Uttarkashi Disaster: हिमालयी ग्लेशियरों का अध्ययन जरूरी, अनदेखी पड़ेगी भारी
जियोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया के पूर्व निदेशक ने हिमालय के ग्लेशियरों का अध्ययन करने और पारिस्थितिकी तंत्र को बचाने की बात कही है। उन्होंने धराली केदारनाथ और रैणी जैसी आपदाओं से बचने के लिए समय पर कदम उठाने की चेतावनी दी है। उनका कहना है कि ग्लेशियरों की निगरानी और वैज्ञानिक अध्ययन बहुत ज़रूरी है ताकि भविष्य में होने वाली आपदाओं को कम किया जा सके।

अशोक केडियाल, जागरण, देहरादून। हिमालय के ग्लेशियरों का आवश्यक अध्ययन और पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण, राज्य के जनमानस और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक है। साथ ही प्रकृति विज्ञान (नेचर साइंस) को समझना और उस पर अमल करने से हम ऐसी प्राकृतिक आपदाओं को पूरी तरह रोक तो नहीं सकते, लेकिन कम करने में कामयाब हो सकते हैं।
जियोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया के पूर्व निदेशक एनके अग्रवाल ने चेताया कि यदि हिमालयी ग्लेशियरों का समुचित और समयबद्ध अध्ययन नहीं किया गया, तो धराली, केदारनाथ और रैणी जैसी विनाशकारी प्राकृतिक आपदाओं से बच पाना मुश्किल होगा।
उन्होंने बताया कि विगत 5 अगस्त को उत्तरकाशी के धराली और हर्षिल, 15 जून 2013 की केदारनाथ एवं सात फरवरी, 2021 को जोशीमठ से आगे रैणी गांव में आपदा में ग्लेशियर के टूटने के कारण धौलीगंगा नदी में बाढ़ आ गई थी। इसमें बड़ी संख्या में कामगार बह गए थे।
तीन बड़ी आपदाएं
उत्तराखंड में तीन ऐसी बड़ी आपदाएं हैं, जो उत्तराखंड में 21वीं सदी की प्रमुख प्राकृतिक त्रासदियां रही हैं। इन तीनों आपदाओं में ग्लेशियर, ग्लेशियर के पिघलने से बनने वाली झील और अत्यंत भारी वर्षा के बाद बादल फटने जैसी प्राकृतिक घटनाएं जुड़ी रही हैं। रैणी और केदारनाथ दोनों आपदाओं के विज्ञानी अध्ययन के बाद जो भी निष्कर्ष निकला हो, अब जरूरी है कि उन खामियों को दूर करने की राह पर चला जाए।
अब धराली आपदा के बाद विज्ञानी चाहे बादल फटने को कारण मानें या ऊपर पहाड़ी में बनी झील के टूटने को, उस पर भी विस्तृत अध्ययन होना चाहिए। साथ ही गंगोत्री हिमालयी क्षेत्र में अब तक हुए भू-विज्ञान संबंधी सर्वे का पुनः अध्ययन करना होगा। साथ में चिह्नित जोखिम के न्यूनीकरण पर कार्य भी करना होगा। अभी हम ऐसी प्राकृतिक आपदाओं को कम करने में कामयाब हो सकते हैं।
अग्रवाल के अनुसार, इन घटनाओं से यह स्पष्ट है कि ग्लेशियरों की निरंतर निगरानी और वैज्ञानिक अध्ययन बेहद जरूरी है। समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो भविष्य में विकास की आंधी में हिमालयी क्षेत्रों में ऐसी आपदाओं की आवृत्ति और तीव्रता दोनों बढ़ सकती हैं।
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