देहरादून, जेएनएन। मसूरी-देहरादून विकास प्राधिकरण (एमडीडीए) अवैध प्लॉटिंग से नजरें न फेरता तो शायद तो पुश्ता ढहने से जो चार जिंदगियां चली गईं, उन्हें बचाया जा सकता था। न तो एमडीडीए यहां पर अवैध प्लॉटिंग होने देता और न ही मौत का पुश्ता खड़ा हो पाता। क्योंकि जिस भौगोलिक संरचना और सुविधाओं के अभाव के बावजूद यह प्लॉटिंग की गई है, उसे आवासीय प्रयोग के लिए पास किया जाना संभव भी नहीं हो पाता। सिर्फ प्लॉटिंग पर से ही निगाह नहीं फेरी गई, यहां जो भवन खड़े किए जाने लगे हैं, उन पर भी अधिकारियों का ध्यान नहीं जा रहा। गंभीर बात यह भी है कि हादसा होने के 16 घंटे बाद यह बात एमडीडीए उपाध्यक्ष के संज्ञान में लाई जाती है। हालांकि, इसके बाद भी एमडीडीए के जिम्मेदार जेई और एई गुरुवार को भी मौके पर नहीं गए और छुट्टी मनाते रहे।
यह कहानी उस एमडीडीए की है, जहां सचल दस्ता भी तैनात है। एक आम व्यक्ति अपनी वैध जमीन पर निर्माण कार्य जरा भी इधर-उधर कर दे तो वहां यह दल सुपर हीरो की तरह धमक पड़ता है। फिर कैसे इतनी बड़ी प्लॉटिंग पर नजर नहीं पड़ी। एमडीडीए में अवैध प्लॉटिंग का खेल नया नहीं है। एक बार औपचारिकता के लिए कहीं पर अवैध प्लॉटिंग ध्वस्त कर दी जाए तो दोबारा संबंधित अभियंता वहां झांकने भी नहीं जाते। कुछ माह पहले जरूर शासन ने एक अवैध प्लॉटिंग को दो बार ध्वस्त करने पर उसे ब्लैकलिस्ट करने का शासनादेश आदेश जारी किया, मगर एमडीडीए के रिकॉर्ड बताते हैं कि ऐसा एक भी जगह पर नहीं किया गया।
जाहिर है अधिकारियों की सरपस्ती में अवैध प्लॉटिंग खूब फूल-फल रही है। परवान नहीं चढ़ रही एक क्लिक पर अवैध निर्माण पकड़ने की योजना ऑनलाइन कार्यप्रणाली में एमडीडीए ने काफी काम पूरा कर लिया है, मगर अभी भी ऐसी प्रणाली विकसित नहीं की जा सकी है कि एक क्लिक पर अवैध निर्माण की जानकारी प्राप्त की जा सके। न ही यह पता लग पाता है कि किस क्षेत्र में कौन सा निर्माण या भू-विन्यास वैध है। यदि ऐसा किया जाता तो एमडीडीए अधिकारी घटना के दो दिन बाद तक भी अंधेरे में हाथ-पैर न मार रहे होते। क्योंकि यहां किसी भी वैध या अवैध निर्माण के कोर्डिनेट्स प्राधिकरण के पास हैं ही नहीं।
यहां तक कि खसरा नंबर से भूपयोग बता पाने की स्थिति में भी अभी एमडीडीए नहीं आ पाया है। एक क्लिक की जगह आरटीआइ लगाकर बताया जाता है भूपयोग यदि किसी व्यक्ति को अपने भूखंड का लैंडयूज (भूपयोग) पता करना है तो उसके लिए आरटीआइ लगानी पड़ेगी। इसमें भी एमडीडीए की-प्लान मांगता है। जो कि बिना आर्किटेक्ट के बन पाना संभव नहीं। साफ है पहले लोग हजारों रुपये खर्च कर की-प्लान तैयार करवाएं और फिर कई दिनों के इंतजार के बाद अपना भूपयोग का पता चल पाएगा।