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    उत्तराखंड कैडर के IFS के मामले की सुनवाई से एक और जज ने खुद को किया अलग, अब तक 16 जजों ने छोड़ा ये केस

    Updated: Sat, 11 Oct 2025 05:05 PM (IST)

    उत्तराखंड कैडर के IFS अधिकारी संजीव चतुर्वेदी के मामले से हाई कोर्ट के एक और जज ने खुद को अलग कर लिया है। अब तक कुल 16 जज इस मामले की सुनवाई से इनकार कर चुके हैं। संजीव ने कैट सदस्यों के खिलाफ अवमानना याचिका दायर की थी। हाल ही में कई जजों ने अलग-अलग कारणों से सुनवाई से खुद को अलग किया है। संजीव चतुर्वेदी ने एम्स में रहते हुए भ्रष्टाचार के कई मामले उजागर किए थे।

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    उत्तराखंड कैडर के आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी. File Photo

    जागरण संवाददाता, नैनीताल। उत्तराखंड कैडर के आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी के मामले की सुनवाई से हाई कोर्ट के एक और न्यायाधीश ने खुद को अलग कर लिया है।

    वरिष्ठ न्यायाधीश, जस्टिस आलोक वर्मा ने चतुर्वेदी की ओर से दायर अवमानना याचिका की सुनवाई से स्वयं को अलग कर लिया है। संजीव ने केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट) के सदस्यों के विरुद्ध अवमानना याचिका दायर की थी।

    अब तक सुप्रीम कोर्ट के दो सहित 16 न्यायाधीश चतुर्वेदी के मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर चुके हैं, इसमें हाई कोर्ट के चार न्यायाधीश, एक कैट के अध्यक्ष, आठ कैट सदस्य व दो निचली अदालतों के न्यायाधीश शामिल हैं। हाल ही में हाई कोर्ट के एक और न्यायाधीश ने इस मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था।

    फरवरी 2025 में केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट) के दो सदस्य हरविंदर ओबेराय और बी.आनंद , अप्रैल 2025 में नैनीताल एसीजेएम तथा अक्टूबर में हाई कोर्ट के दो न्यायाधीशों ने भी चतुर्वेदी के मामलों की सुनवाई से स्वयं को अलग कर लिया गया है।

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    मानहानि मामले की सुनवाई

    दरअसल अप्रैल 2025 में अतिरिक्त सीजेएम नेहा कुशवाहा ने संजीव चतुर्वेदी की ओर से केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण न्यायमूर्ति के विरुद्ध दायर मानहानि मामले की सुनवाई से स्वयं को अलग कर लिया था। जिसका कारण कैट के ही एक अन्य न्यायाधीश से अपने पुराने पारिवारिक संबंधों को बताया था। संजीव का कहना था कि इस मामले में हाई कोर्ट ने स्थगनादेश पारित किया, इसके बाद भी कैट की ओर से मामले में सुनवाई जारी रखी।

    फरवरी 2025 में कैट की खंडपीठ ने स्वयं को सुन सुनवाई से अलग कर लिया था। पीठ उस समय चतुर्वेदी के वार्षिक मूल्यांकन रिपोर्ट को तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के खराब करने से संबंधित मामले की सुनवाई कर रही थी, जब संजीव चतुर्वेदी ने एम्स दिल्ली में मुख्य सतर्कता अधिकारी रहते हुए भ्रष्टाचार के कई मामलों को उजागर किया था।

    वर्ष 2018 में हाई कोर्ट ने चतुर्वेदी के वार्षिक मूल्यांकन रिपोर्ट को खराब किये जाने से संबंधित मामले में निर्णय दिया था कि मामला कैट की नैनीताल बेंच में ही सुना जाए ना कि दिल्ली बेंच में। हाई कोर्ट इन मामले में केंद्र सरकार पर 25 हजार का जुर्माना भी लगाया था। इस आदेश को सर्वोच्च न्यायालय ने बरकरार रखते हुए जुर्माने की राशि को बढ़ाकर 50 हजार कर दिया था।

    वर्ष 2021 में हाई कोर्ट ने चतुर्वेदी की ओर से केंद्रीय प्रतिनियुक्ति में निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों की नियुक्ति के मामले में उजागर गड़बड़ी को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। मार्च 2023 में सर्वोच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने इस मामले को एक बड़ी पीठ के पास भेज दिया था।

    नवंबर 2013 में सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन जस्टिस रंजन गोगोई ने हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और राज्य के अन्य वरिष्ठ राजनीतिज्ञों तथा नौकरशाहों की भ्रष्टाचार के विभिन्न मामलों में भूमिका की सीबीआई जांच करने व संजीव के उत्पीड़न से संबंधित से जबकि एक अन्य न्यायाधीश यूयू ललित ने भी इस मामले की सुनवाई से स्वयं को अलग कर लिया था।

    • अप्रैल 2018 में शिमला की एक अदालत के न्यायाधीश ने हिमाचल प्रदेश के तत्कालीन मुख्य सचिव विनीत चौधरी की ओर से संजीव चतुर्वेदी के विरुद्ध मानहानि मामले से खुद को अलग कर लिया था।
    • मार्च 2019 में कैट दिल्ली के तत्कालीन अध्यक्ष, जस्टिस एनएन रेड्डी ने संजीव चतुर्वेदी के विभिन्न स्थानांतरण याचिकाओं से संबंधित मामलों की सुनवाई से स्वयं को अलग कर लिया था।
    • फरवरी 2021 में कैट दिल्ली के एक अन्य न्यायाधीश आरएन सिंह ने भी संजीव की केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से संबंधित मामले की सुनवाई से स्वयं को अलग कर लिया था।

    यह था मामला

    नवंबर 2023 में कैट के न्यायाधीश मनीष गर्ग के विरुद्ध एसीजेएएम कोर्ट में आपराधिक मानहानि का वाद दायर किया। संजीव का आरोप था कि आरोप लगाया कि कैबिनेट मामलों की नियुक्ति समिति से इम्पैनलमेंट से संबंधित दस्तावेज मंगवाने के मामले में सुनवाई के दौरान अभद्र भाषा का प्रयोग किया। 17 अक्टूबर 2024 को आपराधिक मानहानि के मुकदमे का स्वत: संज्ञान लेते हुए नैनीताल पीठ ने आपराधिक अवमानना नोटिस दिया। इसके बाद 19 फरवरी 2025 को कैट के दो जजों हरविंदर ओबेराय व बी आनंद ने स्वत: संज्ञान लेकर शुरू किए गए प्रकरण से खुद को अलग कर लिया।यह मामला हाई कोर्ट पहुंचा तो कोर्ट ने संजीव की याचिका पर सुनवाई करते हुए उनके विरुद्ध कैट की अवमानना के मामले में स्थगनादेश पारित किया। संजीव का आरोप है कि हाई कोर्ट के स्टे के बाद कैट की ओर से ना केवल मामले में सुनवाई जारी रखी बल्कि एक वरिष्ठ अधिवक्ता को न्याय मित्र नियुक्त कर दिया। इसे संजीव ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती दी थी।