उत्तराखंड का पहला जनजातीय विद्यालय, जहां होगा गीता का नियमित पाठ; शिक्षा संग संस्कारों की नई पहल
देहरादून के वनवासी गुरुकुल दून संस्कृति स्कूल ने श्रीमद्भगवद् गीता को अपने दैनिक पाठ्यक्रम में शामिल किया है। यह प्रदेश का पहला जनजातीय विद्यालय है, ज ...और पढ़ें

सांकेतिक तस्वीर।
जागरण संवाददाता, देहरादून: राजधानी देहरादून में शिक्षा जगत में एक ऐतिहासिक और दूरगामी संदेश देने वाली पहल देखने को मिली है। प्रदेश का पहला जनजातीय विद्यालय वनवासी गुरुकुल दून संस्कृति स्कूल अब विद्यार्थियों को केवल किताबी ज्ञान ही नहीं, बल्कि जीवन-दृष्टि और मूल्यबोध भी सिखाएगा।
विद्यालय प्रबंधन ने श्रीमद्भगवद गीता को अपने दैनिक व अनिवार्य पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने का निर्णय लिया है।
झाझरा स्थित जनजातीय विद्यालय की यह पहल ऐसे समय में सामने आई है, जब दुनिया भारत की प्राचीन ज्ञान परंपरा की ओर नये सिरे से देख रही है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से बार-बार भारतीय दर्शन और गीता की सार्वकालिक प्रासंगिकता को रेखांकित किया जाता रहा है। उनकी ओर से हाल ही में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को गीता भेंट किए जाने से प्रेरित होकर विद्यालय ने इस निर्णय को मूर्त रूप दिया।
विद्यालय प्रशासन का मानना है कि श्रीमद्भगवद गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि कर्तव्य, कर्म, आत्मविश्वास, नैतिकता और जीवन प्रबंधन की अद्वितीय मार्गदर्शिका है। जनजातीय पृष्ठभूमि से आने वाले विद्यार्थियों के लिए यह पाठ्यक्रम आत्मगौरव, अनुशासन और जीवन दिशा तय करने में सहायक बनेगा।
इस पहल को छात्रों का भी समर्थन मिल रहा है। अरुणाचल प्रदेश निवासी और विद्यालय के हाउस कैप्टेन वांग्लेट वांगसु ने इस अवसर पर प्रदेश के कार्यवाहक/राज्यकालीन मुख्यमंत्री से अपील की कि श्रीमद्भगवद गीता को प्रदेश के सभी विद्यालयों में नियमित रूप से पढ़ाया जाए। ताकि नई पीढ़ी मानसिक रूप से सशक्त, नैतिक रूप से समृद्ध और सांस्कृतिक रूप से जागरूक बन सके।
पूर्व राज्यसभा सदस्य तरुण विजय ने इस निर्णय को केवल एक विद्यालय तक सीमित न मानते हुए इसे राष्ट्रव्यापी आंदोलन का रूप देने का आह्वान किया। उनका कहना है कि आज जब युवा पीढ़ी दिशाहीनता, तनाव और मूल्यों के संकट से जूझ रही है, तब गीता का संदेश उन्हें कर्मयोग, संतुलन और आत्मबल प्रदान कर सकता है।
विशेषज्ञों का भी मानना है कि यह पहल शिक्षा को केवल रोजगार-उन्मुख बनाने की बजाय जीवन-उन्मुख बनाने की दिशा में एक ठोस कदम है। झाझरा का यह जनजातीय विद्यालय अब पूरे प्रदेश और देश के लिए एक उदाहरण बनकर उभरा है, जहां आधुनिक शिक्षा और प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा का सार्थक संगम दिखाई दे रहा है।

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