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डेंगू से बचाव को घर-घर जाएगा स्वास्थ्य महकमा, घबराएं नहीं कराएं उपचार Dehradun News

उत्तराखंड में डेंगू से बचाव के लिए स्वास्थ्य विभाग की टीम घर घर जाएगी। वहीं इससे मरीज को घबराने की बजाय इलाज कराना चाहिए। जरा सी लापरवाही जान पर भारी पड़ सकती है।

By BhanuEdited By: Published: Wed, 24 Jul 2019 09:27 AM (IST)Updated: Wed, 24 Jul 2019 09:27 AM (IST)
डेंगू से बचाव को घर-घर जाएगा स्वास्थ्य महकमा, घबराएं नहीं कराएं उपचार Dehradun News
डेंगू से बचाव को घर-घर जाएगा स्वास्थ्य महकमा, घबराएं नहीं कराएं उपचार Dehradun News

देहरादून, जेएनएन। डेंगू को लेकर उत्तराखंड में स्वास्थ्य महकमे ने भी कमर कस ली है। वहीं लोग डेंगू को लेकर अक्सर घबरा जाते हैं। कई बार अस्पतालों में भी इस कारण भीड़ बढ़ने लगती है कि लोग सामान्य वायरल को भी डेंगू समझ लेते हैं। यह भी सामान्य वायरल जैसा ही होता है। कुछ दिन उपचार और सावधानी बरतने पर यह बिल्कुल ठीक हो जाता है। 

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गांधी नेत्र चिकित्सालय के वरिष्ठ फिजीशियन डॉ. प्रवीण पंवार के मुताबिक  डेंगू को लेकर कई तरह के भ्रम भी हैं, जिनसे बचने की जरूरत है। उन्होंने  बताया कि प्लेटलेट्स कम होने को डेंगू से जोड़कर देखा जाना गलत है। सामान्य बुखार में भी प्लेटलेट्स की संख्या कम होना आम बात है। 

प्रेग्नेंसी की दवाएं, पाचन तंत्र में खराबी या अन्य बीमारी में भी ये कम हो जाते हैं।  कैंसर या दिल की बीमारी में ली जाने वाली दवाइयां भी ब्लड प्लेटलेट्स कम होने का कारण बनती हैं।

उन्होंने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रोटोकॉल के अनुसार दस हज़ार प्लेटलेट्स से कम होने पर ही प्लेटलेट्स चढ़ाई जानी चाहिए और अधिकांश अच्छे चिकित्सक भी यही करते हैं। मेडिकल साइंस के अनुसार मरीज को किसी भी ब्लड ग्रुप के प्लेटलेट्स चढ़ाए जा सकते हैं। लेकिन, अगर ब्लड का सेपरेशन अधूरा रहा है और रक्त की मात्रा मिली रह गई है तो वह रिएक्शन कर सकता है। आवश्यक है कि पूरी जांच के बाद ही प्लेटलेट्स दिए जाएं। 

उन्होंने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की गाइडलाइन के अनुसार रैपिड कार्ड से होने वाली डेंगू की जांच मान्य नहीं है। सिर्फ एलाइजा टेस्ट से होने वाली जांच को ही मान्य माना गया है। इसी जांच से पता चलता है कि मरीज डेंगू पॉजिटिव है या नहीं। 

इस बात का रखें ध्यान 

-डेंगू के दौरान इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि मरीज़ को खुद से किसी भी दवा का सेवन नहीं करना चाहिए। ऐसे में पैरासिटामॉल का सेवन किया जा सकता है, दूसरी कोई भी दवा हानिकारक साबित हो सकती है। 

-पानी की कमी नुकसानदायक हो सकती है। इसलिए मरीज को समय-समय पर पानी पिलाते रहें। इसके अलावा छाछ, नींबू पानी और नारियल पानी भी फायदेमंद होता है। एंटी ऑक्सीडेंट के तत्वों से भरपूर कीवी, किशमिश आदि ले सकते हैं। 

-डेंगू स्वयं की रोगप्रतिरोधक क्षमता से ठीक होता है। डॉक्टर का तो एक ही काम होता है कि पांच से दस दिन तक डेंगू के मरीज की स्थिति को स्थिर रखना और उसमें पानी की आपूर्ति को बनाए रखना। बुखार को कम करने के लिए एस्पिरिन, ब्रूफेन जैसी दवाएं न लेकर पेरासिटामोल लेना चाहिये। 

'एडीज' के कहर से पार पाने को घर-घर जाएगी टीम

डेंगू डंक के आगे स्वास्थ्य महकमा लाचार दिख रहा है। इस बीमारी की रोकथाम व बचाव के लिए कई स्तर पर प्रयास करने के बाद भी डेंगू की बीमारी फैलाने वाले मच्छर की सक्रियता विभागीय तैयारियों पर भारी पड़ रही है। ऐसे में स्वास्थ्य विभाग ने अब घर-घर जाकर डेंगू के बढ़ते कहर पर लगाम कसने की योजना बनाई है। 

खास बात यह कि स्वास्थ्य विभाग इस अभियान में आशा कार्यकर्ताओं व स्वास्थ्य पर्यवेक्षकों के अलावा स्थानीय जनप्रतिनिधियों व स्थानीय पार्षदों को भी शामिल करेगा। इन सभी के सहयोग से लोगों को डेंगू के लक्षण व इसकी रोकथाम की जानकारी दी जाएगी। स्वास्थ्य विभाग के पूर्व निदेशक डॉ. एलएम उप्रेती व जिला वीबीडी अधिकारी सुभाष जोशी की अगुआई में यह अभियान चलाया जाएगा। 

मानसून की दस्तक के बाद प्रदेश में डेगू की बीमारी ने भी पांव पसारे हैं। हालांकि फिलहाल मैदानी क्षेत्रों में डेंगू की बीमारी फैलाने वाले मच्छर एडीज की सक्रियता ज्यादा दिख रही है। इनमें भी राजधानी देहरादून अधिक प्रभावित है। यहां पर अब तक 17 मरीजों में डेगू की पुष्टि हो चुकी है। रायपुर क्षेत्र से डेंगू के सबसे ज्यादा मरीज सामने आए हैं। 

वहीं, अन्य जनपदों से भी चार मरीजों में अब तक डेगू की पुष्टि हो चुकी है। डेंगू की बीमारी की रोकथाम व बचाव के लिए स्वास्थ्य विभाग की टीम संबंधित क्षेत्रों का दौरा कर लोगों को जागरूक कर रही है। वहीं, नगर निगम द्वारा भी फॉगिंग की जा रही है। स्कूलों में भी छात्र-छात्राओं को पंफ्लेट वितरित कर जागरूक किया जा रहा है। 

मरीजों के उपचार के लिए पहले से ही सरकारी व प्राइवेट अस्पतालों को अलर्ट पर रखा है। स्वास्थ्य विभाग ने मरीजों के इलाज के लिए अस्पतालों में अलग वार्ड बनाने के निर्देश दिए हुए हैं। इसी क्रम में दून अस्पताल में भी डेंगू के मरीजों के उपचार के लिए आठ बेड का अलग वार्ड बनाया गया है। 

बावजूद इन सबके डेंगू के मच्छर की सक्रियता लगातार बढ़ती जा रही है। हर अंतराल बाद किसी न किसी क्षेत्र से डेंगू के नए मरीज सामने आ रहे हैं। ऐसे में स्वास्थ्य विभाग ने अब घर-घर जाकर डेंगू के डंक से पार पाने की योजना बनाई है। विभागीय अधिकारियों का कहना है कि चरणबद्ध ढंग से इस अभियान को चलाया जाएगा। ताकि लोगों को डेंगू, मलेरिया व अन्य संक्रामक बीमारियों से बचाव की जानकारी दी जा सके। 

लोगों को बताया जाएगा कि अपने आसपास स्वच्छता बनाए रखें और पानी एकत्र नहीं होने दें। वहीं एडीज मच्छर के सोर्स की पहचान कर कीटनाशक दवा का छिड़काव भी किया जाएगा। अभियान के दौरान संदिग्ध मरीजों की भी पहचान की जाएगी। बहरहाल, स्वास्थ्य महकमे का यह प्लान डेंगू के डंक से पार पाने में कितना कारगर साबित होता है, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। 

डेंगू का स्ट्रेन पड़ा कमजोर 

डेंगू की बीमारी फैलाने वाले मच्छर की बढ़ती सक्रियता से स्वास्थ्य विभाग चिंतित जरूर है, पर थोड़ी राहत भी महसूस कर रहा है। क्योंकि इस बार डेंगू का स्ट्रेन कमजोर पड़ा है। अब तक जितने डेंगू पीड़ित मरीज मिले हैं उनमें से तकरीबन 60 फीसदी अस्पतालों में भर्ती नहीं हुए। सिर्फ दवा लेने से ही मरीजों के स्वास्थ्य में सुधार हुआ है। विभागीय आंकड़े बताते हैं कि देहरादून में अब तक डेगू के जो 17 मामले आए हैं उनमें से दस मरीज ओपीडी वाले हैं। जिन्हें भर्ती करने की नौबत नहीं आई। 

नींद से नहीं जाग रहा शिक्षा विभाग 

डेंगू के बढ़ते मामलों के बीच भी शिक्षा विभाग की नींद नहीं टूट रही है। शहर के तमाम स्कूलों में बच्चे अभी भी हाफ पैंट शर्ट में ही आ रहे हैं। डेंगू का मच्छर दिन में काटता है और साफ पानी में पनपता है। ऐसे में आधी आस्तीन के कपड़ों में बच्चे बीमारी की जद में हैं। पर विभाग ने अभी तक भी स्कूलों को इस बाबत निर्देश जारी नहीं किए हैं। सीबीएसई ने जरूर निर्देश जारी किए पर पालन इसका भी नहीं हो रहा है।

जल संस्थान की टीम ने खुड़बुड़ा से लिए सैंपल

शहर के खुड़बुड़ा क्षेत्र में डायरिया से ग्रसित 16 मरीज सामने आने के बाद स्वास्थ्य विभाग में हड़कंप मचा हुआ है। एक तरफ जहां महकमा डायरिया नियंत्रण पखवाड़ा मना रहा है, वहीं मरीजों की यह संख्या अधिकारियों के माथे पर बल डाल रही है। स्वास्थ्य विभाग और जल संस्थान की टीम ने क्षेत्र का दौरा किया। इस दौरान जल संस्थान की टीम ने पानी के सैंपल भी भरे।

जल संस्थान के अधिशासी अभियंता दक्षिण खंड मनीष सेमवाल ने बताया कि क्षेत्र में पानी में क्लोरीन की सही मात्रा पाई गई है। ऐसे में पानी दूषित नहीं पाया गया है। हालांकि टीम ने 3 सैंपल भर कर पानी की जांच के लिए लैब को भेज दिया है। इसकी रिपोर्ट जल्द आने की उम्मीद है। इसके अलावा क्षेत्र में सीवर लाइन की भी सफाई की गई है। 

बता दें, खुड़बुड़ा क्षेत्र की स्वास्थ्य पर्यवेक्षक ने बीती 17 जुलाई को सूचना दी थी कि क्षेत्र में चार लोगों में डायरिया के लक्षण संज्ञान में आये हैं। इस पर अपर मुख्य चिकित्साधिकारी व फार्मासिस्ट को क्षेत्र में भेजा गया। विभागीय टीम को क्षेत्र के लोगों ने बताया कि दो मरीजों को उनके परिजन उपचार के लिए अस्पताल ले गए है। वहीं विभागीय टीम ने शिवाजी मार्ग व शिवाजी मौहल्ला में लोगों का स्वास्थ्य परीक्षण कर 14 मरीजों को डायरिया से ग्रसित पाया था। इसके बाद स्वास्थ्य विभाग और जल संस्थान की टीम ने क्षेत्र का दौरा किया। 

स्वच्छता का रखें ख्याल 

मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. एसके गुप्ता ने बताया कि डायरिया से बचाव के लिए स्वच्छता का ख्याल रखना बेहद जरूरी है। इस मौसम में तैलीय व मसालेदार भोजन से बचना चाहिए। ताजा और ढका हुआ भोजन करने की जरूरत है। खासतौर से पीने के पानी पर ध्यान देना चाहिए। दूषित जल व भोजन की वजह से बीमार पड़ने का खतरा बढ़ जाता है। अधिक से अधिक जल का भी सेवन जरूरी है। 

अनदेखी हो सकती है जानलेवा 

प्रेमनगर अस्पताल के वरिष्ठ फिजीशियन डॉ. मुकेश सुंद्रियाल के अनुसार डायरिया के मरीजों को बार-बार दस्त होने की वजह से शरीर में पानी की कमी हो जाती है। साथ ही दस्त के  साथ खनिज लवण बाहर निकल जाने से शरीर में पोषण की भी अचानक से कमी हो जाती है। पानी की कमी से डीहाइड्रेशन हो जाता है। इस स्थिति को तुरंत न रोका जाए, तो जानलेवा हो सकती है। खासतौर से बच्चों के डायरिया के चपेट में आने पर ज्यादा देखभाल करने की जरूरत है। 

दून अस्पताल के दंत रोग विभाग में मरीजों का हंगामा

दून मेडिकल कॉलेज को अस्तित्व में आए करीब चार साल हो गए हैं, पर कॉलेज प्रशासन बूढ़ी मशीनों से अभी तक भी पार नहीं पा सका है। स्थिति ये कि कई मशीनें अब भी खराब पड़ी हैं। सीटी स्कैन पांच माह से ठप हैं, तो निक्कू वार्ड के वेंटिलेटर तीन साल बाद भी दुरुस्त नहीं हो पाए हैं। यही नहीं जबड़े के एक्स-रे करने वाली ओपीजी मशीन भी कई सालों से खराब है। जिसे लेकर मरीज व तीमारदारों ने अस्पताल में हंगामा किया। 

दरअसल, दंत रोग विभाग में ऐसे दर्जनों मरीज रोजाना आते हैं, जिनके एक्स-रे डॉक्टर लिखते हैं। यहां 100 रुपये में होने वाली जांच बाहर 600-700 रुपये की होती हैं। मंगलवार को अस्पताल आए रिहानुद्दीन, सुभाष, उर्मिला, अनवरी आदि का कहना था कि जब अस्पताल में जांच नहीं होगी, तो गरीब अपना उपचार कैसे कराएंगे। मेडिकोलीगल केस में भी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा हैं।

चिकित्सा अधीक्षक डॉ. केके टम्टा का कहना है कि सीटी स्कैन, ओपीजी मशीन समेत कई मशीनों की खरीद प्रक्रिया पूरी कर ली गई है। इसे अब स्वीकृति के लिए शासन को भेजा गया है। उम्मीद है कि जल्द ही मशीन आ जाएंगी।

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