हरीश रावत ने की दिलचस्प टिप्पणी, 'लगे रहो, रावत पूरे पांच साल'
अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की वृक्षासन की मुद्रा में तस्वीर पर हरीश रावत ने सोशल मीडिया में दिलचस्प टिप्पणी की लगे रहो रावत पूरे पांच साल।
देहरादून, विकास धूलिया। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की हर बात के कई निहितार्थ होते हैं। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की वृक्षासन की मुद्रा में तस्वीर पर हरीश रावत ने सोशल मीडिया में दिलचस्प टिप्पणी की, 'लगे रहो, रावत पूरे पांच साल।' कोई कह रहा है कि हरीश रावत ने सीएम त्रिवेंद्र पर तंज कसा कि पूरे पांच साल इसी तरह एक टांग पर खड़े रहो। कुछ को लगा कि हरीश रावत शायद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र को संदेश देना चाहते हैं कि जिस तरह सियासी अस्थिरता को दरकिनार कर उन्होंने सवा तीन साल सरकार का नेतृत्व किया, वैसे ही पूरे पांच साल तक करते रहें। वैसे इस बात में कुछ दम भी नजर आता है, क्योंकि हरीश रावत को स्वयं अंतर्कलह और कांग्रेस में टूट के कारण सत्ता से बेदखल होना पड़ा। 'रावत पूरे पांच साल' स्लोगन कांग्रेस ने उनके मुख्यमंत्री रहते दिया, जिसे उन्होंने अब त्रिवेंद्र को फॉरवर्ड कर दिया।
तो उत्तराखंड दोहराएगा पंजाब की कहानी
पंजाब के डीजीपी दिनकर गुप्ता और उनकी पत्नी विनी महाजन मुख्य सचिव। मतलब, सूबे में पुलिस और शासन की कमान एक दंपती के हाथ। देश में अपनी तरह का पहला मामला, लेकिन हो सकता है उत्तराखंड जल्द इस कहानी को दोहराता नजर आए। जी हां, उत्तराखंड के डीजीपी अनिल कुमार रतूड़ी हैं और उनकी पत्नी राधा रतूड़ी अपर मुख्य सचिव। मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह की सेवानिवृत्ति नजदीक है। उनके उत्तराधिकारी की दौड़ में तीन अपर मुख्य सचिव शामिल हैं। हालांकि, वरिष्ठता के लिहाज से राधा रतूड़ी के ऊपर कुछ अन्य अफसर हैं। लाजिमी तौर पर उनका दावा मुख्य सचिव पद पर ज्यादा मजबूत है, लेकिन अकसर देखा गया है कि सर्वोच्च पद का सवाल हो तो फैसला मुखिया के विवेक पर निर्भर करता है। कई उदाहरण हैं जब किसी को सुपरसीड कर अहम जिम्मेदारी सौंपी गई। देखते हैं, क्या उत्तराखंड में देश का दूसरा सबसे पावरफुल कपल सामने आएगा।
19 साल, 400 मंत्रियों का धमाल
उत्तराखंड को अलग राज्य बने अभी उन्नीस साल ही हुए हैं, लेकिन इस दौरान चार सौ से ज्यादा मंत्री सत्ता का सुख भोग चुके हैं। न न, कन्फ्यूज न हों, इनमें से विधायक निर्वाचित होकर मंत्री बनने वालों का आंकड़ा तो महज 60 के आसपास ही है। बाकी साढ़े तीन सौ ऐसे हैं, जिन्हें सत्ता में होते हुए उनकी पार्टी ने विभिन्न निगमों, आयोगों, परिषदों में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष बना कैबिनेट या राज्य मंत्री के दर्जे से नवाजा। खैर, यह तो कांग्रेस या भाजपा, हर सरकार के दौरान होता आया है लेकिन कोफ्त तब होती है, जब ऐसे मंत्री सत्ता से बाहर होने के बाद बड़ी शान से खुद को पूर्व मंत्री बताते हैं। इनके लेटरपैड और अब सोशल मीडिया के जमाने में इनके प्रोफाइल, में सबसे पहले पूर्व मंत्री ही दर्ज होता है। अब आप समझ गए, ये इनके लिए सबसे बड़ा स्टेटस सिंबल है, रुआब गांठने का हथियार भी।
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हींग लगे न फिटकरी, रंग चोखा
यह बड़ी पुरानी कहावत है लेकिन कोरोना काल में भाजपा इसे बखूबी इस्तेमाल में ला रही है। शारीरिक दूरी रखनी है, तो इन दिनों हजारों की भीड़ जुटा रैली का सवाल ही नहीं। भाजपा ने तकनीक का रास्ता अख्तियार किया और शुरू कर दी वर्चुअल रैली। केंद्रीय मंत्रियों से लेकर मुख्यमंत्री, मंत्री और संगठन के पदाधिकारी देशभर में रोजाना इस तरह कई रैली संबोधित कर रहे हैं। आमजनता भले ही सीधे शिरकत न करे, मगर पार्टी कार्यकर्ताओं को वार्मअप करने का बेहतरीन तरीका तो है ही। फिर नेताओं के संबोधन को सोशल मीडिया में वायरल करने में आइटी सेल को देर कितनी लगती है। इस पर खर्च, न के बराबर। कांग्रेस को इसका तोड़ नहीं सूझ रहा है। वैसे ही कांग्रेस में दिल्ली से लेकर दून तक अपनी ढपली, अपना राग परंपरा बन चुकी है। आलम यह कि घर की चिल्लपों से पीछा छूटे तो भाजपा के पीछे लगा जाए।
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