बरसात में इनका डांस हाथियों को करता है काफी परेशान, बचने को मिट्टी में भी लोटते हैं गजराज
रिमझिम फुहारों के बीच उत्तराखंड के जंगलों की छटा देखते ही बनती है। इस मनमोहक नजारे के बीच गजराज की परेशानी भी बढ़ जाती है। वह भी तब जब इस दौरान पानी और भोजन इफरात में होता है।
केदार दत्त, देहरादून। रिमझिम फुहारों के बीच उत्तराखंड के जंगलों की छटा देखते ही बनती है। क्या तराई क्या भाबर और क्या पहाड़ अथवा घाटी वाले क्षेत्र, सभी हरियाली से लकदक हैं। इस मनमोहक नजारे के बीच गजराज की परेशानी बढ़ जाती है। वह भी तब जबकि इस दौरान पानी और भोजन इफरात में होता है। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर परेशानी की वजह है क्या। दरअसल, बरसात में नदियों के तटों के इर्द-गिर्द डांस मक्खी बहुतायत में होती है, जो हाथियों के लिए मुसीबत से कम नहीं है। हालांकि, इसके डंक से बचने के लिए गजराज अपने शरीर पर उथले पानी से मिट्टी निकालकर उसमें लोटते हैं, मगर यह मक्खी फिर भी परेशान करती है। ऐसे में हाथी अपने समूह के साथ फुटहिल की तरफ जाना ज्यादा श्रेयस्कर समझते हैं। जाहिर है कि इस वक्फे में हाथियों की आबादी वाले क्षेत्रों के नजदीक धमक भी कुछ कम होती है।
निगरानी के लिए मगरमच्छों पर जल्द लगेंगे टैग
वन्यजीव विविधता वाले उत्तराखंड में बाघ, गुलदार, हाथियों पर रेडियो कालर लगाकर उनके व्यवहार का अध्ययन चल रहा है। अब मगरमच्छ, ऊदबिलाव व कछुआ जैसे जलीय जीवों पर सैटेलाइट मानीटर्ड टैग लगेंगे। इसकी जरूरत इसलिए भी ज्यादा महसूस की गई कि हरिद्वार जिले के लक्सर समेत अन्य क्षेत्रों में मगरमच्छ मुसीबत का सबब बने हैं। आशंका जताई जा रही कि इनके प्राकृतवास में कोई ऐसी दिक्कत तो नहीं, जिससे ये आबादी वाले क्षेत्रों का रुख कर रहे। ये बात तो अध्ययन में ही पता चलेगी, इसी के दृष्टिगत मगरमच्छ समेत अन्य जलीय जीवों पर टैग लगाकर अध्ययन किया जाएगा। कोरोना की दूसरी लहर में यह कार्य नहीं हो पाया था, मगर अब इसकी जोर-शोर से तैयारी है। टैग एक तरह की इलेक्ट्रानिक चिप है, जिससे इन जीवों के मूवमेंट पर निगरानी रखी जाएगी। इससे व्यवहार का भी अध्ययन होगा और क्षेत्र विशेष में जाने पर अलर्ट भी जारी हो सकेगा।
पहली मर्तबा राज्य स्तर पर गिने जाएंगे गुलदार
उत्तराखंड में गुलदारों ने नींद उड़ाई हुई है। मनुष्यों पर इनके हमले कम होने के बजाय, निरंतर बढ़ रहे हैं। गुलदार और मनुष्य के बीच छिड़ी इस जंग में दोनों को ही कीमत चुकानी पड़ रही है। लगातार गहराती इस जंग के पीछे गुलदारों की संख्या में भारी इजाफा होना भी माना जा रहा है, मगर इसका कोई आधिकारिक आंकड़ा ही नहीं है। वजह ये कि पूरे राज्य में अभी तक गुलदारों की गणना ही नहीं हो पाई है। हालांकि, अखिल भारतीय स्तर की बाघ गणना के दौरान यहां राजाजी व कार्बेट टाइगर रिजर्व समेत 12 वन प्रभागों में गुलदारों की संख्या का भी आकलन होता रहा हैै, मगर राज्य स्तर पर इन्हें गिना नहीं गया। अब पहली मर्तबा अक्टूबर से होने वाली बाघ गणना के दौरान प्रदेश स्तर पर गुलदारों की गणना की जाएगी। इससे यह तस्वीर साफ हो सकेगी कि आखिर यहां गुलदारों की वास्तविक संख्या है कितनी।
जंगलों की सुरक्षा में बढ़ती महिलाओं की भागीदारी
महिलाएं हर क्षेत्र में अपनी काबलियत के बूते सफलता की नित नई ऊंचाईयां छू रही हैं। ऐसे में फिर भला वे 71.05 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड में वन एवं वन्यजीवों की सुरक्षा में पीछे कैसे रह सकती हैं। कार्बेट टाइगर रिजर्व में महिलाएं गाइड की भूमिका तो निभा ही रहीं, वे जिप्सी संचालन से भी जुड़ी हैं। कार्बेट में जल्द ही सफारी के दौरान महिलाएं जिप्सी चलाती नजर आएंगी। इसके अलावा वन विभाग में काफी संख्या में वन क्षेत्राधिकारी के रूप में महिलाएं कार्यरत हैं तो अब अगले माह तक विभाग को मिलने 1218 नए फारेस्ट गार्ड में भी महिलाएं शामिल होंगी। यही नहीं, वन विभाग की ओर से संचालित पौधालयों में बड़ी संख्या में महिलाएं कार्यरत हैं। साफ है कि प्रदेश में वन एवं वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए महिलाएं अब मुस्तैदी के साथ खड़ी हैं। विभाग में सेवारत सभी महिलाएं अन्य महिलाओं के लिए भी प्रेरणास्रोत हैं।
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