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    यदि आपके बच्चे भी मोबाइल पर बिता रहे हैं घंटो समय, नहीं खा रहे हैं खाना तो हो जाएं सावधान... भूलकर भी न करें ये काम

    Updated: Tue, 20 May 2025 02:46 PM (IST)

    आजकल छोटे बच्चों में मोबाइल और टीवी की लत बहुत आम हो गई है जो उनके लिए खतरनाक है। इससे उनकी आंखें कमजोर हो रही हैं वे खाना ठीक से नहीं खा रहे हैं और उनके हार्मोन का स्तर भी बिगड़ रहा है। डॉक्टरों का कहना है कि खाना खाते समय मोबाइल चलाने से वे ज्यादा या कम खाते हैं जिससे मोटापे या कुपोषण का खतरा होता है।

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    तस्वीर का इस्तेमाल प्रतीकात्मक प्रस्तुतिकरण के लिए किया गया है। जागरण

    सुमित थपलियाल, देहरादून। नए दौर में अपडेट होती तकनीक ने जिंदगी को आसान तो किया, लेकिन इसके दुष्परिणाम भी देखने को मिल रहे हैं। बात मोबाइल और टीवी की करें तो ये फायदेमंद होने के साथ साथ नुकसान भी पहुंचा रहे हैं।

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    खासकर छोटे बच्चों में इसकी लत लगना काफी खतरनाक हो चुका है। बच्चों में मोबाइल की लत बढ़ती जा रही है। उठते-बैठते, सोते-जागते, खाते-पीते हर समय बच्चे फोन में आंखें जमाए रहते हैं।

    बच्चे खाना न खाने की जिद ना करें, इसलिए अभिभावक भी मोबाइल दे देते हैं। चाहकर भी अभिभावक मोबाइल और टीवी की लत से दूर नहीं कर पा रहे हैं। इधर, चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि इसका नकारात्मक प्रभाव उनकी शारीरिक और मानसिक सेहत पर भी पड़ रहा है।

    आंखें कमजोर होना, चबाकर ना खाना, अधिक खा लेना, पोषण ना मिलने से हार्मोन लेवल गड़बड़ाना आदि समस्या सामने आती हैं। चिकित्सकों का कहना है कि खाना खाते समय मोबाइल चलाने से बच्चे भूख से कम या ज्यादा खाते हैं।

    जिससे मोटापे का शिकार हो सकते हैं, अथवा उन्हें कुपोषण का खतरा बना रहता है। यह इसलिए होता है कि क्योंकि मोबाइल देखते समय बच्चे खाना चबाने की बजाय निगल जाते हैं, जिससे उनका मेटाबालिज्म कमजोर होता है और ये तमाम समस्या सामने आती हैं।

    हेल्दी ग्रोथ के लिए नियंत्रित करें बच्चों का स्क्रीन टाइम

    वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ विशाल कौशिक का कहना है कि डिजिटल डिवाइस का अधिक उपयोग शारीरिक निष्क्रियता को बढ़ा देता है। इसके कई गंभीर दुष्प्रभाव हो सकते हैं। यह शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है।

    माता-पिता अक्सर छोटे बच्चों को मोबाइल पर कोई वीडियो दिखाते हुए खाना खिलाते हैं। ऐसा करने पर बच्चे का ध्यान खाने के बजाय मोबाइल पर होगा। इस स्थिति में मुंह से खाना पचाने में सहायक ग्रंथियां पूरी तरह सक्रिय नहीं हो पातीं और पर्याप्त मात्रा में रसायन नहीं निकाल पातीं।

    जिस कारण शरीर में पहुंचने वाला खाना पच ही नहीं पाता। ऐसे में कई स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। बच्चों को खाना खाते वक्त मोबाइल फोन बिल्कुल न दें। ऐसा करके आप उनका स्क्रीन टाइम तो बढ़ा ही रहे हैं, उन्हें बीमारी की ओर भी धकेल रहे हैं।

    लंबे समय तक मोबाइल देखने से आंखों में पानी, ड्राइनेस और जलन

    दून अस्पताल के नेत्र रोग विभाग के इकाई प्रभारी डॉ सुशील ओझा बताते हैं कि पहले बच्चों में आंखों की समस्या के मामले न के बराबर थे, लेकिन अब चार से पांच मामले हर दिन आ रहे हैं। दरअसल आंखों कमजोर होने का कारण गेम से लेकर पढ़ाई मोबाइल से किए जा रहे हैं। चश्मे का नंबर बढ़ रहा है।

    एकेडमिक और प्रदर्शन का दबाव भी है। टीवी से ज्यादा लंबे समय तक मोबाइल देखने से आंखों में पानी, ड्राइनेस और जलन होने लगती है। ऐसे में जरूरी है कि कम से कम मोबाइल का उपयोग करें। आउटडोर गेम खेलें, कम्प्यूटर की जगह टीवी का इस्तेमाल कर सकते हैं।

    एकाग्र और स्मरण शक्ति हो रही कमजोर

    कोरोनेशन अस्पताल की मनोचिकित्सक डॉ निशा सिंगला का कहना है कि पहले टीवी में फिल्म तीन घंटे, फिर दो और एक घंटे लेकिन आजकल मोबाइल में इंस्टाग्राम जैसे एप पर बच्चे 10-10 सेकंड का वीडियो देख रहे हैं। इससे उनकी एकाग्रता कमजोर हो रही है। बार-बार देखने से उनकी स्मरण शक्ति भी कमजोर हो रही है।

    वे चीजों से बोर हो रहे हैं। सोते हुए भी फोन देखने से नींद प्रभावित हो रही है, क्योंकि दिमाग को एक समय के बाद शांति चाहिए जो उसे नहीं मिल रही है। इंटरनेट मीडिया पर दोस्तों के पोस्ट देखकर तनाव में हैं कि वह नहीं जा पाए। कुल मिलाकर मोबाइल मानसिक रूप से बच्चों को खासा प्रभावित कर रहा है।

    बच्चा बिना मोबाइल खाना नहीं खाता, आश्चर्यजनक तथ्य

    केंद्रीय विद्यालय-1 सालावाला हाथीबड़कला की शिक्षिका विभा पोखरियाल नौडियाल का कहना है कि आश्चर्यजनक तथ्य है की माता-पिता कहते हैं कि बच्चा बिना मोबाइल पकड़े खाना नहीं खाता। यह मनुष्य की चारित्रिक कमजोरी का उदाहरण प्रस्तुत करता है।

    मोबाइल का जीवन में प्रवेश और इसका बच्चों पर नकारात्मक प्रभाव यह बिल्कुल वैसे है जैसे आंखों देखी मक्खी निगलना। हम चाहे तो दृढ़ संकल्प लेकर बच्चों को इसकी लत से बचा सकते हैं।

    विशेषज्ञों और शिक्षाविदों की मदद से बच्चों के लिए कुछ क्रियाकलाप उन में व्यस्त कर एक प्रोडक्टिव जीवन शैली को अपना सकते हैं। सभी स्टेकहोल्डर विद्यालय, माता पिता और विशेषज्ञ, सब की भागीदारी आवश्यक है।

    इन बातों का भी रखें ध्यान

    • बच्चों को लाड़ प्यार में मोबाइल न पकड़ाएं। कोशिश करें कि खाना खाने के दौरान बच्चों को फोन न दें।
    • बच्चों को फोन चलाने के दुष्परिणाम प्यार से बताएं। बच्चे अगर ज्यादा छोटे हैं तो उन्हें खुद खाना खिलाएं।
    • मोबाइल की लत से बच्चे खाने में रुचि नहीं दिखा रहे हैं, तो इसके लिए सबसे पहले स्क्रीन टाइम कम करें।
    • बच्चों को खाने के दौरान मोबाइल से दूर रखें, धीरे-धीरे उन्हें बिना मोबाइल के खाना खिलाने की आदत डालें
    • बच्चों को अन्य गतिविधियों में व्यस्त रखें। बच्चों को फोन की लत के नुकसान बताते हुए सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाएं।
    • अभिभावक ही बच्चों के मूड को देखकर उसकी आदत को बदल सकते हैं। आदत नहीं छूट रही तो काउंसलिंग कराएं।