Kedarnath Closing 2022: छह माह के लिए ओंकारेश्वर में विराजेंगे बाबा केदार, पढ़ें धाम की 10 खास बातें
Kedarnath Closing 2022 देश और दुनियाभर से हर साल श्रद्धालु बाबा केदार की शरण में पहुंचते हैं। धाम के कपाट भैया दूज के अवसर पर शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए हैं। आइए जानते हैं भगवान शिव के धाम केदारनाथ के बारे में खास बातें...

टीम जागरण, देहरादून : Kedarnath Closing 2022 : केदारनाथ धाम के कपाट भैया दूज के अवसर पर शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए हैं। इसके बाद ऊखीमठ स्थित ओंकारेश्वर मंदिर में भगवान केदार छह माह कि लिए विराजेंगे।
देश और दुनियाभर से हर साल श्रद्धालु बाबा केदार की शरण में पहुंचते हैं। आइए जानते हैं भगवान शिव के धाम केदारनाथ के बारे में खास बातें...
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मैसूर के जंगम ब्राह्मण होते हैं केदारनाथ के पुजारी
- केदारनाथका मंदिर 3593 फीट की ऊंचाई पर बना हुआ एक भव्य एवं विशाल मंदिर है। मंदिर में मुख्य भाग मंडप और गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ है। बाहर प्रांगण में नंदी बैल वाहन के रूप में विराजमान हैं। केदारनाथ के पुजारी मैसूर के जंगम ब्राह्मण होते हैं।
- शंकर बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतध्यान हुए तो उनके धड़ से ऊपर का हिस्सा काठमांडू में प्रकट हुआ। अब वहां पशुपतिनाथ का मंदिर है।
- इसी तरह भगवान शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मद्महेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए। इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है। यहां भगवान शिव के भव्य मंदिर बने हुए हैं।
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- 2013 में आपदा के दौरान केदारनाथ धाम में मंदिर को छोड़ बाकी पूरा परिसर क्षतिग्रस्त हो गया था।
- आपदा के बाद से अब तक धाम में पुनर्निर्माण का कार्य चल रहा है।
- केदारनाथ पुनर्निर्माण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट में भी शामिल है। धाम में हो रहे पुनर्निर्माण कार्यों पर वह स्वयं नजर रखते हैं।
- मान्यता है कि महाभारत के बाद पांडव अपने गोत्र बंधुओं की हत्या के पाप से मुक्ति के लिए भगवान शिव की शरण में जाना चाहते थे। इसके लिए वह भगवान शिव की खोज करने हिमालय की ओर गए और तब भगवान शिव अंतर्ध्यान होकर केदार में जा बसे।
- द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक केदारनाथ धाम में भगवान शिव लिंग रूप में विराजमान हैं।
- केदारनाथ धाम का उल्लेख स्कंद पुराण के केदार खंड में मिलता है। कहा जाता है कि मंदिर का निर्माण कत्यूरी शैली में हुआ है। पांडवों के वंशज जन्मेजय ने यहां इस मंदिर की स्थापना की थी। बाद में आदि शंकराचार्य द्वारा इसका जीर्णोद्धार कराया गया था।
- राहुल सांकृत्यायन के अनुसार यह मंदिर 12वीं-13वीं शताब्दी का है। ग्वालियर से मिली एक राजा भोज स्तुति के अनुसार यह उनके द्वारा बनाया गया मंदिर है। वह राजा 1076-99 काल के थे।


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