उत्तराखंड में आईएफएस ने अपने विभाग से मांगी RTI, लोक सूचना अधिकारी ने 'ना' में दिया जवाब
उत्तराखंड में एक आईएफएस अधिकारी ने अपने विभाग से आरटीआई के तहत जानकारी मांगी, जिसे लोक सूचना अधिकारी ने अस्वीकार कर दिया। इस घटना ने सूचना के अधिकार के कार्यान्वयन और पारदर्शिता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह मामला दर्शाता है कि सरकारी विभागों में सूचना तक पहुंच कितनी मुश्किल हो सकती है।

आईएफएस अधिकारी राहुल ने खुद पर कार्रवाई संबंधी सूचना मांगी, लोक सूचना अधिकारी ने किया इन्कार। प्रतीकात्मक
जागरण संवाददाता, देहरादून। एक आईएफएस अधिकारी को भी आरटीआइ में जानकारी मांगने के लिए एड़ियां घिसनी पड़ रही हैं। वह भी तब, उन्होंने जीवन और स्वतंत्रता का हवाला देते हुए 48 घंटे के भीतर सूचना की मांग की थी। आईएफएस अफसर को सूचना देने की जगह लोक सूचना अधिकारी ने 'ना' में टका सा जवाब दे दिया कि जांच गतिमान है। सूचना आयोग पहुंचे इस प्रकरण में राज्य सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने लोक सूचना अधिकारी/अनु सचिव, वन अनुभाग-1 की दलीलों को खारिज करते हुए तल्ख टिप्पणी भी कर डाली।
यह मामला वर्ष 2004 बैच के भारतीय वन सेवा (आईएफएस) के अधिकारी राहुल से जुड़ा है। उन्होंने दो अलग-अलग आवेदन दायर कर शासन से आरटीआई में जानकारी मांगी थी कि क्या सीबीआई ने उनके संबंध में जांच के लिए कोई अनुमति राज्य सरकार से प्राप्त की है। यदि हां, तो उसकी प्रति देने का कष्ट करें। इसके आलावा दूसरे आवेदन में उन्होंने कालागढ़ वन प्रभाग के पाखरो टाइगर सफारी के संदर्भ में जनवरी 2022 से अब तक की गई अनुशासनिक कार्रवाई की जानकारी मांगी थी।
जिसके जवाब में शासन के लोक सूचना अधिकारी ने जवाब दिया कि प्रकरण न्यायालय में लंबित है और सीबीआई जांच भी गतिमान है। ऐसे में मांगी गई सूचना नहीं दी जा सकती। थक हारकर आईएफएस अधिकारी राहुल ने सूचना आयोग का दरवाजा खटखटाया। सीबीआई के अनुमति प्राप्त करने संबंधी बिंदु की जानकारी उन्हें मिल गई, लेकिन कार्रवाई को लेकर लोक सूचना अधिकारी का रवैया वही रहा। सूचना आयोग की सुनवाई के दौरान शासन के लोक सूचना अधिकारी राजीव मिश्र ने केंद्रीय सूचना आयोग और सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न आदेशों का हवाला देते हुए कहा कि सूचना नहीं दी जा सकती है और आयोग से अपील के निस्तारण का आग्रह किया। राज्य सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने लोक सूचना अधिकारी को आदेश दिया था प्रकरण से संबंधित मूल पत्रावली को प्रस्तुत किया जाए।
फिर भी पत्रावली प्रस्तुत नहीं की गई। सुनवाई के दौरान जरूर यह बात समाने आई कि आईएफएस राहुल को कार्बेट सफारी के प्रकरण में वर्ष 2022 में चार्जशीट दी गई थी। इसके बाद उसी प्रकरण में 17 अप्रैल 2025 को फिर से चार्जशीट दी गई। हालांकि, अपीलार्थी ने वर्ष 2022 में दी गई चार्जशीट पर दिनांक 17 अप्रैल 2025 तक की गई कार्रवाई की सूचना मांगी थी। आयोग ने पाया कि अपीलार्थी को वर्ष 2022 में दी गई चार्जशीट पर कार्रवाई की सूचना चाहिए। उन्हें वर्ष 2025 में दी गई चार्जशीट से संबंधित सूचना नहीं चाहिए। ऐसे में स्पष्ट है कि लोक सूचना अधिकारी की सूचना देने की मंशा नहीं है। वह अप्रासंगिक सूचना का अधिकार अधिनियम की धाराओं एवं अन्य आदेशों का उल्लेख करते हुए गैर जरूरी ढंग से सूचना की राह में बाधा पहुंचा रहे हैं।
राज्य सूचना आयुक्त भट्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि यहां सूचना कोई तृतीय पक्ष नहीं, बल्कि स्वयं वह अधिकारी मांग रहा है, जो कार्रवाई के दायरे में है। उन्होंने कहा कि सूचना का अधिकार अधिनियम का प्राविधानों का प्रयोग सूचना में बाधा उत्पन्न करने में नहीं, बल्कि इस अधिनियम के प्रति सदमंशा रखते हुए किया जाए। लिहाजा, लोक सूचना अधिकारी को एक सप्ताह के भीतर सूचना देने का आदेश जारी किया गया।

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