Year Ender 2021: उत्तराखंड में सियासत में चेहरे बदलने वाला रहा साल
Year Ender 2021 खटीमा से दूसरी बार विधायक बने पुष्कर सिंह धामी इसी चार जुलाई को राज्य के 11वें मुख्यमंत्री बने। धामी अब तक के सबसे युवा मुख्यमंत्री भी हैं। युवा होने के बावजूद भाजपा आलाकमान ने धामी पर भरोसा जताया है।
विकास धूलिया, देहरादून। इस साल उत्तराखंड ने अपनी 21 वर्ष की आयु पूरी कर 22वें में प्रवेश किया। चुनावी साल होने के कारण राजनीतिक दलों की सक्रियता चरम पर रहेगी, यह तय था, लेकिन तब भी शुरुआत में किसी ने सोचा न होगा कि यह साल राजनीति के लिहाज से उत्तराखंड के लिए इतने ज्यादा परिवर्तन वाला साबित होगा। सत्तारूढ़ भाजपा हो या फिर मुख्य विपक्ष कांग्रेस, दोनों ही दलों ने सब कुछ बदल डाला। दो बार सरकार में नेतृत्व परिवर्तन हुआ, तो संगठन की कमान भी भाजपा ने नए चेहरे को सौंप दी।
सत्ता में वापसी की मशक्कत कर रही कांग्रेस ने भी प्रदेश अध्यक्ष व नेता विधायक दल की जिम्मेदारी नए नेताओं दे दी। खटीमा से दूसरी बार विधायक बने पुष्कर सिंह धामी इसी चार जुलाई को राज्य के 11वें मुख्यमंत्री बने। धामी अब तक के सबसे युवा मुख्यमंत्री भी हैं। युवा होने के बावजूद भाजपा आलाकमान ने धामी पर भरोसा जताया और अब तक के लगभग छह महीने के कार्यकाल में वह इस भरोसे पर खरे भी उतरते दिखे हैं। उन्हीं के नेतृत्व में भाजपा विधानसभा चुनाव में उतरने जा रही है। लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) गुरमीत सिंह ने इसी 15 सितंबर को उत्तराखंड के आठवें राज्यपाल के रूप में पदभार ग्रहण किया। इससे पहले बेबी रानी मौर्य ने अपने लगभग तीन साल के कार्यकाल के बाद पद से इस्तीफा दे दिया था।
कार्यकाल के चार साल पूरे होने से पहले विदाई
परिवर्तन का सिलसिला मार्च में ही शुरू हो गया। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गैरसैंण विधानसभा सत्र में इसे कमिश्नरी बनाने की घोषणा की। अभी सत्र संपन्न भी नहीं हुआ कि भाजपा आलाकमान ने आनन-फानन त्रिवेंद्र को मुख्यमंत्री पद से हटाने का निर्णय ले लिया। उस समय त्रिवेंद्र अपने मुख्यमंत्रित्वकाल के चार साल पूरे होने पर आयोजित किए जाने वाले जश्न की रूपरेखा बना रहे थे। तब शायद स्वयं त्रिवेंद्र की भी समझ में नहीं आया कि उन्हें क्यों मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी से मुक्त किया गया।
सांसद तीरथ बने राज्य के 10 वें मुख्यमंत्री
भाजपा आलाकमान ने सभी को चौंकाते हुए पौड़ी गढ़वाल संसदीय सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे तीरथ सिंह रावत को त्रिवेंद्र के उत्तराधिकारी के रूप में जिम्मेदारी सौंपी। दरअसल, तीरथ मुख्यमंत्री पद की होड़ में नजर ही नहीं आ रहे थे। उत्तराखंड के अलग राज्य बनने पर भाजपा की पहली अंतरिम सरकार में मंत्री रहे तीरथ प्रदेश संगठन की कमान भी संभाल चुके हैं। इसके बावजूद चुनावी साल में भाजपा तीरथ पर दांव खेलने की रणनीति अमल में लाई।
विधायक बनने से पहले ही हो गई विदाई
भाजपा की यह सोच बहुत ज्यादा सटीक नहीं रही। अपनी सादगी वाली छवि के उलट तीरथ शुरुआत में ही अपने कुछ विवादित बयानों के कारण चर्चा में आ गए। इसका असर यह हुआ कि उन्हें चार महीने से पहले ही पद से इस्तीफा देना पड़ा। तीरथ राज्य के पहले ऐसे मुख्यमंत्री बन गए, जिन्हें विधायक बनने का अवसर ही नहीं मिला। बकौल तीरथ, इसी संवैधानिक बाध्यता के कारण उन्हें पद छोड़ना पड़ा। वह फिर से अपनी सांसद की भूमिका निभाने दिल्ली लौट गए।
कौशिक अध्यक्ष, भगत को मिला मंत्री बनने का अवसर
मार्च में सरकार के नेतृत्व में परिवर्तन के साथ ही भाजपा ने संगठन में भी बदलाव किया। बंशीधर भगत के स्थान पर त्रिवेंद्र कैबिनेट के वरिष्ठ सदस्य मदन कौशिक को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया और भगत को अवसर मिला तीरथ मंत्रिमंडल में शामिल होने का। भाजपा ने वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में 70 में से 57 सीटें जीती थीं। माना गया कि अपने इस प्रदर्शन को बरकरार रखने के लिए भाजपा ने सरकार व संगठन में सब कुछ बदल डाला।
कायम रही सरकार में नेतृत्व परिवर्तन की परंपरा
उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद भाजपा अंतरिम विधानसभा के अलावा दूसरी व चौथी निर्वाचित विधानसभा में सत्ता में रही। तीनों विधानसभा में सरकार में नेतृत्व परिवर्तन हुआ। अंतरिम सरकार के दौरान नित्यानंद स्वामी की जगह भगत सिंह कोश्यारी मुख्यमंत्री बनाए गए। दूसरी निर्वाचित विधानसभा के समय भुवन चंद्र खंडूड़ी को हटाकर रमेश पोखरियाल निशंक को कुर्सी सौंपी गई और फिर खंडूड़ी की मुख्यमंत्री पद पर वापसी हुई। तीसरी विधानसभा में कांग्रेस सरकार के दौरान विजय बहुगुणा व हरीश रावत मुख्यमंत्री रहे। चौथी निर्वाचित विधानसभा में त्रिवेंद्र और तीरथ के बाद पुष्कर सिंह धामी मुख्यमंत्री बने। केवल पहली निर्वाचित विधानसभा में कांग्रेस सरकार के दौरान नारायण दत्त तिवारी ने पांच साल का कार्यकाल पूर्ण किया।
कांग्रेस में संगठन व विधायक दल की कमान नए चेहरों को
विधानसभा चुनाव में जाने से पहले कांग्रेस भी इस साल कई बड़े बदलावों से गुजरी। कांग्रेस की वरिष्ठ विधायक व विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष डा इंदिरा हृदयेश के आकस्मिक निधन से न केवल कांग्रेस को बड़ा आघात लगा, पार्टी को अपनी रणनीति भी बदलनी पड़ी। बदली परिस्थितियों में क्षेत्रीय व जातीय समीकरणों में संतुलन बिठाते हुए नेता विधायक दल प्रीतम सिंह को बनाया गया, जबकि प्रदेश अध्यक्ष का दायित्व मिला गणेश गोदियाल को।
विधानसभा चुनाव के लिए हरीश रावत लौटे उत्तराखंड
पूर्व मुख्यमंत्री व कांग्रेस महासचिव हरीश रावत चुनावी साल में राष्ट्रीय राजनीति का मोह छोड़ उत्तराखंड में सक्रिय हो गए। स्वयं को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करवाने की उनकी कोशिश तो परवान नहीं चढ़ी, मगर वह प्रदेश चुनाव अभियान समिति के मुखिया जरूर बना दिए गए। पंजाब प्रभारी रहते हुए उन्होंने वहां कांग्रेस के संकट के समाधान के लिए प्रदेश अध्यक्ष के साथ चार कार्यकारी अध्यक्ष का फार्मूला अपनाया तो उत्तराखंड पहुंचते ही उन्होंने यहां भी इस फार्मूले को अमल में लाने को कांग्रेस हाईकमान को राजी कर लिया।
स्पष्ट बहुमत की सरकार और स्थिरता की उम्मीद
उत्तराखंड में अगले कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव होने हैं। यानी, जल्द तय होगा कि अगले पांच साल कौन सी पार्टी सत्ता में रहेगी। उत्तराखंड युवा राज्य है, इसलिए विकास के लिए आवश्यक है कि यहां विधानसभा चुनाव में जिस भी पार्टी की सरकार बने, स्पष्ट बहुमत हासिल कर बने। राजनीतिक स्थिरता के लिए यह बहुत जरूरी है। साथ ही उम्मीद की जानी चाहिए कि पहली निर्वाचित विधानसभा में कांग्रेस को बहुमत मिलने के बाद जिस तरह नारायण दत्त तिवारी पूरे पांच साल मुख्यमंत्री रहे, राज्य की पांचवीं विधानसभा में इसकी पुनरावृत्ति हो। सरकार किसी भी पार्टी की हो, कमान संभालने वाला अपना कार्यकाल पूरा कर तिवारी के रिकार्ड की बराबरी करे।
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