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India Nepal Border Issue: आजादी से अब तक भारत की सीमा का नक्शा यथावत

भारत के बड़े भू-भाग को अपने विवादित नक्शे में शामिल करने की नेपाल की हरकत से सर्वे ऑफ इंडिया के अधिकारी भी हतप्रभ हैं।

By Sunil NegiEdited By: Published: Wed, 17 Jun 2020 05:00 AM (IST)Updated: Wed, 17 Jun 2020 07:50 AM (IST)
India Nepal Border Issue: आजादी से अब तक भारत की सीमा का नक्शा यथावत
India Nepal Border Issue: आजादी से अब तक भारत की सीमा का नक्शा यथावत

देहरादून, सुमन सेमवाल। भारत के बड़े भू-भाग को अपने विवादित नक्शे में शामिल करने की नेपाल की हरकत से सर्वे ऑफ इंडिया के अधिकारी भी हतप्रभ हैं। यह स्थिति तब है, जब भारत-नेपाल सीमा की स्थिति स्पष्ट करने और पूरे सीमा क्षेत्र में पिलर लगाने को लेकर दोनों देश की बाउंड्री वर्किंग ग्रुप (बीडब्ल्यूजी) की बैठक बेहद सौहाद्रपूर्ण तरीके से हर साल आयोजित की जा रही थी। इस साल अगस्त में यह बैठक नेपाल में आयोजित की जानी थी, मगर फिलहाल इसके दूर-दूर तक आसार नजर नहीं आ रहे।

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भारत के सर्वेयर जनरल लेफ्टिनेंट जनरल गिरीश कुमार ने कहा कि नेपाल के विवादित नक्शे में कालापानी, लिपुलेख व लिम्पियाधुरा के भाग को भी शामिल किया गया है। भारत और नेपाल के बीच हमेशा से सीमा विवाद रहा है, मगर दोनों देश कभी भी पहले से काबिज स्थल से आगे नहीं बढ़े। सर्वे ऑफ इंडिया सीमा क्षेत्र का नक्शा तैयार कर चुका है। हालांकि, नेपाल की ओर से सौहाद्रपूर्ण ढंग से अंतिम मंजूरी न मिल पाने के कारण इस पर अभी विदेश मंत्रालय ने भी हस्ताक्षर नहीं किए हैं। नेपाल के साथ रोटी-बेटी के रिश्ते को देखते हुए केंद्र सरकार हमेशा शांतिप्रिय माहौल में आगे बढ़ती रही। इसके बाद भी सर्वे ऑफ इंडिया के नक्शे से इतर सर्वे ऑफ नेपाल व नेपाल सरकार की कार्रवाई समझ से परे है। नेपाल की हरकत पर आश्चर्य इसलिए भी है, क्योंकि भारत ने आजादी के बाद से अपने नक्शे में इंचभर भी बदलाव नहीं किया है।

सर्वेयर जनरल ले. जनरल गिरीश कुमार ने बताया कि सर्वे ऑफ इंडिया सीमा पर स्थिति स्पष्ट करने के लिए हमेशा नेपाल के साथ खड़ा रहा है। बाउंड्री वर्किंग ग्रुप की बैठक में भी कालापानी और लिपुलेख जैसे हिस्सों को लेकर कभी बात नहीं की जाती। यह मसला कूटनीतिक स्तर पर छोड़ा गया है। सीमा विवाद का आपसी सामंजस्य के आधार पर हल निकालने के लिए ही भारत अपने खर्च पर नदी में डूबे रहने वाले चार हजार से अधिक पिलरों का खर्च उठाने को तैयार हो गया था। क्योंकि, नेपाल ने तकनीक व कमजोर माली हालत का हवाला देकर इससे हाथ खड़े कर दिए थे। हालांकि, भविष्य का सहयोग अब नेपाल के रवैये पर निर्भर करेगा।

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मोदी सरकार ने दोबारा शुरू कराई थी बीडब्ल्यूजी की बैठक

वर्ष 2007 में किन्हीं कारणों से बाउंड्री वर्किंग ग्रुप की बैठक बंद हो गई थी। वर्ष 2014 में मोदी सरकार ने इसे दोबारा शुरू कराया था। तब से यह बैठक क्रमवार हर साल भारत और नेपाल में आयोजित की जाती है। पिछली बैठक देहरादून में हुई थी। इन बैठकों में सीमा के पिलरों को स्थापित करने, 18.2 मीटर चौड़े नो-मैन्स लैंड से अतिक्रमण हटाने व आपसी सामंजस्य बरकरार रखने की पैरवी की जाती है।

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