी सदस्य दूध व चावल का टीका लगाते हैं। अष्टमी के दूसरे दिन नवमी को गांवों में एक दूसरे को चाय पर आमंत्रित करने का रिवाज है। जिसको हेला कहते हैं।
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