यहां और भी ज्यादा आक्रामक हो रहे भालू, अब सर्दियों में भी बढ़ रही सक्रियाता, पैदा हो रही कई चुनौतियां
गुलदार और हाथी जैसे वन्यजीवों के व्यवहार में बदलाव से उत्तराखंड पहले ही परेशान है। अब भालुओं ने भी चुनौती पेश कर दी है। चमोली उत्तरकाशी टिहरी के विभिन ...और पढ़ें

केदार दत्त, देहरादून। उत्तराखंड में गुलदार और हाथी जैसे वन्यजीवों के व्यवहार में बदलाव से उत्तराखंड पहले ही परेशान है। अब भालुओं ने भी चुनौती पेश कर दी है। चमोली, उत्तरकाशी, टिहरी के विभिन्न क्षेत्रों में सर्दियों में भालूओं की सक्रियता ने चिंता बढ़ा दी है। अमूमन, सर्दियों में शीत निंद्रा के लिए भालू गुफाओं में चले जाते हैं, लेकिन इस बार वे लगातार आबादी वाले क्षेत्रों के आसपास न सिर्फ देखे जा रहे, बल्कि आक्रामक भी हो रहे हैं।
आए दिन भालू के हमले इसका उदाहरण हैं। यह सब भालू के व्यवहार में बदलाव की तरफ इशारा कर रहे हैं। अब तक माना जाता था कि सर्दी के मौसम में भालू बहुत कम दिखते हैं, इस बार ये धारणा टूटी है। इसे जंगल और विकास के मध्य सामंजस्य के अभाव से भी जोड़कर देखा जा रहा है। ऐसे में जरूरी है कि भालू के व्यवहार में आए बदलाव के मद्देनजर गहन अध्ययन कराया जाए।
वन्यजीवों की सुरक्षा को लेकर सवाल
उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बर्फबारी का सिलसिला शुरू होने के साथ ही वहां से हिम तेंदुआ, घुरल समेत दूसरे वन्यजीव निचले क्षेत्रों की तरफ रुख करते हैं। वर्तमान में बर्फबारी के बाद यह क्रम प्रारंभ हो चुका है। इसके साथ ही इन वन्यजीवों की सुरक्षा को लेकर चिंता के बादल गहराने लगे हैं। पूर्व में ऐसी कई घटनाएं हो चुकी हैं, जब उच्च हिमालयी क्षेत्र से तलहटी की की तरफ आए वन्यजीव शिकारियों का निशाना बने हैं। परिणामस्वरूप इस विषय पर गंभीर होने के साथ ही वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए प्रभावी कदम उठाने की दरकार है। इसके लिए वन विभाग को अधिक संजीदगी से कार्य करना होगा। निचले क्षेत्रों में नियमित रूप से गश्त के साथ ही खुफिया तंत्र को अधिक सक्रिय करने की आवश्यकता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि वन विभाग इस दृष्टिकोण से तत्काल ठोस एवं प्रभावी कदम उठाएगा। आखिर, सवाल बेजबानों की सुरक्षा का है।
जश्न का माहौल, सांसत में बेजबान
नए साल के स्वागत और पुराने साल की विदाई के लिए तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। कार्बेट व राजाजी टाइगर रिजर्व समेत अन्य संरक्षित क्षेत्रों से लगे होटल, रिसार्ट्स, विश्राम गृह लगभग बुक हो चुके हैं। वहां जश्न की तैयारियों का दौर भी प्रारंभ हो चुका है। जश्न का यह माहौल वन्यजीवों की सुरक्षा के दृष्टिकोण से सबसे खतरनाक माना जाता है। जश्न के दौरान होने वाली आतिशबाजी और शोरगुल से जंगल में बेजबानों का बिदकना स्वाभाविक है। उस पर सैलानियों की आड़ में माहौल का फायदा उठाते हुए शिकारी अथवा तस्कर जंगल में जा धमकें तो...। यद्यपि, जंगल से लगे क्षेत्रों के होटल, रिसार्ट में होने वाले जश्न के लिए नियम-कायदे पहले ही तय हैं, लेकिन इस पर निगरानी रखना सबसे बड़ी चुनौती है। इस मोर्चे पर ही अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। ऐसे में वन विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों को अधिक सतर्क व सजग होना होगा।
एंगलिंग को बनाएं स्वरोजगार का माध्यम
भौगोलिक दृष्टिकोण से उत्तराखंड में वन विभाग सबसे बड़ा विभाग है। उसके पास 71.05 प्रतिशत वन भूभाग की वन संपदा के संरक्षण-संवद्र्धन का जिम्मा है। ऐसे में जंगल से जुड़े इस विभाग से यह उम्मीद रहती है कि वह ज्यादा से ज्यादा रोजगार, स्वरोजगार के अवसर सृजित करे। इस दृष्टि से वन प्रहरी, फायर वाचर, नर्सरी स्थापना, ईको टूरिज्म, नेचर गाइड, जिप्सी संचालन आदि में रोजगार उपलब्ध हुआ है। इस कड़ी में लंबे समय से वन क्षेत्रों में नदियों में एंगलिंग (मछलियां पकड़कर उसे सुरक्षित नदी में छोड़ना) पर जोर दिया है। इसके लिए पहल हुई, लेकिन अभी तक एंगलिंग को नाममात्र के लाइसेंस ही जारी हुए हैं, जबकि एंगलिंग में काफी संभावनाएं हैं। इससे जहां प्रकृति से कोई छेड़छाड़ नहीं होगी, वहीं पर्यटन की दृष्टि से नए स्थल विकसित होंगे। स्वाभाविक तौर पर इससे स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर सृजित होंगे। इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

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