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    बढ़ते ताप से पृथ्वी को ज्वर का उत्‍तराखंड में भी असर

    By Sunil NegiEdited By:
    Updated: Sun, 23 Apr 2017 04:05 AM (IST)

    पृथ्‍वी पर बढ़ते तापमान के कारण ग्लेशियर पिघल रहे, जंगल घट रहे और जल स्रोतों सूख रहे हैं। रही-सही कसर अनियोजित विकास ने पूरी कर दी है।

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    बढ़ते ताप से पृथ्वी को ज्वर का उत्‍तराखंड में भी असर

    देहरादून, [सुमन सेमवाल]: बढ़ते तापमान से पृथ्वी को 'ज्वर' पकड़ने लगा है। उत्तराखंड में इसके लक्षण पिघलते ग्लेशियर, घटते जंगल, सूखते जल स्रोतों के रूप में नजर आने लगे हैं। रही-सही कसर अनियोजित विकास ने पूरी कर दी है और इसका असर जल व वायु प्रदूषण के रूप में सामने आ रहा है। अनियोजित विकास का प्रतिकूल प्रभाव वनस्पतियों पर भी पड़ रहा है।

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    वनस्पतियों की सैकड़ों प्रजातियां विलुप्ति के कगार पर पहुंच गई हैं। वहीं, वैज्ञानिक कृषि के अभाव में खेतों से हर साल लाखों टन मिट्टी बह जा रही है। सबसे गंभीर यह कि पृथ्वी की नासाज सेहत को दुरुस्त करने के लिए हमारी मशीनरी अपेक्षित सक्रियता नहीं दिखा रही। कुछ मामलों में शोध कार्य चल रहे हैं, मगर इनका दायरा भी सीमित है। आइए जानते हैं हमें जीवन देने वाली पृथ्वी की वास्तविक स्थिति क्या है।

    बढ़ रही ग्लोबल वार्मिंग 

    हाल ही में वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआइ) में संपन्न हुए 19वें राष्ट्रमंडल वानिकी सम्मेलन में यह तथ्य उभरकर सामने आया था कि ग्लोबल वार्मिंग का असर हर क्षेत्र में नजर आ रहा है। विशेषज्ञों के मुताबिक पिछली सदी में तापमान में 0.5 डिग्री सेल्सियस की औसत बढ़ोत्तरी दर्ज की गई थी, जबकि इस सदी के पिछले 16 साल में ही औसत तापमान 0.6 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया।  

    सरकती स्नोलाइन, पिघलते ग्लेशियर

    वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान की रिपोर्ट बताती है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण बर्फ का दायरा घटने से स्नोलाइन हर साल 1.71 से 10.21 मीटर की दर से ऊपर की तरफ खिसक रही है। वहीं, प्रदेश में 968 ग्लेशियरों के पीछे खिसकने की सालाना औसत दर 10 मीटर बताई गई है। इसमें सबसे तेज गंगोत्री ग्लेशियर 20 मीटर की दर से पीछे खिसक रहा है। अध्ययन की बात करें तो हिमालय में 9575 ग्लेशियर हैं और अभी सिर्फ 15 ग्लेशियर पर ही नियमित अध्ययन किया जा रहा है।

    अनियोजित कटान से घटा वनावरण

    भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआइ) की रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2013-15 के बीच प्रदेश के वनावरण में 268 वर्ग किलोमीटर की कमी आई है।

    नदियों में घटा पानी

    अनियोजित विकास के कारण प्रदेशभर में जलस्रोत सूखने से उन 20 प्रमुख नदियों में रोजाना की दर से नौ करोड़ लीटर पानी कम हो गया है, जिन पर तमाम पेयजल योजनाएं आधारित हैं।

    वायु प्रदूषण तीन गुना तक

    दून की बात करें तो वायु एसपीएम (सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर/निलंबित ठोस कण) की मात्रा 300 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर पहुंच गई है। जबकि यह अधिकतम 100 होनी चाहिए। हरिद्वार, रुड़की, काशीपुर, रुद्रपुर, हल्द्वानी जैसे शहरों में भी वायु प्रदूषण की दर बढ़ रही है।

    गंगा में बढ़ रहा प्रदूषण

    हाई कोर्ट ने गंगा और यमुना नदी को जीवित मनुष्य का दर्जा दे दिया है। अब इन नदियों की दशा पर नजर डालें तो पता चलता है कि गंगा का जल धर्मनगरी हरिद्वार में पीने लायक ही नहीं। इसमें सीवर जनित टोटल कॉलीफार्म की मात्रा तय मानक से कहीं अधिक पाई गई है। 

    पानी टोटल कॉलीफॉर्म 

    हरिद्वार क्षेत्र

    बालाकुमारी मंदिर (अजीतपुर): 90 से 500

    सत्यनारायण मंदिर (रायवाला): 80 से 500

    अपर गंगा कैनाल रुड़की: 80 से 220

    अपर गंगा कैनाल हर की पैड़ी: 60 से 140 

    हर की पैड़ी (डाम कोठी): 60 से 90

    हरी की पैड़ी (ऋषिकुल पुल): 40 से 110

    दूधियाबाद क्षेत्र: 30 से 70

    नोट: पीने के पानी में टोटल कॉलीफार्म की मात्रा 50 एमपीएन (मोस्ट प्रॉबेबल नंबर) से अधिक नहीं होनी चाहिए। 

    संसाधनों के दोहन पर नियंत्रण नहीं

    प्राकृतिक संसाधनों के दोहन की बात करें तो प्रदेश में करीब 1000 इंडस्ट्री ऐसी हैं, जो उत्पाद बनाने के लिए प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग करती हैं। मगर, संसाधनों के दोहन पर नियंत्रण की इनकी रफ्तार बेहद कम है। 

    उत्तराखंड में संकट में वनस्पति

    राज्य में 4750 वनस्पति प्रजातियां हैं और अनियोजित विकास व ग्लोबल वार्मिंग के चलते 100 प्रजातियां संकटग्रस्त श्रेणी में आ चुकी हैं, जबकि 100 प्रजातियां इस ओर बढ़ रही हैं।

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