चिंता और चुनौतियों से पार पाने की उम्मीद
वन्यजीव संरक्षण में अग्रणी भूमिका निभा रहे उत्तराखंड को यहां के वन्यजीव देश-दुनिया में भले ही विशिष्टता प्रदान करते हैं मगर तस्वीर का दूसरा पहलू भी है। वह है वन्यजीवों का निरंतर गहराता आतंक। खासकर गुलदार के खौफ से समूचा उत्तराखंड थर्रा रहा है।
राज्य ब्यूरो, देहरादून: वन्यजीव संरक्षण में अग्रणी भूमिका निभा रहे उत्तराखंड को यहां के वन्यजीव देश-दुनिया में भले ही विशिष्टता प्रदान करते हैं, मगर तस्वीर का दूसरा पहलू भी है। वह है वन्यजीवों का निरंतर गहराता आतंक। खासकर, गुलदार के खौफ से समूचा उत्तराखंड थर्रा रहा है, तो यमुना से लेकर शारदा नदी तक के परिक्षेत्र में हाथियों की धमाचौकड़ी ने नींद उड़ाई हुई है।
पर्वतीय क्षेत्रों में भालू के निरंतर बढ़ते हमलों ने भी जीना दुश्वार किया हुआ है। मनुष्य और वन्यजीवों के बीच छिड़ी इस जंग में दोनों को ही कीमत चुकानी पड़ रही है। आंकड़े इसकी गवाही दे रहे हैं। हालांकि, लंबे इंतजार के बाद अब ऐसा रास्ता निकालने की तरफ बढ़ा जा रहा है, जिससे मनुष्य महफूज रहे और वन्यजीव भी। पहली मर्तबा गुलदारों के व्यवहार में आई आक्रामकता के मद्देनजर इसका अध्ययन शुरू हो गया है, तो उत्पाती हाथियों पर रेडियो कॉलर लगाकर इनकी निगरानी का क्रम शुरू हो गया है। यही नहीं, वन्यजीव जंगल की देहरी पार न करें, इसके लिए वन सीमा पर सौर ऊर्जा बाड़, खाई खुदान, वन्यजीव रोधी दीवार जैसे कई कदम उठाए जा रहे हैं। साथ ही गुलदार प्रभावित इलाकों में विलेज वालेंटरी प्रोक्टेशन फोर्स के गठन की कवायद चल रही। ऐेसे में उम्मीद जगी है कि नए वर्ष में वन्यजीवों के कारण उत्पन्न चिंता और चुनौतियां, दोनों से निजात मिलेगी।
गुलदारों ने की है नींद खराब
वन्यजीवों के हमलों में सबसे अधिक गुलदार के हैं। गुलदार तो राज्यभर में वन क्षेत्रों से लगे आबादी वाले इलाकों में ऐसे घूम रहे, मानो ये पालतू जानवर हों। खौफ का आलम ये है कि कब घर-आंगन और खेत-खलिहानों में मौत रूपी गुलदार सामने आ धमके, कहा नहीं जा सकता। इनके लगातार बढ़ते हमलों को देखते हुए जनसामान्य के बीच से यही बात सामने आ रही कि इनकी संख्या में भारी इजाफा हो गया है। हालांकि, इसका कोई ठोस आधार नहीं है। इसीलिए अब गुलदारों की गणना कराने का निर्णय लिया गया है, जो संभवत: अगले वर्ष की शुरुआत से प्रारंभ होगी। इसके साथ ही गुलदार के व्यवहार में आई आक्रामता के मद्देनजर इन पर रेडियो कॉलर लगाकर अध्ययन प्रारंभ कर दिया गया है। इसके आंकड़ों के आधार पर गुलदार-मानव संघर्ष को थामने के लिए कार्ययोजना के नए वर्ष में आकार लेने की उम्मीद है।
भालू के रूप में उभरी मुसीबत
गुलदारों के खौफ के बीच राज्य में भालू भी जनसामान्य के लिए मुसीबत के तौर पर सामने आए हैं। इनके लगातार बढ़ते हमले इसकी गवाही दे रहे हैं। हालांकि, भालू के हमलों में मौतें कम हुई हों, लेकिन घायलों का आंकड़ा गुलदार से अधिक है। इसी वर्ष के आंकड़े देखें तो भालू के हमलों में तीन व्यक्तियों की जान गई, जबकि घायलों की संख्या 79 है। यही नहीं, अमूमन सर्दियों में शीत निंद्रा में रहने वाले भालू इस मर्तबा सर्दियों में भी लगातार सक्रिय हैं। यह भी एक बड़ी चुनौती के तौर पर उभरी है। हालांकि, इससे निजात पाने के लिए भी वन महकमा अध्ययन शुरू करा रहा है, ताकि ठोस एवं प्रभावी समाधान निकाला सके।
राज्य गठन से अब तक की तस्वीर
वन्यजीवों के हमले
वन्यजीव--------- मृतक--------- घायल
गुलदार--------- 455--------- 1582
हाथी--------- 184--------- 181
भालू--------- 59 --------- 1654
बाघ--------- 46--------- 98
अन्य--------- 30--------- 595
मृत प्रमुख वन्यजीव
गुलदार--------- 1396
हाथी--------- 449
बाघ--------- 155
खतरनाक घोषित वन्यजीव
(वर्ष 2006 से 2020 तक)
वन्यजीव --------- संख्या
गुलदार--------- 324
भालू--------- 12
हाथी--------- 08
लंगूर--------- 03
घुरल--------- 01
सियार--------- 01
बंदर--------- 01
जंगली सूअर--------- 01
आसमान से भी जंगलों पर निगहबानी
वक्त के साथ चलने में ही समझदारी है। यह बात अब उत्तराखंड वन विभाग की समझ में भी आ गई है। सुरक्षा के लिए आधुनिक तकनीकी का प्रयोग करने की दिशा में उसने भी कदम बढ़ाए हैं। इस कड़ी में विश्व प्रसिद्ध कार्बेट व राजाजी टाइगर रिजर्व के साथ ही सभी वन प्रभागों में ड्रोन दिए गए हैं। ड्रोन के जरिये उन पर लगे कैमरों से जंगल के चप्पे-चप्पे की निगरानी हो सकेगी। इस सिलसिले में बाकायदा ड्रोन फोर्स का गठन किया जा चुका है। अब ड्रोन के संचालन के लिए प्रशिक्षण पूरा होने को है। यानी नए वर्ष में ड्रोन से जंगलों के उन क्षेत्रों की भी निगहबानी आसानी से हो सकेगी, जहां वनकर्मियों का पहुंचना मुश्किल होता है। जाहिर है कि इससे जंगलों की सुरक्षा व्यवस्था और सशक्त होगी।
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उच्च हिमालयी क्षेत्रों में सतर्कता
राज्य के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में स्थित नंदादेवी बायोस्फीयर रिजर्व, गंगोत्री नेशनल पार्क, फूलों की घाटी, गोविंद वन्यजीव विहार, अस्कोट अभयारण्य समेत दूसरे इलाकों में तस्करों की सक्रियता ने भी चिंता बढ़ाई है। हालांकि, इस मर्तबा अच्छी बात ये रही कि इन क्षेत्रों में निरंतर गश्त हुई तो तस्कर भी पकड़ में आए। जाहिर है कि दुरूह परिस्थितियों वाले उच्च हिमालयी क्षेत्र में वनकर्मियों की सक्रियता बढ़ाने के साथ ही खुफिया तंत्र को सशक्त करने की जरूरत है। इस दिशा में कार्ययोजना तैयार करने पर मंथन शुरू हो गया है, जो नए वर्ष में आकार लेगी।
सामने आएगा हिम तेंदुओं का राज
उच्च हिमालयी क्षेत्रों की शान कहे जाने वाले हिम तेंदुओं की राज्य में वास्तविक संख्या है कितनी, इस राज से नए वर्ष में पर्दा उठ जाएगा। असल में गंगोत्री नेशनल पार्क, गोविंद वन्यजीव विहार और अस्कोट अभयारण्य में चल रही सिक्योर हिमालय परियोजना के तहत हिम तेंदुओं की गणना कराई जा रही है। इसके तहत पहले चरण का सर्वे हो चुका है और अगले चरण में आगामी फरवरी में दोबारा सर्वे और फिर हिम तेंदुआ संभावित स्थलों में कैमरा ट्रैप लगाए जाएंगे। इसके बाद आंकड़ों का विश्लेषण किया जाएगा और नवंबर तक हिम तेंदुओं के आकलन से संबंधित आंकड़े जारी किए जाएंगे।
जंगलों की आग पर वर्षभर अलर्ट
71.05 प्रतिशत वन भूभाग वाले उत्तराखंड के जंगलों में इस वर्ष सर्दियों में लगी आग ने हर किसी को सोचने पर विवश कर दिया। हालांकि, विभाग की ओर से तर्क दिया गया कि सितंबर-अक्टूबर में बारिश न होने के कारण वन क्षेत्रों से नमी गायब होने से आग की घटनाएं हुई। अलबत्ता, सवाल ये उठता है कि आखिर प्रदेश के लगभग सभी जिलों में अचानक ऐसा कैसे हो गया। खैर, जंगलों के धधकने का क्रम तेज हुआ तो इस पर काबू पाने के लिए महकमे को ग्रामीणों का भी भरपूर साथ मिला। बाद में बारिश, बर्फबारी होने पर आग पर काबू पाया जा सका, लेकिन सर्दियों की आग ने वन महकमे को यह सबक दे दिया कि यह कभी भी लग सकती है और उसे न सिर्फ फायर सीजन बल्कि वर्षभर सतर्क रहना होगा। यह सीख सरकार की समझ में भी आई और अब फायर सीजन नहीं, बल्कि वनों को आग से बचाने के लिए वर्षभर अलर्ट मोड में रहने के निर्देश जारी किए गए हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले दिनों में जंगल न झुलसें, इसके लिए वन महकमा नई रणनीति के साथ मैदान में उतरेगा।
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