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यहां भगवान शिव ने दिए थे कालुन ऋषि को दर्शन, शिवलिंग के रूप में आज भी हैं विराजमान

पर्यटन नगरी लैंसडौन की पहाड़ियों को कालोडांडा के नाम से भी जाना जाता है और इन पहाड़ियों को यह नाम मिला प्राचीन कालेश्वर मंदिर से।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Mon, 22 Jul 2019 02:43 PM (IST)Updated: Mon, 22 Jul 2019 02:43 PM (IST)
यहां भगवान शिव ने दिए थे कालुन ऋषि को दर्शन, शिवलिंग के रूप में आज भी हैं विराजमान
यहां भगवान शिव ने दिए थे कालुन ऋषि को दर्शन, शिवलिंग के रूप में आज भी हैं विराजमान

देहरादून, जेएनएन। कम ही लोगों को इस बात की जानकारी होगी कि पर्यटन नगरी लैंसडौन की पहाड़ियों को कालोडांडा के नाम से भी जाना जाता है और इन पहाड़ियों को यह नाम मिला प्राचीन कालेश्वर मंदिर से, जिसकी स्थापना कालुन ऋषि ने की थी।

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पांच मई 1887 को गढ़वाल रेजीमेंट की स्थापना हुई और चार नवंबर 1887 को जब रेजीमेंट कालोडांडा पहुंची तो रेजीमेंट को वीरान जंगल के साथ ही एक गुफा में शिवलिंग मिला, जिसे कालेश्वर के नाम से जाना जाता था। आसपास के गांवों का यह ग्राम देवता था व ग्रामीण ही गांव में पूजा-अर्चना करते थे। 1901 में प्रथम गढ़वाल ने इस स्थान पर एक छोटे से मंदिर का निर्माण करवाया। 1995 में गढ़वाल राइफल्स रेजीमेंट ने इस मंदिर का पुर्ननिर्माण करवाया और 1999 में रेजीमेंट ने ही मंदिर के बाहर प्रांगण बनाया। वर्तमान में मंदिर की पूजा अर्चना व देखरेख का कार्य गढ़वाल राइफल्स ही करती है। 

इतिहास 

करीब पांच हजार वर्ष पूर्व इस स्थान पर एक गुफा हुआ करती थी, जिसमें कालुन नामक ऋषि ने शिव की आराधना की। ऋषि की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और शिवलिंग के रूप में वहीं स्थापित हो गए। मंदिर में स्थापित शिवलिंग पत्थर का है। शिवलिंग उत्तराभिमुखी है और धरातल से करीब ढाई इंच ऊपर है। मान्यता है कि आसपास के गांवों की गायें इस शिवलिंग पर अपने थनों से दूध गिराकर शिवलिंग का दुग्धाभिषक किया करती थी। 

कैसे पहुंचे 

कोटद्वार से सड़क मार्ग से 40 किमी. दूर पर्यटन नगरी लैंसडौन में स्थित है यह मंदिर। कोटद्वार से लगातार लैंसडौन के लिए जीप-टैक्सियों का संचालन होता है। इनमें सफर कर यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है। 

सूबेदार मेजर धर्मगुरू पंडित गढ़वाल रेजीमेंट पंडित शशांक शेखर डिमरी ने बताया कि मंदिर की काफी महत्ता है। मंदिर की देखरेख भले ही सेना करती है, लेकिन 1947 तक मंदिर में ऋषि ही रहते थे। कालुन ऋषि के देहावसान के बाद स्वामी कल्याण गिरी और उनके बाद स्वामी गणेशानंद जी ने मंदिर की देखरेख की। 

व्यापार मंडल के अध्यक्ष राजेश ध्यानी ने बताया कि मंदिर की देखरेख वर्तमान में सेना कर रही है, जिस कारण मंदिर पर्यटक स्थल के रूप में विकसित नहीं हो पा रहा है। सेना से वार्ता चल रही है, ताकि मंदिर के विकास के नगरवासियों की समिति गठित की जा सके। 

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