यहां गिरा था देवी सती का सिर, मां के दर्शन करने से मिट जाते हैं समस्त पाप
टिहरी जिले के कद्दूखाल से डेढ़ किमी ऊपर मां सुरकंडा का मंदिर है। नवरात्र पर मां के दर्शनों का विशेष महत्व है। इन अवसरों पर मां के दर्शन करने से समस्त पाप मिट जाते हैं।
देहरादून, जेएनएन। मसूरी मोटर मार्ग पर कद्दूखाल से डेढ़ किलोमीटर ऊपर करीब तीन हजार फुट की ऊंचाई में सुरकुट पर्वत पर है मां सुरकंडा का मंदिर। कद्दूखाल से मंदिर तक पैदल दूरी तय करनी पड़ती है। मंदिर के पौराणिक उल्लेख के अनुसार जब राजा दक्ष ने कनखल में यज्ञ का आयोजन किया तो उसमें सभी देवताओं को आमंत्रित किया गया, लेकिन भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया गया। शिव के मना करने पर भी शिव की पत्नी व राजा दक्ष की पुत्री यज्ञ में चली गई।
वहां उसका अपमान हुआ और वह यज्ञ कुंड में कूद गई। इस पर शिव ने क्रोधित होकर सती का शव त्रिशूल में लटकाकर हिमालय में चारों ओर घुमाया। इससे सती का सिर सुरकुट पर्वत पर गिरा, तब से इस जगह का नाम सुरकंडा पड़ गया, जो बाद में सिद्धपीठ सुरकंडा के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
सिद्धपीठ सुरकंडा मंदिर केवल धार्मिक जगह ही नहीं हैं, बल्कि यह एक ऐसी खूबसूरत जगह भी है, जहां हर कोई बार-बार आना चाहेगा। सबसे ऊंची चोटी होने के कारण यहां से चारों ओर की खूबसूरती को निहारा जा सकता है। यहां से उच्च हिमालय की बर्फीली चोटियों के अलावा बदरीनाथ, केदारनाथ, तुंगनाथ, गंगोत्री, नंदीदेवी, गौरीशंकर पर्वत, चौखंबा दून घाटी आदि स्थान दिखाई देते हैं।
मां सुरकंडा का महातम्य
सिद्धपीठ मां सुरकंडा मंदिर इकलौता ऐसा सिद्धपीठ है, जहां गंगा दशहरा के मौके पर मेला लगता है। मान्यता है कि जब राजा भगीरथ गंगा को पृथ्वी पर लाए थे, तो उस समय शिव की जटाओं से गंगा की एक धारा निकलकर सुरकुट पर्वत पर गिरी। जिसके प्रमाण के रूप में मंदिर के नीचे की पहाड़ी पर जलस्रोत फूटता है। वैसे तो मां के दर्शन पूरे साल कर पुण्य लाभ अर्जित किया जा सकता है, लेकिन गंगा दशहरा व नवरात्र पर मां के दर्शनों का विशेष महत्व बताया गया है। इन अवसरों पर मां के दर्शन करने से समस्त पाप मिट जाते हैं और सभी मनोकामना पूर्ण होती है। इसलिए गंगा दशहरा व नवरात्र पर मंदिर में भारी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। कपाट खुलने का समय-मंदिर वर्ष भर श्रद्धालुओं के लिए खुला रहता है।
इस तरह पहुंचे
मां सुरकंडा मंदिर के लिए कद्दूखाल तक वाहनों से जाते हैं और उसके बाद करीब डेढ़ किमी की खड़ी चढ़ाई चढ़कर मंदिर पहुंचते हैं। कद्दूखाल से मंदिर आने-जाने के लिए घोड़े भी उपलब्ध रहते हैं और अब रोप-वे भी बन रहा है। बाहर से आने वाले यात्री ऋषिकेश से चंबा 60 किमी, चंबा से कद्दूखाल 20 किमी वाहन से आ सकते हैं। वाहन दिन में हर समय मिल जाते हैं। इसके अलावा देहरादून से मसूरी होकर करीब 60 किमी की दूरी तय कर कद्दूखाल पहुंच सकते हैं।
सिद्वपीठ मां सुरकण्डा मंदिर के पुजारी रमेश प्रसाद लेखवार का कहना है कि मां सुरकंडा के दर्शनों का विशेष महातम्य है। मां सभी की मनोकामना पूर्ण करने वाली है। नवरात्र व गंगा दशहरे के मौके पर मां के दर्शन का विशेष महत्व है। मां के दर्शन करने से पापों का नाश होता है।
यह भी पढ़ें: मान्यता है इंद्र को वर के रूप में पाने को यहां की थी मां भगवती ने कड़ी तपस्या, जानिए
मंदिर प्रबंध समिति के प्रबंधक उत्तम सिंह जड़धारी का कहना है कि मां के दर्शन से पुण्य फल की प्राप्ति होती है। लोग बड़ी आशा व विश्वास के साथ मन्नत मांगने आते हैं। जब कोई भी अपने कार्य की शुरूआत करता है, तो वह सबसे पहले मंदिर में दर्शन करने आता है। मां सभी की मनोकामना पूर्ण करने वाली है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।