अब कपड़े धोने के झंझट से मिलेगी निजात, वैज्ञानिक कर रहे इस पर शोध
राजा रमन्ना सेंटर फॉर एडवांस टेक्नोलॉजी इंदौर के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. केएस बर्त्वाल ने बताया कि आने वाले 10 साल में लोगों को कपड़े धोने की झंझट से निजात मिलने जाएगी।
देहरादून, [जेएनएन]: आने वाले समय में लोगों को कपड़े धोने की झंझट से निजात मिलने की संभावना प्रबल हुई है। हालांकि, इसमें पांच से दस साल तक का वक्त लग सकता है। यह कपड़े सिलिकॉन ऑक्साइड के फाइबर से तैयार होंगे, जिन पर अंतिम चरण का शोध कार्य चल रहा है।
पौड़ी जिले के श्रीनगर गढ़वाल में स्थित गढ़वाल केंद्रीय विवि श्रीनगर के भौतिक विज्ञान विभाग की ओर से एरोसोल और वायु की गुणवत्ता विषय पर आयोजित कार्यशाला में पहुंचे राजा रमन्ना सेंटर फॉर एडवांस टेक्नोलॉजी इंदौर के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. केएस बर्त्वाल ने यह जानकारी दी। बताया कि बाजार में 10 साल के भीतर ऐसे कपड़े आने की संभावना है। यह कपड़े आम कपड़ों की तुलना में थोड़ा भारी खादी के कपड़ों की तरह होंगे। इन पर धूल और मैल का भी प्रभाव नहीं होगा और कम से कम पांच साल तक बिना धोये इन्हें पहना जा सकेगा।
'दैनिक जागरण' से बातचीत में डॉ. बर्त्वाल ने बताया कि आइआइटी (भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान) चेन्नई और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल मुंबई में चल रहे शोध कार्यों के आधार पर फिलहाल सिलिकॉन ऑक्साइड के एक से दो सेमी लंबाई तक के फाइबर तैयार हो रहे हैं, जबकि कपड़ों के निर्माण के लिए कम से कम 30 सेमी लंबे फाइबर की जरूरत होती है।
इससे आसानी से कपड़ा बन जाएगा। बताया कि अंतरिक्ष यात्री जिन कपड़ों को पहनते हैं, वह नैनो कॉर्बन फाइबर के बने होते हैं। लेकिन, उनकी लागत बहुत अधिक होती है, जो कि सिलिकॉन ऑक्साइड की तुलना में दस गुना से भी अधिक है।
बताया कि शोध कार्यों से अब सिलिकॉन नैनो कॉर्बन फाइबर की जगह सिलिकॉन आक्साइड फाइबर के उपयोग की संभावना बढ़ गई है। यदि इस शोध के परिणाम आशानुकूल रहे तो तय मानिए कि 10 साल के भीतर देश-दुनिया में ऐसे कपड़े बनने लगेंगे जिन पर धूल और मैल का कोई असर नहीं होता। इन्हें सिर्फ झाड़कर पांच साल से भी अधिक समय तक पहना जा सकेगा।
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