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अगर घर में ही मिल जाए भोजन तो भला आबादी में क्यों भटकेंगे ये नटखट, जानिए क्या है मामला

उत्तराखंड में लगातार गहराते बंदरों व लंगूरों के आतंक की। भोजन की तलाश में गांवों शहरों की ओर रुख करते ये नटखट जानवर आमजन के लिए मुसीबत का सबब बनते जा रहे हैं। अब अगर उन्हें घर में ही भोजन मिल जाएगा तो भला वे आबादी का रुख क्यों करेंगे।

By Raksha PanthriEdited By: Published: Sat, 18 Sep 2021 06:15 PM (IST)Updated: Sat, 18 Sep 2021 09:20 PM (IST)
अगर घर में ही मिल जाए भोजन तो भला आबादी में क्यों भटकेंगे ये नटखट, जानिए क्या है मामला
अगर घर में ही मिल जाए भोजन तो भला आबादी में क्यों भटकेंगे ये नटखट।

राज्य ब्यूरो, देहरादून। वे नटखट हैं। यूं कहें कि यह उनकी फितरत है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। अपने घर यानी जंगल में रहेंगे तो वहां खूब शैतानी करेंगे। यदि भोजन नहीं मिला तो गांवों, शहरों में आकर धमाचौकड़ी मचाएंगे। चलिये पहेली बहुत हो गई। अब इसे बुझाये देते हैं। हम बात कर रहे हैं 71.05 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड में लगातार गहराते बंदरों व लंगूरों के आतंक की। भोजन की तलाश में गांवों, शहरों की ओर रुख करते ये नटखट जानवर आमजन के लिए मुसीबत का सबब बनते जा रहे हैं। हालांकि, इस समस्या से पार पाने के लिए बंदरबाड़े स्थापित कर बंदरों, लंगूरों के बंध्याकरण की मुहिम शुरू की गई है, ताकि इनकी बढ़ती संख्या पर अंकुश लग सके। इसके साथ ही वन क्षेत्रों में होने वाले पौधारोपण में फलदार प्रजातियों को लगाने पर जोर दिया गया है, जिससे जंगलों में इन जानवरों के लिए भोजन की कमी न हो।

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उत्तराखंड के वन सीमा से सटे क्षेत्रों में बाघ, गुलदार, हाथी, भालू जैसे हिंसक जानवरों ने पहले ही रातों की नींद और दिन का चैन छीना हुआ है और बंदर-लंगूरों की समस्या ने मुसीबत और बढ़ा दी है। ज्यादा वक्त नहीं गुजरा, जब गांवों व शहरों के आसपास बंदर, लंगूर भूले-भटके ही दिखाई पड़ते थे। अलबत्ता, अब इनके झुंड लगातार ही आबादी वाले क्षेत्रों में धमक रहे हैं, फिर चाहे वह गांव हों अथवा शहर।

पहाड़ के गांवों में बंदर व लंगूरों ने ज्यादा दिक्कतें खड़ी की हुई हैं। फल-सब्जी की फसलों को तो ये भारी नुकसान पहुंचा ही रहे, अब तो घरों के भीतर से खाद्य सामग्री तक उठा ले जा रहे हैं। इस सबके चलते गांवों में घरों के पास भी सब्जी आदि बोने से लोग कतरा रहे हैं तो घरों के आंगन में अनाज सुखाने आदि की समस्या भी उत्पन्न हो गई है। यही नहीं, बड़ी संख्या में लोग अब तक बंदरों व लंगूरों के हमलों में घायल तक हो चुके हैं। न सिर्फ पहाड़, बल्कि मैदानी व घाटी वाले क्षेत्रों में भी यह समस्या दिन प्रतिदिन गहराती जा रही है। सभी जगह इन उत्पाती जानवरों ने नाक में दम किया हुआ है।

इनसे पिंड छुड़ाने के सारे उपाय बेअसर साबित होते दिख रहे हैं।इस बीच कारणों की पड़ताल हुई तो बात सामने आई कि जंगलों में कहीं न कहीं फूड चेन कुछ गड़बड़ाई है। इसके अलावा शहरों व गांवों के इर्द-गिर्द कूड़े-कचरे के ढेर में आसान भोजन की तलाश में ये वहां आ रहे हैं। विभिन्न स्थानों पर और सड़कों के किनारे इन्हें भोजन देने की परिपाटी भी भारी पड़ रही है। परिणामस्वरूप ये जंगलों में भोजन तलाशने की बजाए शहरों व गांवों की तरफ आ रहे हैं।

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जानकारों का कहना है कि बंदरों और लंगूरों की समस्या के निदान के लिए इनकी संख्या पर नियंत्रण को कदम उठाने होंगे। साथ ही सबसे अहम ये कि जंगलों में इनके लिए भोजन की व्यवस्था के लिए वृहद पैमाने पर बीजू सेब, नाशपाती, अखरोट, खुबानी, आडू, पुलम, आम, शहतूत, मेहल आदि फलदार प्रजातियों के पौधों का रोपण किया जाना चाहिए। अब इस दिशा में पहल भी शुरू हो गई है।

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