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जानें- क्यों फाइलों में दबा रह गया चैंपियन टाइगर ट्रेल, यहीं से हुई थी कैमरा ट्रैप फोटोग्राफी की शुरुआत

लैंसडौन वन प्रभाग की कोटड़ी रेंज में प्रस्तावित चैंपियन टाइगर ट्रेल को निगल गई। विश्व प्रसिद्ध कार्बेट टाइगर रिजर्व और राजाजी टाइगर रिजर्व के मध्य स्थित लैंसडौन वन प्रभाग को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने के उद्देश्य से प्रभाग ने कोटड़ी रेंज में नौ किमी. लंबा मार्ग तैयार किया था।

By Raksha PanthriEdited By: Published: Sun, 26 Dec 2021 06:27 PM (IST)Updated: Sun, 26 Dec 2021 06:27 PM (IST)
जानें- क्यों फाइलों में दबा रह गया चैंपियन टाइगर ट्रेल, यहीं से हुई थी कैमरा ट्रैप फोटोग्राफी की शुरुआत
जानें- क्यों फाइलों में दबा रह गया चैंपियन टाइगर ट्रेल।

अजय खंतवाल, कोटद्वार। उत्तराखंड की राजनीति में बीते दिनों हुई उठापटक लैंसडौन वन प्रभाग की कोटड़ी रेंज में प्रस्तावित चैंपियन टाइगर ट्रेल को निगल गई। विश्व प्रसिद्ध कार्बेट टाइगर रिजर्व और राजाजी टाइगर रिजर्व के मध्य स्थित लैंसडौन वन प्रभाग को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने के उद्देश्य से प्रभाग ने कोटड़ी रेंज में नौ किमी. लंबा मार्ग तैयार किया था, जिसे चैपिंयन टाइगर ट्रेल नाम दिया जाना था। लेकिन, सत्ता के गलियारों में मची उथल-पुथल के कारण इस मार्ग को नाम न दिया जा सका। बताना बेहद जरूरी है कि चैंपियन टाइगर ट्रेल का नाम उन प्रभागीय वनाधिकारी एफडब्ल्यू चैंपियन के नाम पर रखा गया है, जो 1923 में इस प्रभाग में बतौर प्रभागीय वनाधिकारी तैनात हुए और यहीं से उन्होंने कैमरा ट्रैप फोटोग्राफी की शुरुआत की।

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1897 में अस्तित्व में आया लैंसडौन वन प्रभाग अपनी वन्यजीव विविधता के लिए मशहूर है। कैट्स अवार्ड से सम्मानित इस वन प्रभाग की कोटद्वार, लैंसडौन, दुगड्डा, कोटड़ी और लालढांग रेंजों में चालीस से अधिक बाघ मौजूद हैं। इतना ही नहीं, हाथियों ने भी इस वन प्रभाग को अलग पहचान दिलाई है। लैंसडौन वन प्रभाग की ओर से प्रभाग को नई पहचान दिलाने के लिए प्रभाग की कोटड़ी रेंज में सनेह से कोल्हूचौड़ के मध्य नौ किमी. लंबी चैंपियन टाइगर ट्रेल बनाने की तैयार कर रहा था। इसके लिए बाकायदा महकमे ने इस ट्रैक पर अलग-अलग जगह क्षेत्र में मौजूद वन्य जीव विविधता से संबंधित बोर्ड भी बनाए।

(यही है वह बाघ का चित्र, जिसे पहली बाद कैमरे से 'शूट' कर कागज में उकेरा गया था। यह चित्र लंदन की एक मैग्जीन का आवरण पृष्ठ पर प्रकाशित हुआ।)

ट्रेल के लोकार्पण की तिथि भी तय हो गई, लेकिन, सत्ता के गलियारों में शुरू हुआ नाराजगी व मान-मनौव्वल का दौर इस ट्रेल पर भारी पड़ गया। दरअसल, वन मंत्री डा. हरक सिंह रावत ने कोल्हूचौड़ वन विश्राम गृह के जीर्णोद्धार कार्यों के साथ ही टाइगर ट्रेल का लोकार्पण करना था। नाराजगी शुरू हुई तो जीर्णोद्धार कार्यों का लोकार्पण तो मंत्री के पीआरओ ने कर दिया और टाइगर ट्रेल ठंडे बस्ते में चली गई।

जानिए कौन थे एफडब्ल्यू चैंपियन

24 अगस्त 1983 को जन्म फ्रैड्रिक वाल्टर चैंपियन के पिता जार्ज चार्ल्स चैंपियन कीट विज्ञानी थे। प्रकृति के बीच पले-बढ़े एफडब्ल्यू चैंपियन को बचपन से ही वन्य जीवों से लगाव था। 1913 में बतौर पुलिस अधिकारी भारत पहुंचे एफडब्ल्यू चैंपियन 1916 में ब्रिटिश भारतीय सेना में शामिल हुए। उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध में प्रतिभाग किया।

इसके बाद उन्होंने इंपीरियल फारेस्ट्री सर्विसेज में बतौर उप वन संरक्षक कार्यभार संभाला और शिवालिक पहाड़ियों में उन्हें तैनाती मिली। 1923 से 1927 तक वे लैंसडौन वन प्रभाग में प्रभागीय वनाधिकारी रहे। इसी कार्यकाल में उन्होंने कैमरा ट्रैप फोटोग्राफी की शुरूआत की। लैंसडौन वन प्रभाग के जंगलों में पहली बार कैमरा ट्रैप विधि से खींची गई बाघ की तस्वीर को लंदन की एक मैग्जीन में कवर पेज पर जगह मिली।

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