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उत्‍तराखंड: सत्रह साल गुजरे, गैरसैंण फिर भी गैर

उत्तराखंड गठन के 17 साल गुजर चुके हैं, लेकिन गैरसैंण में स्थायी राजधानी के सवाल का अब तक कोई समाधान नहीं निकल पाया।

By Sunil NegiEdited By: Published: Fri, 10 Nov 2017 07:53 PM (IST)Updated: Sat, 11 Nov 2017 08:47 PM (IST)
उत्‍तराखंड: सत्रह साल गुजरे, गैरसैंण फिर भी गैर

देहरादून, [विकास धूलिया]: उत्तराखंड राज्य स्थापना की सत्रहवीं वर्षगांठ भी गुजर गई मगर गैरसैंण में स्थायी राजधानी के सवाल का अब तक कोई समाधान नहीं निकल पाया। इस मामले में राज्य अब भी वहीं खड़ा है, जहां गठन के वक्त था। अलबत्ता, गैरसैंण में विधानसभा भवन का निर्माण और साल में एक सत्र आयोजित कर भाजपा और कांग्रेस, गैरसैंण के मुद्दे को भविष्य के लिए जिंदा जरूर रखे हुए हैं। सुविधा के मुताबिक गैरसैंण मुद्दे को इस्तेमाल करती आ रही सियासी पार्टियां निकट भविष्य में इस पर अपना स्टैंड स्पष्ट करेंगी, फिलहाल तो आसार नजर नहीं आते।

चमोली जिले के गैरसैंण को उत्तराखंड की स्थायी राजधानी बनाने की मांग राज्य निर्माण से भी पहले से उठती रही है। अलग राज्य बनने के बाद पहली अंतरिम सरकार ने स्थायी राजधानी स्थल चयन के लिए एकल सदस्यीय दीक्षित आयोग बनाया जरूर लेकिन ग्यारह एक्सटेंशन के बाद फाइनल हुई आयोग की रिपोर्ट आज तक सरकारी फाइलों से बाहर नहीं निकल पाई। वर्ष 2012 में सत्ता में आई कांग्रेस ने इस दिशा में तेजी दिखाई तो लगा कि अब समाधान निकट है। इस क्रम में पहले कैबिनेट बैठक और फिर पिछले तीन साल लगातार विधानसभा सत्र का गैरसैंण में आयोजन किया गया।

पिछली कांग्रेस सरकार ने गैरसैंण में विधानसभा भवन, सचिवालय और अतिथि गृह का निर्माण शुरू करा दिया लेकिन जब विधानसभा चुनाव का वक्त आया तो कांग्रेस के साथ ही भाजपा भी इसे मुद्दा बनाने को तैयार नहीं हुई। दरअसल, सूबे में व्यापक जनाधार रखने वाली दोनों पार्टियों, भाजपा और कांग्रेस को भय इस बात का है कि इससे उनका सियासी गणित गड़बड़ा सकता है। वह इसलिए, क्योंकि सत्तर सदस्यीय विधानसभा की लगभग आधी सीटें मैदानी जिलों में हैं और इससे दोनों पार्टियों को लगता है कि उन्होंने अगर गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने की हिमायत की तो लगभग 35 मैदानी भूगोल वाली विधानसभा सीटों का मतदाता उनसे विमुख हो सकता है।

बहुत ज्यादा तो नहीं, मगर उत्तराखंड की जनता को कहीं न कहीं यह उम्मीद जरूर थी कि तीन-चौथाई से ज्यादा बहुमत से सत्ता में आई भाजपा गैरसैंण को लेकर कोई अहम निर्णय ले सकती है। राज्य स्थापना दिवस जैसा अवसर इससे जुड़ी घोषणा के लिए सबसे मुफीद होता मगर ऐसा कुछ हुआ नहीं। इससे आम उत्तराखंडी जनमानस को मायूसी हुई। हालांकि भाजपा ने आगामी दिसंबर में गैरसैंण में विधानसभा सत्र आयोजित कर इस मसले पर अपनी प्रतिबद्धता प्रदर्शित करने की कोशिश की है लेकिन पार्टी इसे केवल ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की दिशा में ही आगे बढ़ती दिख रही है।

 फिलहाल भाजपा और कांग्रेस गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाए जाने के मसले पर अब भी आरोप-प्रत्यारोप लगा एक-दूसरे को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश करते दिख रहे हैं। हालांकि, अब अधर में लटके गैरसैंण के सवाल पर शासकीय प्रवक्ता और कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक ने कहा कि इस बार गैरसैंण का समाधान जरूर मिलेगा। उधर, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष डॉ. इंदिरा हृदयेश का कहना है कि गैरसैंण को लेकर प्रदेश सरकार कोई भी फैसला लेती है तो उसे इस मामले में अनुभवी कांग्रेस की राय जरूर लेनी चाहिए।

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