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हरीश रावत का वर्ष 2019 के चुनावी समर में उतरने का ऐलान

मुख्यमंत्री हरीश रावत अब फिर पूरी तरह राजनीति में सक्रिय होने जा रहे हैं। उन्होंने सोशल मीडिया पर ऐलान कर दिया है कि वह वर्ष 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ने को तैयार हैं।

By Edited By: Published: Sat, 23 Jun 2018 03:01 AM (IST)Updated: Sun, 24 Jun 2018 05:24 PM (IST)
हरीश रावत का वर्ष 2019 के चुनावी समर में उतरने का ऐलान
हरीश रावत का वर्ष 2019 के चुनावी समर में उतरने का ऐलान

देहरादून, [विकास धूलिया]: विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद सियासत से इतर अपनी गतिविधियों के लिए ज्यादा चर्चा में रहे पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत अब फिर पूरी तरह राजनीति में सक्रिय होने जा रहे हैं। प्रदेश कांग्रेस में इन दिनों जन्म ले रहे नए समीकरणों की आहट के बीच हरदा ने सोशल मीडिया पर ऐलान कर दिया है कि वह वर्ष 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ने को तैयार हैं। 

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हालांकि इसके लिए भी उन्होंने अपनी चिर-परिचित शैली का ही सहारा लिया और कहा, 'हार के बावजूद योद्धा हूं मैं। 2019 के धर्मयुद्ध में तटस्थ नहीं रह सकता।' दिलचस्प बात यह कि रावत ने खुद की तुलना महाभारत के पात्र बर्बरीक से करते हुए कहा है कि वह धर्मयुद्ध में सर भी कटवाने को तैयार हैं। 

पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में शुमार किए जाते हैं। केंद्र में पिछली कांग्रेसनीत यूपीए सरकार में जल संसाधन एवं संसदीय कार्य मंत्रालय संभाल चुके रावत को वर्ष 2014 में कांग्रेस आलाकमान ने तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के विकल्प के तौर पर उत्तराखंड भेजा। 

रावत लगभग तीन साल उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे। यह बात दीगर है कि उनकी ताजपोशी उत्तराखंड कांग्रेस के तमाम बड़े नेताओं को रास नहीं आई। पहले सतपाल महाराज ने कांग्रेस छोड़ी और फिर पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा व कैबिनेट मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत समेत दस विधायक पार्टी को दोफाड़ कर भाजपा में चले गए। 

पिछले साल विधानसभा चुनाव से ऐन पहले कांग्रेस के एक और दिग्गज तथा रावत की कैबिनेट के सदस्य यशपाल आर्य भी कांग्रेस का दामन झटक भाजपा के पाले में जा खड़े हुए। अधिकांश दिग्गजों के पार्टी छोड़ने के बाद उत्तराखंड में कांग्रेस की चुनावी नैया के अकेले खेवनहार बने हरदा को विधानसभा चुनाव में करारा झटका लगा। न केवल कांग्रेस 70 सदस्यीय विधानसभा में महज 11 सीटों तक जा सिमटी, बल्कि वह स्वयं हरिद्वार ग्रामीण और किच्छा, दो सीटों से मैदान में उतरने के बावजूद एक जगह से भी जीत दर्ज करने में कामयाब नहीं रहे। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लहर में भाजपा अकेले 57 सीटें जीत तीन-चौथाई से ज्यादा बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज हुई। हालांकि हरदा ने इस करारी शिकस्त की जिम्मेदारी लेने से गुरेज नहीं किया लेकिन इसके बाद वह खुद ब खुद सक्रिय राजनीति से अलग हट से गए। बावजूद इसके कभी आम पार्टी, कभी काफल पार्टी कर और हरेला पर्व पर विशेष आयोजन कर उन्होंने अपनी प्रासंगिकता बरकरार रखी। 

हाल तक हरीश रावत आगामी लोकसभा चुनाव लड़ने को लेकर अपना स्टैंड साफ करने से बचते रहे, लेकिन अब उन्होंने खुलकर घोषणा कर दी है कि वह लोकसभा चुनाव लड़ेंगे। अलबत्ता, उन्होंने इसके साथ यह अवश्य जोड़ा है कि अगर पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी ऐसा चाहेंगे तो।

शुक्रवार को हरदा ने ट्वीट कर यह सियासी ऐलान किया। ट्वीट में उन्होंने कहा है कि 'मैं राहुल जी के आदेश पर कहीं से भी चुनाव लड़ने की सोच सकता हूं। मुझे अवसर मिला था, मैंने गंवा दिया।' इसी ट्वीट में आगे उन्होंने कहा, '2019 के धर्मयुद्ध में लोकतंत्र पक्ष के कमांडर राहुल जी हैं। महाभारत में बर्बरीक ने अपना सर कटवाकर भी युद्ध में भागेदारी की थी। मैं भी इस महायुद्ध में बर्बरीक बनने को तैयार हूं मगर युद्ध से अलग नहीं रह सकता, चिंता न करें।' 

दरअसल, इन दिनों उत्तराखंड कांग्रेस में एक बार फिर वर्चस्व की जंग चल रही है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह और नेता प्रतिपक्ष डॉ. इंदिरा हृदयेश लाजिमी तौर पर अपनी-अपनी भूमिका के कारण इस वक्त पार्टी में सबसे ताकतवर नेता के रूप में स्थापित हो चुके हैं। 

ट्वीट की भाषाशैली से साफ है कि हरदा परोक्ष तौर पर अपनी ही पार्टी के नेताओं को यह संदेश दे रहे हैं कि पराजित होने के बावजूद वे अब तक चुके नहीं हैं और उत्तराखंड की सियासत में उनकी अहमियत अब भी बनी हुई है।

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