Jagran Samvadi Dehradun: अमोल पालेकर ने सुनाए जीवन यात्रा के अनसुने किस्से, कहा- 'मैं क्या-क्या नहीं हूं, सिर्फ पूंछ नहीं हूं'
अभिनेता अमोल पालेकर ने अपनी आत्मकथा अमानत में अपने जीवन के कई अनछुए पहलुओं को उजागर किया है। उन्होंने अपने अभिनय करियर उतार-चढ़ाव और कृतज्ञता के भाव को साझा किया है। अमोल पालेकर ने अपनी फिल्मों के क्यूआर कोड भी दिए हैं। उन्होंने आज के सिनेमा पर भी अपने विचार व्यक्त किए और समानांतर सिनेमा के कम होने पर चिंता जताई।

नवीन पपनै, जागरण देहरादून। Jagran Samvadi Dehradun: अमोल पालेकर... अलग तरह का अभिनय, अलग तरह का व्यक्तित्व। संवेदनशीलता, सहजता, सरलता और सौम्यता के प्रतिबिंब। हिंदी सिनेमा का ऐसा नाम, जिसने हिंदी के साथ ही मराठी सिनेमा को अपनी सहज अदायगी और अनोखी निर्देशन शैली से नई दिशा दी।
थिएटर जगत में निर्देशक के रूप में स्थायी पहचान बनाने के बाद भी उन्होंने हिंदी सिनेमा को भरपूर जिया और अपने अभिनय के दम पर दर्शकों के बीच अमिट छाप छोड़ी। अब उन्होंने अपनी इस यात्रा को शब्दों में पिरोया है, जिसमें उनके जीवन में आए उतार-चढ़ाव और सबके प्रति कृतज्ञता का भाव है।
दैनिक जागरण की ओर से आयोजित संवादी में दूसरे दिन के पहले सत्र 'अमोल की अमानत' में अमोल पालेकर ने अपने जीवन के उन तमाम पक्षों को सामने रखा, जिन्हें जानने की हर सिनेप्रेमी में उत्कंठा रहती है। ‘अमानत’ अमोल पालेकर की आत्मकथा का हिंदी रूपांतरण है, जिसमें उनके संपूर्ण करियर को स्वयं अमोल और उनकी पत्नी लेखिका संध्या गोखले ने लिखा है।
अमोल जैसे दिखते हैं, वैसे ही हैं। न कोई बनावट न कोई बहाना। मैं क्या हूं, मैं बहुत कुछ हूं, मैं क्या-क्या नहीं हूं, सिर्फ पूंछ नहीं हूं। यह जानने-पहचानने, समझाने और बताने के लिए अमोल ने अभिव्यक्ति का रास्ता चुना। वस्तुत: आत्मकथा में स्वयं का ज्यादा पुट होता है, लेकिन अमोल की इस किताब में कथा नायक सिर्फ नायक ही नहीं बना रहना चाहता, दिग्दर्शन भी बनना चाहता है, इसलिए उसने इसे सबकी, सभी के लिए बनाया है।
ऐसा इसलिए क्योंकि किताब में दर्शकों, सिनेमा की दुनिया से जुड़े लोगों के भरपूर योगदान को स्थान दिया गया है। अमोल ने उनके लिए कृतज्ञता का भाव प्रकट किया है, जिनके कारण वह कुछ बन पाए, जिन्होंने प्यार दिया, आगे बढ़ने की राह दिखाई। अमोल गर्व से कहते हैं कि उन्होंने जितने भी किरदार जिए, कोशिश रही कि उसमें आमजन की पीड़ा हो। वह धरती से जुड़े हैं और पैर धरती पर ही टिकाए रहना चाहते हैं।
‘गोलमाल’, ‘बातों बातों में’, ‘छोटी सी बात’, 'चितचोर' जैसी फिल्मों में अपने शानदार अभिनय और तब आए उतार-चढ़ाव को उन्होंने बेबाकी से रखा। निर्देशक के रूप में ‘पहेली’, ‘थोड़ा सा रूमानी हो जाएं’ के उन पहलुओं पर भी चर्चा की जो पर्दे के पीछे ही रह गई थीं। उन्होंने खूबियों के साथ खुलकर अपनी खामियां भी उजागर कीं। पुस्तक की विशेषता यह है कि बतौर निर्देशक अमोल ने जो फिल्में बनाईं, उनके ‘क्यूआर कोड’ भी इसमें दिए हैं, ताकि उनके प्रशंसक उन्हें स्कैन कर आसानी से फिल्मों को देख सकें।
ऐसा करने वाले वे सिनेमा जगत के पहले निर्देशक हैं। अमोल को अपने बीच पाकर और उनके बारे में उन्हीं के मुखारबिंदु सुनना श्रोताओं को खूब भाया। सत्र का संचालन कर रहे सिनेमा और संगीत अध्येता यतीन्द्र मिश्र ने बड़ी साफगोई से सवाल-जवाब का जो सिलसिला शुरू किया अमोल पालेकर ने उतने ही सहज भाव और खूबसूरती से हर अनछुए तथ्य को साझा किया। हाल की करतल ध्वनि ने बताया कि अमोल क्यों अनमोल बने हुए हैं।
आत्मकथा की सह लेखिका एवं अमोल की पत्नी संध्या गोखले से जब किताब प्रकाशन की प्रक्रिया के बारे में पूछा गया तो पूरी तस्वीर सामने आई। इसके लिए दस साल सोचा गया, जब-तब प्रकाशकों ने आत्मकथा लिखने का सुझाव दिया। लेकिन, समयाभाव को आधार बनाकर इस विचार को टाल दिया गया। संध्या के दबाव डालने पर कोरोनाकाल में शब्दों को पिरोने की शुरुआत हुई। देखते ही देखते कलम से 450 पन्ने लिख डाले।
दो साल बाद इसकी जिम्मेदारी संध्या ने संभाली। जब पढ़ा तो लगा कि इस पर काम करना चाहिए। संध्या इसे सिर्फ एक व्यक्ति की आत्मकथा नहीं मानतीं। इसे पूरे छह दशकों का इतिहास बताते हुए अनेक कथाओं और फिल्म उद्योग के अनेक लोगों का योगदान बताती हैं। 24 नवंबर 2024 को अमोल पालेकर के 80 साल पूरे होने पर किताब का प्रकाशन हुआ।
आज के सिनेमा से तुलना
आज के सिनेमा की तब के कालखंड से तुलना पर अमोल ने कहा कि मेन स्ट्रीम सिनेमा में आज यह बात ज्यादा कही जाती है कि किस फिल्म ने कितने करोड़ रुपये का व्यवसाय किया। उसका सिर्फ यश मापा जाता है। उसके परे जाना छोड़ दिया गया है। समानांतर सिनेमा कम हो गया है। मुझे उसमें कोई दिलचस्पी ही नहीं है। आज-कल जो कुछ दिखा रहे हैं, उसमें कोई नहीं बात नहीं होती। ऐसा कोई विचार नहीं होता, ऐसा कोई प्रस्तुतीकरण नहीं होता, ऐसा कोई एक्सप्रेशन नहीं होता।
अमोल से जुड़े अनमोल तथ्य
- संध्या गोखले ने अमोल के अनमोल तथ्यों के बारे में बताया कि एक दिन में 72 सिगरेट पी जाने वाले इस कलाकार ने दृढ़ इच्छा शक्ति के बल पर इसे छोड़ दिया।
- अमोल क्रिकेट के बहुत शौकीन हैं। लाइव क्रिकेट हो तो वह टीवी से चिपक जाते हैं।
- लोग अमोल का फिल्मी पक्ष ही ज्यादा जानते हैं, लेकिन वे एक बेहतरीन पेंटर और नाट्यकर्मी भी हैं।
- अब स्वभाव में वह अमोल नहीं, जिसके लिए जाने जाते थे। गुस्सा अब नहीं आता। ड्राइविंग के शौक को उम्र के पड़ाव के कारण अब कम कर दिया है।
इसलिए सबके चहेते हैं अमोल
अमोल ने वर्ष 1972 में अपना थिएटर ग्रुप ‘अनिकेत’ शुरू किया। वर्ष 1971 में सत्यदेव दुबे की मराठी फिल्म ‘शांतता! कोर्ट चालू आहे’ से अभिनय के क्षेत्र में प्रवेश किया। हिंदी फिल्मों में उन्होंने वर्ष 1974 में बासु चटर्जी की फिल्म ‘रजनीगंधा’ से कदम रखा। उन्होंने ‘चितचोर’, ‘घरौंदा’, ‘मेरी बीवी की शादी’, ‘बातों-बातों में’, ‘गोलमाल’, ‘नरम-गरम’, ‘श्रीमान-श्रीमती’ जैसी कई यादगार फिल्में कीं। उनकी हास्य फिल्मों को दर्शक आज भी याद करते हैं।
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