Jagran Samvadi Dehradun: 'जो व्यक्त है वह AI, जो अव्यक्त वह मानव'; पढ़िए प्रसून जोशी व प्रह्लाद कक्कड़ के विचार
देहरादून में जागरण संवाद में प्रसून जोशी और प्रह्लाद कक्कड़ ने रचनात्मकता और एआई पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने कहा कि एआई ज्ञान को एकत्रित कर सकता है लेकिन मानव की सोच और समझ से बेहतर रचना नहीं कर सकता। एआई एक बेहतर प्रक्रिया है पर मानव मस्तिष्क को आलसी बना सकती है इसलिए इसके प्रयोग में सावधानी बरतनी चाहिए।

सुमन सेमवाल, देहरादून। रचनात्मकता और एआइ (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) एक ऐसा विषय है, जो एक-दूसरे का पूर्वक तो नजर आता है, लेकिन वास्तविक रूप में ऐसा है नहीं। एआइ किसी भी रचना को तैयार करने के लिए दुनियाभर के पहले से गढ़े गए ज्ञान को एक साथ परोस सकता है, लेकिन उसे मूल्यवान रचना बनाने के लिए व्यक्ति की अपनी सोच और समझ मायने रखती है।
यह कार्य एआइ नहीं कर सकता। हालांकि, इसके बाद भी एआइ की प्रासंगिकता कम नहीं होती। एआइ किसी मंजिल को प्राप्त करने की बेहतर प्रक्रिया है और यह प्रक्रिया ही सबसे अहम होती है। यह बातें जागरण संवादी के प्रथम सत्र में रचनात्मकता और एआइ विषय पर प्रसिद्ध कवि व गीतकार प्रसून जोशी और एड गुरु प्रह्लाद कक्कड़ के बीच हुए मंथन में से मथकर निकलीं।
रचनात्मकता और एआइ जैसे गूढ़ विषय पर बात करने के लिए जागरण संवादी के मंच पर एक तरफ एड गुरु प्रह्लाद कक्कड़ थे तो दूसरी तरफ प्रसिद्ध कवि व गीतकार प्रसून जोशी। उनके बीच संवाद को आगे बढ़ाने और सवालों के रूप में विषयवस्तु को दिशा देने में लेखिका अमृता त्रिपाठी ने विशिष्ट भूमिका निभाई।
एड गुरु प्रह्लाद कक्कड़ ने एआइ को कट, कापी, पेस्ट के लिहाज से बेहतर माध्यम बताया। साथ ही कहा कि एआइ हमें यानी व्यक्तिगत ज्ञान को कापी नहीं कर सकता है। लिहाजा, एआइ पर अधिक निर्भरता नहीं होनी चाहिए। उसे अपना गुलाम बनाइए, उसका गुलाम मत बनिए।
दूसरी तरफ कवि-गीतकार प्रसून जोशी ने एआइ की उपयोगिता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि एआइ मौजूदा समय में विश्वभर की जानकारी चुटकियों में उपलब्ध कराने के साथ खुद को अपडेट भी कर रहा है। 24 घंटे के भीतर ही समान विषय पर अतिरिक्त जानकारी एकत्रित की जा सकती है।
हालांकि, उन्होंने आगे जोड़ा कि जो व्यक्त है, वह एआइ है और जो अव्यक्त है, वह मानव है। इस तरह देखें तो मानव की असीमित सोच से उपजी खोज के बाद एआइ उस तक दूसरों की पहुंच को आसान करता है। वह उस सोच को उत्पन्न नहीं कर सकता।
फिर भी आपको यह बात माननी होगी कि ज्ञान की 10 हजार टिप्पणियां एआइ आपको एक साथ उपलब्ध करा सकता है, लेकिन किसी भी ज्ञानी व्यक्ति के लिए उन्हें एक साथ व्यक्त करना आसान नहीं। उन्होंने एक गीत कैसेट की खोज का अपना अनुभव साझा किया। कहा कि कैसेट की प्राप्ति के लिए उनकी राह बेहद जटिल रही, लेकिन एआइ के दौर में इस तरह की खोज जरा भी जटिल नहीं है। मंजिल तक पहुंच की यह प्रक्रिया ही अहम है।
एआइ पर निर्भरता से सोचने की क्षमता होगी प्रभावित
एड गुरु प्रह्लाद कक्कड़ ने कहा कि मानव मस्तिष्क आलसी भी होता है। यदि आप उसे एआइ की आदत लगाएंगे तो उसकी रचनात्मक क्षमता खत्म होने लगेगी। यह लत मानव मस्तिष्क को अपाहिज बना सकती है।
एआइ के प्रयोग पर सतर्कता पर प्रसून और प्रह्लाद का मत एक
कवि प्रसून जोशी और एड गुरु प्रह्लाद ने एक मत होते हुए कहा कि सूचनाओं के भंडार एआइ के प्रयोग को लेकर अतिरिक्त सावधानी की भी जरूरत है। सबसे पहले यह समझने की जरूरत है कि एआइ की कमांड का केंद्र कहां है। इसी तरह जो व्यक्ति इसका प्रयोग कर रहे हैं, उनके निर्णय लेने का केंद्र कहां है। दोनों ही स्तर पर संतुलन कायम होने से उसके प्रयोग की उपयोगिता बढ़ जाएगी। लिहाजा, युवा पीढ़ी और बच्चों की फाउंडेशन एजुकेशन पर भी काम करने की जरूरत है।
विमर्श के मुख्य बिंदु
- एआइ जनरल लर्निंग प्रोसेस है, सिर्फ एक यात्रा है और मंजिल नहीं।
- यह दो और दो चार का ज्ञान देता है, लेकिन उसे 22 बनाने की मानवीय क्षमता की तरह सक्षम नहीं है।
- अगर आप जानकारी चाहते हैं तो एआइ मदद कर सकता है, लेकिन सत्य की तलाश कर रहे हैं तो यहां निराशा हाथ लगेगी।
- एआइ एक सीमा के बाद खालीपन से भरा नजर आता है, मानव की रचनात्मक क्षमता के मामले में ऐसा नहीं है।
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