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    Jagran Samvadi 2025: गायक पिता बोले- 'गाना मत गाना', लेकिन बेटी ने गाया... और संगीत इतिहास में अमर हो गई हेमलता

    Updated: Sat, 28 Jun 2025 10:15 PM (IST)

    देहरादून में पार्श्व गायिका हेमलता के जीवन पर आधारित एक कार्यक्रम आयोजित किया गया जिसमें उन्होंने अपने संगीत सफर के बारे में बात की। हेमलता ने बताया कि कैसे उन्होंने अपने पिता के विरोध के बावजूद संगीत में अपना करियर बनाया। उन्होंने अपने शुरुआती दिनों के संघर्षों और लता मंगेशकर से तुलना के बारे में भी बात की। कार्यक्रम में उन्होंने अपने प्रसिद्ध गीत भी गाए।

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    गायिका हेमलता व जीवनीकार अरविंद यादव से संवाद करते यूनुस खान। जागरण

    दिनेश कुकरेती, देहरादून। संवादी मंच सज चुका है। पार्श्व में 'अंखियों के झरोखों से, मैंने देखा जो सांवरे, कहीं दूर नजर आए, बड़ी दूर नजर आए', 'ले तो आए हो हमें सपनों के गांव में, प्यार की छांव में', 'कौन दिशा में लेके चला रे बटोहिया', 'तू जो मेरे सुर में सुर मिला ले संग गा ले', चंदा को ढूंढने सभी तारे निकल पड़े' जैसे सदाबहार गीतों की मधुर स्वरलहरियां गूंज रही हैं।

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    मंच पर विराजमान हैं पार्श्व गायिका हेमलता व उनकी जीवनी लिखने वाले पत्रकार अरविंद यादव। उनसे संवाद कर रहे हैं संगीत अध्येता युनुस खान। हाल में मौजूद तमाम श्रोता उनकी गीतोंभरी कहानी सुनने के लिए आतुर हैं।

    श्रोताओं में प्रसिद्ध अभिनेता अमोल पालेकर और हेमलता के पुत्र आदित्य भी शामिल हैं। बातों का सिलसिला शुरू होते ही तो श्रोताओं की उत्कंठा भी बढ़ने लगी है। हेमलता ने भी उन्हें निराश नहीं किया और फिर बातों ही बातों में बहने लगी गीतों की सरिता।

    बचपन में हेमतला का क्या था नाम? 

    हेमलता को बचपन में बेबी लता कहा जाता था और किशोरावस्था में दूसरी लता। इसलिए जिन संगीत निर्देशकों को लता की डेट्स नहीं मिल पाती थीं, हेमलता उनकी पसंदीदा कलाकार बन गईं। लेकिन, हेमलता का सफर कभी आसान नहीं रहा। उनके पिता पं. जयचंद भट्ट स्वयं शास्त्रीय गायक थे, फिर भी वह कभी नहीं चाहते थे कि हेमलता फिल्मों के लिए गाए।

    यह राजस्थान का ऐसा परिवार था, जहां बेटियों के गाने पर धर्मभ्रष्ट हो जाता है। हेमलता कहती हैं, 'पर मुझे तो गाना था। सोचिए, कैसे-कैसे पापड़ बेलने पड़े होंगे इसके लिए मुझे। हालांकि, मैंने हार नहीं मानी और इसी जिद ने मुझे कोलकाता (तब कलकत्ता) पहुंचा दिया।

    वहां जब मैंने शो में लताजी का प्रसिद्ध गाना 'जागो मोहन प्यारे' गाया तो लोग कहने लगे 'बेबी लता' गा रही है और फिर पूरे 12 गाने मैंने गाए। तब पिताजी ने कहा था, ठीक है गा सकती हो, लेकिन सिर्फ शास्त्रीय गाने'। खैर, तमाम बाधाओं को पार कर मैं वर्ष 1966 में मुंबई पहुंच गई, लेकिन गाने के लिए नहीं।

    पिता इसलिए मुझे मुंबई ले गए थे कि साल-छह महीने में सिर से फिल्मों में गाने का भूत उतर जाएगा। ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था, सो एक दिन पिता को भी कहना पड़ा, जब भगवान ऐसा चाहता है तो मैं क्या कर सकता हूं। लेकिन, शर्त उनकी वही थी कि लताजी का गाना भूलकर भी न गाना। अन्यथा लोग तुम्हें भी लता की कापी समझने लगेंगे।

    बकौल हेमलता, एक दिन जब मैं नौशाद साहब के यहां पहुंची तो वह बोले, हेमलता में लता मंगेशकर की वाइस क्वालिटी और नूरजहां की इनोसेंस है। फिर उनके साथ गाने का एग्रीमेंट हो गया। यह बात जब मीडिया तक पहुंची तो बात जंगल की आग की तरह फैल गई थी और पूरी म्यूजिक इंडस्ट्री में धूम मच गई।

    तब मैंने गाया, 'चंदा को ढूंढने सभी तारे निकल पड़े'। उस कार्यक्रम में मौजूद बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री विधानचंद्र राय ने मेरे लिए अपनी ओर से एक गोल्ड मेडल की घोषणा की। अब आया वर्ष 1970 और मैंने गाया 'फकीरा चल चला चल'।

    आगे चलकर 'दिल करने लगा है प्यार', 'चली कहां हंसती गाती', 'महबूब की मेंहदी हाथों में', 'बात करते हैं जब माशूक से' जैसे गाने मुझे मिले। लेकिन, संगीतकारों और निर्माता-निर्देशकों के सामने आडिशन में मैं अक्सर पिताजी के शिष्य रवींद्र जैन के संगीतबद्ध किए गैरफिल्मी गीत ही गाती थी। हालांकि, रवींद्र जैन के एक सफल संगीतकार बन जाने का मुझे लाभ भी मिला। उनके निर्देशन में मुझे कई बेहतरीन गीत गाने को मिले।

    अरविंद यादव बताते हैं कि हेमलता विश्व की अकेली गायिका हैं, जिन्होंने नौ माह के गर्भ में नदिया के पार का गीत 'कौन दिशा में लेके चला रे बटोहिया' गया। इस गीत का रिकार्ड करने के दो दिन बाद उनके बेटे आदित्य का जन्म हुआ।

    असल में हेमलता को गाने मुश्किल से मिलते थे, इसलिए जो भी मिलते थे, वह उन्हें गाने का अवसर नहीं गंवाती थीं। उन्हें उन लोगों से भी लड़ाई लड़नी पड़ी, जो सामने नहीं आते थे। उन्होंने येसुदास के साथ भी अनेक यादगार गीत गाए। 'जब दीप जले आना' गीत तो आज भी हृदय के तारों को झंकृत कर देता है।

    खैर, श्रोता चाहते थे कि गीतों के साथ बातों का सिलसिला लंबा चले, लेकिन समय की अपनी सीमाएं हैं, इसलिए अब विदा लेने का मौका है। लेकिन, इस मौके को भी हेमलता ने गढ़वाली गीत गाकर यादगार बना दिया। उन्होंने गाया 'चल हिट दगड़्या तू तेरो गौं, ऊंचु-निसु बाटू दूर तेरो गौं। ...और जाते-जाते वह उस कुमाऊंनी गीत को गाना भी नहीं भूली, जिसे उन्होंने सुर दिए हैं।