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Navratri 2022 : उत्‍तराखंड का ऐसा इलाका जहां केवल अष्टमी की ही होती है पूजा, नहीं मनाई जाती पूरी नवरात्रि

Navratri 2022 नवरात्रि के दौरान जहां गुजरात में डांडिया की धूम रहती है। लेकिन देहरादून जिले के जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर के रीति रिवाज इस सबसे अलग है यहां नवरात्र सिर्फ अष्टमी यानी महागौरी का ही पूजन होता है। जौनसार बावर में सिर्फ महागौरी का ही पूजन होता है।

By rajesh panwarEdited By: Nirmala BohraPublished: Mon, 03 Oct 2022 03:24 PM (IST)Updated: Mon, 03 Oct 2022 03:24 PM (IST)
Navratri 2022 : उत्‍तराखंड का ऐसा इलाका जहां केवल अष्टमी की ही होती है पूजा, नहीं मनाई जाती पूरी नवरात्रि
Navratri 2022 : केवल अष्टमी की ही होती है पूजा। फाइल फोटो

टीम जागरण, विकासनगर : Navratri 2022 : इन दिनों पूरे देश में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जा रही है, लेकिन देहरादून जिले के जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर के रीति रिवाज इस सबसे अलग है, यहां नवरात्र सिर्फ अष्टमी यानी महागौरी का ही पूजन होता है। प्रत्येक परिवार का मुखिया पति पत्नी अष्टमी का व्रत रखता है और हलवा-पूरी से मां को भोग लगाया जाता है।

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नवरात्रि के दौरान जहां गुजरात में डांडिया की धूम रहती है। वहीं पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजन का विशेष महत्व है। साथ ही सभी जगह देवी के नौ स्वरूपों की भी विधिवत पूजा होती है, लेकिन देहरादून जिले के जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर में सिर्फ महागौरी का ही पूजन होता है।

परिवार का मुखिया व्रत रखकर करता है महागौरी की पूजा

अष्टमी के दिन यहां परिवार का मुखिया पति-पत्नी व्रत रखकर महागौरी की पूजा अर्चना करते हैं। स्थानीय भाषा में इसे आठों कहा जाता है। स्थानीय महिला विमला देवी, फूलों देवी, सुनीता देवी, प्रभा देवी, रविता देवी और नीरो देवी का कहना है कि जौनसारी भाषा में अष्टमी को आठों पर्व कहा जाता है।

हलवा, पूरी, चावल व गाय के घी का भोग लगाया जाता है

अष्टमी पूजन में हर गांव से घर के मुखिया शामिल होते हैं, इसी दिन वह व्रत रखते हैं और पूजा के दौरान नए कपड़े पहने जाते हैं। इसके बाद देवी महागौरी को हलवा, पूरी, चावल व गाय के घी का भोग लगाया जाता है। परिवार के सभी सदस्यों को दूध व चावल का टीका लगाया जाता है। दूसरे दिन गांव में एक दूसरे को चाय पर आमंत्रित करने का भी रिवाज है।

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जौनसार बाबर में अनूठी रूप में मनाई जाती है दुर्गा अष्टमी

जौनसार बाबर में दुर्गा अष्टमी की पौराणिक परम्परा है। परिवार की खुशहाली, फसल की अच्छी उन्नति और पशु सही सलामत रहें। इसलिए साल में एक बार विजय दशमी से पहले दुर्गा अष्टमी के दिन हर परिवार का मुखिया व्रत रखता है। शाम को व्रत खोला जाता है और इसके बाद लोग एक-दूसरे के घर जाते हैं और प्रसाद ग्रहण करते हैं।


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