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    गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने पर बोले लोग, एक कदम बढ़ाया; एक और बढ़ाना बाकी

    By Sunil NegiEdited By:
    Updated: Thu, 05 Mar 2020 11:54 AM (IST)

    बजट सत्र के बाद मुख्यमंत्री के गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की घोषणा करने के बाद से सरकार का यह फैसला चर्चा का विषय बना हुआ है।

    गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने पर बोले लोग, एक कदम बढ़ाया; एक और बढ़ाना बाकी

    देहरादून, जेएनएन। गैरसैंण को प्रदेश की राजधानी बनाने की वर्षों पुरानी मांग की ओर सरकार ने पहला कदम बढ़ा दिया है। बजट सत्र के बाद मुख्यमंत्री के गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की घोषणा करने के बाद से सरकार का यह फैसला चर्चा का विषय बना हुआ है। कुछ लोग सरकार की घोषणा की सराहना कर रहे हैं तो कुछ इसे छलावा बता रहे हैं। हालांकि, जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए सरकार की ओर से अभी एक और कदम बढ़ाया जाना बाकी है।

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    गैरसैंण को राजधानी बनाने की मांग भी अलग राज्य की मांग के साथ ही शुरू हो गई थी। लेकिन, राज्य बनने के 20 साल बाद भी यह मांग पूरी नहीं हुई। उत्तराखंड क्रांति दल के प्रदेश अध्यक्ष दिवाकर भट्ट ने बताया कि राज्य निर्माण के समय तैयार रिपोर्ट में 70 फीसद लोगों ने गैरसैंण को राजधानी बनाने को समर्थन दिया था। आज भी आम लोग गैरसैंण को ही राजधानी के रूप में देखना चाहते हैं। मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद आम लोगों में एक उम्मीद तो जगी है, लेकिन संतुष्टि नहीं है। खासकर उन लोगों में जिन्होंने अलग राज्य के लिए लड़ाई लड़ी। राज्य आंदोलनकारियों ने एकमत होकर गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने की मांग की है। उनका कहना है कि पहाड़ के विकास के लिए यह जरूरी है।

    • प्रदीप कुकरेती (राज्य आंदोलनकारी) का कहना है कि 20 साल से सरकारें जनता की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करती आई हैं। वर्तमान सरकार ने गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का पहला कदम उठाया, जो सराहनीय है। लेकिन राज्य निर्माण की लड़ाई के शहीदों को असली श्रद्धांजलि उस दिन मिलेगी जब गैससैंण स्थायी राजधानी बनेगी।
    • रविंद्र जुगराण (राज्य आंदोलनकारी)  का कहना है कि उत्तराखंड एक छोटा राज्य है। जो अपने ऊपर चढ़ा कर्ज भी कर्ज लेकर चुका रहा है। ऐसे में प्रदेश दो राजधानियों का खर्च कैसे उठाएगा। गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने से ही प्रदेश का भला होगा।
    • सुशीला बलूनी (राज्य आंदोलनकारी) का कहना है कि दो दिन के लिए गैरसैंण में सत्र करने से क्या फायदा। नेता केवल अपनी सुविधा के लिए फैसला लेते हैं। 'आज दो अभी दो, उत्तराखंड राज्य दो, राजधानी गैरसैंण' का नारा जब तक पूरा नहीं होता। ऐसी घोषणाओं का कोई फायदा नहीं।
    • दिवाकर भट्ट (केंद्रीय अध्यक्ष, उक्रांद)  का कहना है कि आम जनता गैरसैंण को स्थायी राजधानी चाहती है। उक्रांद भी शुरू से इसके लिए लड़ाई लड़ता आया है। जो राज्य अपने कर्ज से नहीं उबर पा रहा, वह दो राजधानियों का खर्च कैसे वहन होगा। गैरसैंण के स्थायी राजधानी बनने तक उक्रांद का आंदोलन जारी रहेगा।
    • एसएस पांगती (राज्य आंदोलनकारी) का कहना है कि गैरसैंण बस चुनावी मुद्दा बनकर रह गया है। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों ने गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की घोषणाएं पहले भी की हैं। दोबारा यही हो रहा है। सरकार को गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने के लिए सख्त कदम उठाने होंगे।
    • पीसी थपलियाल (केंद्रीय प्रवक्ता, उक्रांद) का कहना है कि राज्य गठन के 20 साल बाद सरकार की आंखें खुलीं। यह बेहतर कदम है। लेकिन, छोटे से राज्य में दो राजधानियों का होना हास्यास्पद है। गैरसैंण के पूर्णकालिक राजधानी घोषित नहीं होने तक हमारा आंदोलन जारी रहेगा।
    • कमला पंत (अध्यक्ष, उत्तराखंड महिला मंच) का कहना है कि गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की घोषणा तो हो गई। लेकिन, क्या सरकार छह महीने के लिए सचिवालय भी वहां ले जाएगी। घोषणा के पीछे लॉजिक कुछ नहीं है। सरकार की मंशा घोषणा से ही झलक रही है।
    • काशी सिंह एरी (संस्थापक सदस्य, उक्रांद) का कहना है कि गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाना जनभावनाओं के मुंह पर तमाचा है। प्रदेश को गैरसैंण स्थायी राजधानी के रूप में चाहिए न कि नेता-अफसरों के घूमने के लिए कोई अड्डा। जो सरकार कर्मचारियों को वेतन समय पर नहीं दे पाती वो दो राजधानियों का खर्च कैसे वहन करेगी।
    • किशोर उपाध्याय (पूर्व प्रदेश अध्यक्ष, कांग्रेस) का कहना है कि गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाए जाने की घोषणा राज्य आंदोलन की भावना पर कुठाराघात है। उत्तराखंड जैसा छोटा राज्य दो राजधानियों का भार नहीं वहन कर सकता। मुख्यमंत्री की ओर से विधानसभा में प्रस्तुत बजट में वित्तीय प्रबंधन दूर-दूर तक नहीं दिखाई दे रहा।
    • सुनील उनियाल गामा (महापौर, देहरादून) का कहना है कि मुख्यमंत्री ने राज्य आंदोलनकारियों की भावनाओं का सम्मान किया है। इस कदम से न सिर्फ पहाड़ में आर्थिकी मजबूत होगी बल्कि पलायन रोकने में भी मदद मिलेगी। कांग्रेस ने इस पर कोई ठोस निर्णय नहीं लिया। अब भाजपा ने निर्णय लिया है तो वह अपना रोना रो रही है।

    बड़े सवाल

    गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की घोषणा के साथ कई सवाल भी सरकार के सामने आकर खड़े हो गए हैं।

    • क्या नेता और सचिवालय छह महीने गैरसैंण में रहेंगे।
    • क्या सिर्फ दो-चार दिन के लिए ही गैरसैंण में सत्र का आयोजन होगा।
    • क्या यह कदम गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने की ओर एक पहल है।
    • हजारों करोड़ के कर्ज में डूबे उत्तराखंड के लिए यह फैसला कितना कारगर है।
    • दो राजधानियां होने की स्थिति में खर्च का वहन कैसे होगा। 

    उद्योगपतियों की प्रतिक्रिया

    • पंकज गुप्ता (अध्यक्ष उत्तराखंड इंडस्ट्रीज एसोसिएशन) का कहना है कि राज्य सरकार का बजट समावेशी है। इसमें हर वर्ग का पूरा ध्यान रखा गया है। बजट में औद्योगिक विकास को गति देने के कुछ उपाय किए गए हैं। यदि सरकार एमएसएमई सेक्टर को बढ़ावा देने के लिए बजट में कुछ और प्रावधान करती तो छोटे उद्योग तेजी से आगे बढ़ते। आज प्रदेश में एमएसएमई सेक्टर को अधिक प्रोत्साहन की जरूरत है।

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    • अशोक विंडलास (अध्यक्ष सीआइआइ, राज्य परिषद उत्तराखंड) का कहना है कि  प्रदेश सरकार के बजट में हर वर्ग का ध्यान रखा गया है। कृषि, पर्यटन, शिक्षा, चिकित्सा, औद्यानिकी जैसे क्षेत्र पर फोकस किया गया है। औद्योगिक विकास की भी सरकार ने कुछ कोशिशें की हैं। जिससे राज्य के औद्योगिक विकास को मदद मिलेगी। राज्य में सहायता केंद्र पोर्टल एक अच्छी सुविधा है।

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